वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) को केरल उच्च न्यायालय द्वारा तलाक देने का आधार मानने के बाद अब इस कृत्य को अपराध बनाने पर बहस शुरू हो गई है। हालांकि, केंद्र सरकार और उच्चतम न्यायालय का लगातार यह दृष्टिकोण रहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से देश में विवाह संस्था समाप्त हो जाएगी। भारत अन्य यूरोपीय देशों का अंधानुसरण नहीं कर सकता, जहां वैवाहिक बलात्कार एक संज्ञेय अपराध है। अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका समेत 51 देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाया गया है। नेपाल ने हाल ही में 2006 में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया है।
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने अदालत में दायर जवाब में कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की जरूरत नहीं है। भारत में विवाह एक संस्था हैं, अनुबंध नहीं। इसके अलावा यदि इसे अपराध बना दिया गया तो इसके सबूतों का क्या होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में सबूतों का मिलना मुश्किल है। ऐसा एक मामला एक एनजीओ की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।
सरकार ने यह भी कहा कि दहेज प्रताड़ना कानून की धारा 498ए का पहले से ही दुरुपयोग हो रहा है। यदि वैवाहिक बलात्कार को भी अपराध बना दिया गया तो परिवार बिखर जाएंगे। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा कानून- 2005 में ऐसे कृत्यों को कवर किया गया है। वहीं, धारा 498ए में प्रताड़ना को देखा जा सकता है जैसा कि केरल उच्च न्यायालय ने किया है। इस मामले में उच्च न्यायालय ने पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाने को क्रूरता माना और उसके आधार पर उसे तलाक दिलवाया है। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। सरकार ने कहा कि देश में अशिक्षा, बहुसंख्यक महिलाओं का आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होना, समाज का दृष्टिकोण, व्यापक विविधता और गरीबी के कारण देश में इसे लागू नहीं किया जा सकता।आपराधिक कानून के विशेषज्ञ डॉ. हर्षवीर शर्मा के अनुसार वैवाहिक बलात्कार कानून में पहले से ही परिभाषित है। आईपीसी की धारा 375 में कहा गया है कि 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा। उससे ऊपर की महिला के साथ होने वाला ऐसा कृत्य प्रताड़ना और क्रूरता माना जाता है। उच्च न्यायालय ने इसे रेखांकित किया ही है। इसलिए उन्हें नहीं लगता कि वैवाहिक बलात्कार को अलग से अपराध बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 2012 में दिल्ली गैंगरेप के बाद बनी न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटाने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने संसद में इस पर विस्तृत विचार करने के बाद इसे नहीं माना और 2013 में आपराधिक संशोधन कानून में शामिल नहीं किया गया। वहीं विधि आयोग और संसद की स्थायी समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने के विरुद्ध अपनी राय दी है।
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