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जनसंख्या नियंत्रण रिपोर्ट तैयार, राज्य विधि आयोग आज सौंप सकता है सीएम योगी को

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून से संबंधित विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदित्य नाथ मित्तल मंगलवार या बुधवार को इसे मुख्यमंत्री को सौंप सकते हैं। विधेयक के मसौदे में दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने की सिफारिश की गई है। साथ ही वन चाइल्ड पॉलिसी को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया गया है। यूपी सरकार विधानमंडल के वर्षाकालीन सत्र में इससे संबंधित विधेयक ला सकती है।

विधि आयोग द्वारा तैयार 260 पेज की इस रिपोर्ट में  विभिन्न वर्गों की ओर से आए सुझाव शामिल किए गए हैं। इन्हें 57 श्रेणियों में रखा गया है। रिपोर्ट में मान्य व आमान्य प्रस्तावों को रखते हुए उनकी विधिक स्थिति भी स्पष्ट की गई है। मसलन विधायक व सांसद बनने के लिए दो अधिक बच्चों को चुनाव लड़ने से रोकने लिए राज्य सरकार कानून नहीं बना सकती है। यह अधिकार  केंद्र सरकार को है।

 यह विधेयक उत्तर प्रदेश जनसंख्या(नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) एक्ट 2021 के नाम से जाना जाएगा और यह 21 वर्ष से अधिक उम्र के युवकों और 18 वर्ष से अधिक उम्र की युवतियों पर लागू होगा। मसौदे को अंतिम रूप देने से पहले आयोग ने अपनी वेबसाइट पर सुझाव एवं आपत्तियां आमंत्रित की थीं। निर्धारित तिथि 19 जुलाई तक आयोग को 8500 से ज्यादा सुझाव एवं आपत्तियां मिली थीं। इन सुझावों और आपत्तियों पर विचार करने के बाद आयोग ने विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप दिया है।सूत्रों के अनुसार आयोग ने वन चाइल्ड पॉलिसी को लेकर मिली आपत्तियों के बाद अपनी सिफारिशों में आंशिक बदलाव किया है। पूर्व में ढेर सारे प्रोत्साहन के प्रस्ताव रखे गए थे, जिन्हें अब कम कर दिया गया है। हालांकि एक बच्चे के माता-पिता को प्राथमिकता देने की नीति बरकरार रखी गई है। सरकारी नौकरी करने वाले एक या दो बच्चों के माता-पिता को पूरे सेवाकाल में एक अतिरिक्त वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) देने की सिफारिश की गई है, पूर्व में आयोग ने दो वेतन वृद्धि देने की सिफारिश का प्रस्ताव रखा था। एक संप्रदाय विशेष में बहु विवाह की परंपरा को देखते हुए आयोग ने सभी पत्नियों को मिलाकर दो से अधिक बच्चे होने पर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने समेत अन्य सुविधाओं से वंचित करने की सिफारिश की है। आयोग ने मातृत्व अवकाश और पितृत्व अवकाश के संबंध में रखे गए प्रावधानों को हटा दिया है, क्योंकि इस बारे में कानून पहले से मौजूद है।