राज्यसभा में बुधवार को सत्र के आखिरी घंटे में हुए टकराव ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। क्या इसके लिए विपक्ष का गैर जिम्मेदाराना रवैया जिम्मेदार या फिर सरकार का अड़ियल रवैया? राज्यसभा के अनुभवी सांसद नरेश गुजराल कहते हैं कि दोनों पक्षों ने संयम नहीं बरता। गुजराल कहते हैं कि सबसे पहली बात तो यह है कि विपक्ष को सदन के भीतर विरोध प्रदर्शित करने और अपनी बात कहने का अधिकार है। लेकिन इसके लिए मेज पर चढ़ जाना या कागज उछालने या अन्य कोई अनुचित हरकत कतई स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा करने से हम सब जनप्रतिनिधियों की छवि खराब होती है। लेकिन राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उस घटना के लिए सरकार का यह रवैया भी जिम्मेदार है कि हमारी जो मर्जी होगी, वह करेंगे, यह ससंदीय लोकतंत्र के विरुद्ध है। लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका है, वह सवाल करेगा। उसकी बात सुनी जानी चाहिए।
नरेश गुजराल ने कहा कि पेगासस जासूसी के जिस मुद्दे को विपक्ष उठा रहा था, उस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए थी और गृह मंत्री या पीएम को सदन में आकर बयान देना चाहिए था। यही विपक्ष की प्रमुख मांग थी। जो बयान मंत्री ने दिया, उसमें सांसदों के प्रश्नों का जवाब नहीं था कि सरकार ने पेगासस खरीदा या नहीं। दूसरे, बुधवार को जब टकराव की यह स्थिति बनी तो विपक्ष की यही मांग थी कि बीमा संबंधी विधेयक को चर्चा के बाद पारित कराया जाए। या फिर इसे सलेक्ट कमेटी को भेजा जाए, क्योंकि यह महत्वपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने कहा कि यदि राज्यसभा के सत्र का एक दिन इस पर चर्चा के लिए रख दिया जाता या इसे सलेक्ट कमेटी को भेजा जाता तो बेहतर होता। इस विधेयक में सुधार किए जा सकते थे क्योंकि यह हजारों कर्मचारियों से जुड़ा मसला भी है। लेकिन सरकार विपक्ष के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती। उसने जो रवैया किसान विधेयकों को पारित करने में अपनाया, वहीं बीमा विधेयक पर भी अपनाया।
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