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आरक्षण पर जोर, मगर उसे लागू करने पर कोई ध्यान नहीं, बड़ी संख्या में खाली पड़े हैं आरक्षित श्रेणियों में पद

राजनीतिक दलों की तरफ से जातीय जनगणना और आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग तो जोर-शोर से की जा रही है लेकिन आरक्षण की जो सीमा लागू है, उसके तहत स्वीकृत पद भारी संख्या में खाली पड़े हैं। उन पदों को भरने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। सरकार ने हाल ही में संसद में बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शीर्ष शिक्षण संस्थानों में आरक्षित श्रेणियों के 40-56 फीसदी पद तक खाली पड़े हैं।

शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने दो अगस्त को लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि देश के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति के 5737 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 2389 पद खाली हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति के 3097 में से 1199 तथा ओबीसी के 7815 में से 4251 पद रिक्त पड़े हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि दिल्ली में अजा, जजा तथा ओबीसी के क्रमश 157, 88 तथा 231 पद खाली हैं जबकि स्वीकृत पदों की संख्या क्रमश 380, 180 तथा 346 है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एंड रिसर्च में अजा, जजा तथा ओबीसी के क्रमश 28, 11 और 67 पद खाली हैं। जबकि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु में क्रमश 34, 46 और 272 पद खाली हैं। इस प्रकार उपरोक्त सभी संस्थानों में अनुसूचित जाती के 2608, जनजाति के 1344 तथा ओबीसी के 4821 पद खाली हैं। इस प्रकार अजा और जजा के रिक्त पड़े पदों का प्रतिशत 40-41 फीसदी के बीच है जबकि ओबीसी के खाली पदों का प्रतिशत 56 फीसदी तक है।राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दिल्ली विवि के प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता ने कहा कि ये आंकड़े दर्शाते हैं कि आरक्षण का क्रियान्वयन संविधान की भावना के अनुरूप नहीं किया जा रहा है। जब केंद्र सरकार के संस्थानों का ये हाल है तो राज्यों में क्या स्थिति होगी, खुद ही समझा जा सकता है। इसलिए जब तक आरक्षण के प्रावधानों पर अमल नहीं होगा तब तक सामाजिक न्याय संभव नहीं होगा। इसलिए सरकार इसे लागू करने पर ज्यादा ध्यान दे।