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महज 7 दिनों के संघर्ष में झुक गया अफगानिस्तान, जानें तालिबान की भी ताकत

अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों ने महज सात दिनों में ही देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया। ऐसे में हालात को देखते हुए अफगान सरकार ने भी तालिबान को फौरन सत्ता में हिस्सेदारी का प्रस्ताव दे दिया। पर तालिबान ने सरकार के इस प्रस्ताव पर अपना पत्ता नहीं खोला है। वैसे तालिबानियों ने 34 प्रांतीय राजधानियों में से 13 पर नियंत्रण कर लिया है। उनकी सबसे बड़ी कामयाबी हेरात प्रांत पर कब्जा करना है।

अफगानिस्तान की ताकत की बात करें तो इसके पास कागज पर 3.50 लाख सैनिक हैं। संघर्ष शुरू होने के बाद सिर्फ 2.50 लाख सैनिक ही सेवा में हैं। अफगानिस्तान के बाद 162 लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर हैं। 15 से 20 एमआई-35 हेलीकॉप्टर और 30 से 40 ब्लैक हॉक्स भी हैं। अफगानिस्तान के पास वायु सेना है जो तालिबान पर भारी पड़ेगी।

तालिबान की ताकत : अफगानिस्तान में 80 हजार तालिबानी लड़ाके मैदान में लोहा ले रहे हैं। तालिबान के पास वही उपकरण, हथियार और गोला-बारूद है।तालिबान का मैनपावर सोर्स कबाइली इलाकों में बसे कबीले और उनके लड़ाके हैं। पाकिस्तानी सेना, आईएसआई की सीक्रेट मदद तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही है। इसके अलावा कट्टर धार्मिक संस्थाएं, मदरसे भी उनके विचार को सपोर्ट कर रहे हैं।

भारत ने 22 हजार करोड़ खर्च किए: पिछले 20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान में भारत के 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं। दोनों देशों के बीच अभी 75 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

अमेरिका का 822 अरब डॉलर खर्च: अमेरिका के अधिकारिक डाटा के मुताबिक साल 2001 से 2019 के बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान में कुल 822 अरब डॉलर खर्च किए। हालांकि इन आंकड़ों में पाकिस्तान में खर्च किया गया पैसा शामिल नहीं है।

अमेरिकी सैनिकों की वापसी: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कार्यभार संभालते ही 11 सितंबर 2021 तक अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी का ऐलान कर दिया था। अमेरिका की घोषणा के बाद नाटो ने भी अपने सैनिकों को बुलाने का ऐलान कर दिया था। एक जुलाई को अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना का पहला जत्था अपने देश लौट गया था। इसके बाद से ही तालिबानी लड़ाकों ने देश में खून खराबा शुरू कर दिया।

कौन है तालिबान का नेता?
पहले मुल्ला उमर और फिर 2016 में मुल्ला मुख्तर मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद से मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंजादा तालिबान का चीफ है। वह तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों का सुप्रीम कमांडर है। हिब्तुल्लाह अखुंजादा कंधार में एक मदरसा चलाता था और तालिबान की जंगी कार्रवाइयों के हक में फतवे जारी करता था। 2001 से पहले अफगानिस्तान में कायम तालिबान की हुकूमत के दौरान वह अदालतों का प्रमुख भी रहा था।