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बाढ़ के पानी में 80 KM तक बहे घड़ियाल, ऐसे रखी जा रही नजर

चंबल नदी में आई बाढ़ ने घड़ियालों का आशियाना बिगाड़ दिया है। पानी के तेज बहाव में बड़े घड़ियाल 70 से 80 किलोमीटर तक पानी में बह गए हैं। उनके छोटे-छोटे बच्चों को बड़ी क्षति हुई है। ऐसे में अब पानी कम होने पर घड़ियाल अपने-अपने क्षेत्र में लौट कर आ रहे हैं। मगरमच्छ भी नदी के छोटे और बड़े नालों से निकलकर नदी में वापस कूद रहे हैं। ट्रांसमीटर और सेटेलाइट से इन पर नजर रखी जा रही है।बता दें कि साल 2008 से चंबल अभारण्य में घड़ियालों की प्राकृतिक हैचिंग कराई जा रही है। घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और दुर्लभ प्रजातियों के कछुओं का संवर्धन और संरक्षण हो रहा है। साल 2021 में घड़ियालों के 4300 और मगरमच्छ के 900 के करीब नवजातों ने जन्म लिया था। सभी बच्चे नदी में उतरे थे। मगर, दो अगस्त-2019 को चंबल नदी में आई बाढ़ ने तबाही मचा दी है। नदी में पानी बढ़ता देख मगरमच्छ नदी में गिरने वाले छोटे-बड़े नालों में दो सौ से तीन सौ मीटर अंदर तक चले गए थे। बड़े घड़ियाल पानी की गहराई में उतर गए थे। जबकि, घड़ियालों के दो से ढाई फुट के बच्चे पानी का तेज बहाव नहीं सह सके और पानी के साथ बह गए। दस-दस फुट के घड़ियाल भी नदी की डाउन स्ट्रीम में 70 से 80 किलोमीटर तक बह गए थे। ट्रांसमीटर और सेटेलाइट से इन पर नजरें बनी हुई थीं। अब पानी उतरने के बाद घड़ियाल अपने स्थानों पर लौट रहे हैं। नदी में कई स्थानों पर दिखाई भी दे रहे हैं।

नदी में घड़ियाल का होता है अपना एक क्षेत्र

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि चंबल नदी में राजस्थान बार्डर से इटावा के बीच घड़ियालों के निवास हैं। नदी में चार से पांच किलोमीटर के दायरे में एक नर घड़ियाल निवास करता है। उसके बीच में 20 से 25 मादा घड़ियाल रहती हैं। इन मादा घड़ियालों से वो मेटिंग करता है। चार से पांच किलोमीटर का दायरा इनका आशियाना होता है। ये इसी बीच में अपना निवास करते हैं। चंबल में ऐसे तमाम घड़ियालों के अलग-अलग आशियाने हैं। पानी के तेज बहाव के कारण घड़ियालों के आशियाने छिन गए थे।

डीएफओ दिवाकर श्रीवास्तव ने बताया कि बाढ़ के पानी से बड़े-बड़े घड़ियाल 70 से 80 किलोमीटर नदी में डाउन स्ट्रीम तक बह गए थे। पानी कम होने के बाद अब वे वास लौट रहे हैं। इस साल पानी से घड़ियालों के नवजात की अधिक क्षति हुई है। पानी कम होने के बाद इनकी गणना कराई जाएगी। उसके बाद घड़ियालों के जीवित होने का असल आंकड़ा सामने आएगा। जल्द ही ट्रांसमीटर और सेटेलाइट के माध्यम से नदी किनारे से परीक्षण कराया जाएगा।