अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने सोमवार को कहा कि वह अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के अपने फैसले पर अडिग खड़े हैं। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि अफगानिस्तान सरकार का पतन उम्मीद से ज्यादा तेजी से हुआ। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में लंबे समय तक अमेरिका के युद्ध लड़ने से चीन और रूस को फायदा होता। उन्होंने कहा कि उनके शीर्ष राजनयिक (विदेश मंत्री) ने तालिबान की तेज जीत पर इन दोनों देशों से भी सलाह ली।
हटने या वहां सैनिकों को मरने में से एक विकल्प चुनना था
अफगानिस्तान में अराजक स्थिति के बारे में बोलते हुए बिडेन ने कहा कि उन्हें अमेरिकी सेना को वापस लेने या युद्ध के तीसरे दशक में हजारों और अमेरिकी सैनिकों को वहां भेजने के समझौते के बीच एक विकल्प को चुनना था। बिडेन ने कहा कि वह अतीत की गलतियों को नहीं दोहराना चाहते थे और इसलिए अफगानिस्तान में निकलने का ही विकल्प चुना। उनहोंने कहा कि उन्हें अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है।
अमेरिकी सेना ने वहां बहुत त्याग किया
उन्होंने देश से कहा कि अमेरिकी सेना ने पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान में बहुत त्याग किया है और अब अधिक जोखिम नहीं उठा सकती है। दुनिया के इतिहास में अफगानिस्तान मिशन को सबसे लंबा अभियान बताते हुए बिडेन ने कहा कि दो दशक के बाद हम वहां से बाहर निकलना चाहते थे। हम अपने लोगों को सुरक्षित वापस लाना चाहते थे और हमने यही किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि वह भविष्य में अफगानिस्तान के लोगों की मदद करते रहेंगे और उम्मीद जताई कि अफगानिस्तान में भविष्य में बेहतर स्थिति आएगी।
काबुल के हवाई अड्डे पर अमेरिकी बलों की वापसी के समय कई के मारे जाने के बाद बिडेन ने अपना संबोधन दिया। ज्ञातव्य है कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर तेजी से कब्जे के बाद वहां से हजारों लोग भागने की कोशिश कर रहे हैं।
रूस-चीन तो हमें वहां रोके रखना चाहते थे
बिडेन ने अमेरिका को संबोधन में कहा, ‘हमारे सच्चे रणनीतिक प्रतिस्पर्धी चीन और रूस यही पसंद करेंगे कि अफगानिस्तान में अनिश्चित काल तक अमेरिकी संसाधनों और ध्यान को बंटाया जाए और अरबों डॉलर की फंडिंग जारी रखी जाए।’ इससे पहले, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने रूस और चीन के विदेश मंत्रियों के साथ अफगानिस्तान पर चर्चा की, दोनों तालिबान के साथ काम करने के लिए तेजी से तैयारी कर रहे हैं।
चीन-रूस तालिबान से बात कर रहे हैं
रूस ने कहा कि ब्लिंकन और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने विभिन्न अफगान राजनीतिक ताकतों के लिए मास्को के आउटरीच पर चर्चा की जिसका उद्देश्य ‘स्थिरता और सार्वजनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने में मदद करना’ है। रूसी विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि दोनों ‘नई शर्तों के तहत एक समावेशी अंतर-अफगान वार्ता’ शुरू करने के लिए सही परिस्थिति का निर्माण करने के लिए चीन, पाकिस्तान और अन्य इच्छुक देशों की भागीदारी के साथ परामर्श जारी रखने पर सहमत हुए।’बता दें कि अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से हटने का फैसला करते ही रूस और चीन दोनों ने तालिबान के साथ संपर्क बढ़ा दिया है।
रूस ने सोवियत काल में अफगानिस्तान पर एक दशक तक कब्जा रखा था जो उसे काफी महंगा सौदा पड़ा था। उससे इस्लामिक गुरिल्लाओं ने लड़ाई लड़ी थी, जिसे वाशिंगटन ने समर्थन दिया था।
रूस ने इस समय काबुल में अपना दूतावास खुला रखा है और तालिबान के साथ चर्चा की योजना बना रहा है। रूस ने कहा है कि वह तालिबान को देख रहा है, जबकि चीन ने सोमवार को कहा कि वह तालिबान के तहत अफगानिस्तान के साथ ‘दोस्ताना और सहयोगात्मक’ संबंध चाहता है। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बिडेन से कहा कि बीजिंग ने ‘खुले और समावेशी राजनीतिक ढांचे’ की मांग तालिबान से की है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, वांग ने कहा, ‘चीन अमेरिका के साथ संवाद करने के लिए तैयार है ताकि अफगान मुद्दे को नरम ढंग से निपटाने पर जोर दिया जा सके, ताकि अफगानिस्तान में एक नया गृहयुद्ध या मानवीय आपदा को रोका जा सके और देश आतंकवाद का फिर से घर न बन जाए।’
अमेरिकी वार्ताकार भी रूस-चीन से संपर्क में रहे
अमेरिकी वार्ताकार ज़ाल्मय खलीलज़ाद ने अपनी असफल कूटनीति के दौरान नियमित रूप से रूस और चीन से परामर्श किया ताकि संयुक्त राज्य अमेरिका के पीछे हटने के साथ शांतिपूर्ण शक्ति-साझाकरण समझौते को प्रोत्साहित किया जा सके।