अफगानिस्तान के बादशाह याकूब खान का मसूरी से गहरा नाता रहा है। याकूब खान ने अपने जीवन के 43 साल मसूरी और देहरादून में गुजारे। देहरादून में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। अफगानिस्तान के दो बादशाहों को 1842 और 1880 में अंग्रेज भारत लेकर आए थे। पहले बादशाह दोस्त मोहम्मद 1842 में भारत आए थे। उस समय अफगानिस्तान में सिविल वॉर होने के कारण अंग्रेज उन्हें राजनीतिक बंदी के रूप में भारत लेकर आए।
उस दौरान उनकी सुरक्षा में लगभग 1000 गोरखा पलटन को लगाया गया था। भारत में उन्हें मसूरी के बाला हिसार के पास एक राजा की कोठी में रखा गया। आज भी उस जगह को बाला हिसार के नाम से जाना जाता है। बाला हिसार मूलत: अफगानी पस्तो शब्द है, जिसका मतलब पहाड़ी पर बना महल होता है। वहीं अफगानिस्तान के दूसरे बादशाह याकूब खान को मार्च 1880 में भारत लाया गया था।
उन्हें भी अंग्रेज मसूरी लेकर आए, यहां पर वैली व्यू एस्टेट वर्तमान में जो राधा भवन के जानी जाती है, उस स्थान पर रखा गया। 1920 में मसूरी के सवाय होटल में अंग्रेजों की अफगानिस्तान के साथ संधि हुई थी, जिसको यादगार बनाने के लिए मसूरी के गांधी चौक क्षेत्र में अफगानिस्तान सरकार द्वारा रहमानिया मस्जिद का निर्माण किया गया था। वर्तमान में उसका नाम बदलकर अमानीया कर दिया गया है।मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि अफगानिस्तान से दो बादशाह भारत लाए गए थे, जिनमें पहला दोस्त मोहम्मद आमिर खान और दूसरे मोहम्मद याकूब खान शामिल थे। याकूब खान ने देहरादून में 1923 में अंतिम सांस ली। वह अपने देश नहीं जा पाए। बताया कि देहरादून के डालनवाला के समीप बाला हिसार नामक जगह आज भी है, जहां पर शीतकाल में रहते थे।