कुछ फूल ऐसे होते हैं जिनकी खूबसूरती लोगों को अपना दीवाना बना देती है। आज हम एक ऐसे ही फूल की चर्चा कर रहे हैं जिसकी खूबसूरती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस फूल के दीदार के लिए लोग 12 साल तक तरसते रहते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं नीलकुरंजी की। नीलकुरंजी का वैज्ञानिक नाम Strobilanthes kunthianus है ये दक्षिण भारत के वेस्टर्न घाट के शोला जंगलों में पाया जाता है। इस फूल की खासियत यह है कि ये 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई पर खिलते हैं और इसका पौधा 30-60 सेंटीमीटर ऊंचा होता है।
हालांकि, ये कुछ मामलों में 180 सेंटीमीटर तक भी चला जाता है। नीलकुरिंजी का पौधा आमतौर पर एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है। अब कर्नाटक के कोडगू जिले के मंडलापट्टी हिल्स पर यह फूल नजर आया है। यह जीनस स्ट्रोबिलेंथेस से जुड़ा है, जिसकी लगभग 450 प्रजातियां हैं, जिनमें से 146 भारत में पाई जाती हैं और उनमें से लगभग 43 केरल में पाई जाती हैं। ये फूल भारत में सिर्फ कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के शोला नामक के जंगलों में ऊंचे पहाड़ों पर ही पाए जाते हैं।
दुनिया के दुर्लभ फूलों में शुमार इस फूल को केरल में कुरिंजी कहा जाता है। नीलकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा है। यानी एक बार फूल आने के बाद इसका पौधा ख़त्म हो जाता है। फिर नए बीज के पनपने के लिए ख़ास वक़्त का इंतज़ार होता है। भारत में इस फूल का सांस्कृतिक महत्व भी है। इस जनजाति की पारंपरिक कथाओं के मुताबिक़ इनके भगवान मुरुगा ने इनकी जनजाति की शिकारी लड़की वेली से नीलकुरिंजी फूलों की माला पहनाकर शादी की थी। इसी तरह पश्चिमी घाट की पलियान जनजाति के लोग उम्र का हिसाब इस फूल के खिलने से लगाते हैं। आपको बता दें कि इस फूल को देखने के लिए लोग पैसे भी खर्च करते हैं।