तालिबान के प्रति चीन का रुख अफगानिस्तान में अमेरिकी परियोजना के नाटकीय रूप से पतन से अधिकतम लाभ निकालने का संकेत माना जा रहा है.चीन अपने पूर्वी सीमावर्ती प्रांत शिनजियांग पर भी नजर रख रहा है, जहां उइगुर मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. कुछ दिन पहले ही तालिबान ने बिजली की गति से काबुल पर कब्जा कर दुनिया को चौंका दिया. करीब 15 दिन पहले ही चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबानी प्रतिनिधिमंडल का व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया था. काबुल में तालिबान के दाखिल होने के ठीक एक दिन बाद चीन ने कहा कि वह अफगानिस्तान के साथ “दोस्ताना और सहयोगी” संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार है. हालांकि, बीजिंग का कहना है कि वह काबुल में किसी राजनीतिक समझौते को प्रभावित नहीं करना चाहता है लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका के हटने के बाद चीन अफगानिस्तान में अपने ‘बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट’ के लिए लाभदायक संकेत भांप लिए हैं. तालिबान से चीन की मांग बीजिंग स्थित राजनीतिक विश्लेषक हुआ पो के मुताबिक, चीन ने तालिबान से कुछ बुनियादी मांगें रखी हैं- “पहली मांग चीनी नागरिकों की सुरक्षा के साथ-साथ चीनी निवेश को सुनिश्चित करना है.दूसरी मांग यह कि शिनजियांग में अलगाववादियों के साथ संबंध तोड़ दिए जाएं और उन्हें शिनजियांग लौटने की अनुमति न दी जाए” तालिबान चीन के महत्व से अवगत हैं और इसलिए वे बीजिंग के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं. दूसरा निहितार्थ यह है कि उइगुर मुसलमानों को को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए. तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा. खनिज समृद्ध अफगानिस्तान और अवसर चीनी मीडिया के मुताबिक अफगानिस्तान में सरकार बदलने से निवेश के अवसर बढ़े हैं. ये अवसर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अयनाक कॉपर माइन प्रोजेक्ट से लेकर उत्तर में फरयाब और सर-ए-पुल में तेल के भंडार तक हैं. अनिश्चितता के बावजूद बीजिंग समर्थित कंपनियां पहले ही खनन और निर्माण में लाखों डॉलर का निवेश कर चुकी हैं.
दूसरी ओर अफगानिस्तान में लिथियम का विशाल भंडार है. इसलिए अफगानिस्तान को ‘लिथियम का सऊदी अरब’ भी कहा जाता है. लिथियम इलेक्ट्रिक कारों के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य धातु है और दुनिया भर में इसकी मांग बढ़ रही है. और चीन दुनिया का सबसे बड़ा इलेट्रिक कार निर्माता है. सोमवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनियांग ने कहा, “तालिबान चाहता है कि बीजिंग अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास में भूमिका निभाए. हम उनका स्वागत करते हैं” चीन ने कई महीने पहले अपने नागरिकों को निकालना शुरू कर दिया था, लेकिन देश में अभी भी एक दूतावास कार्य कर रहा है.
तालिबान पर कैसे भरोसा किया जा सकता है? अतीत को देखते हुए तालिबान के फैसले अप्रत्याशित हैं और उनके बारे में कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है. सिंगापुर में एस. राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक वरिष्ठ फेलो रफाएलो पैंटुची कहते हैं, “चीन इतिहास जानता है और जानता है कि तालिबान सरकार पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है” वह कहते हैं, “वे तुरंत अफगानिस्तान भागना शुरू नहीं करेंगे, बल्कि वे जमीनी स्थिति का जायजा लेंगे” लेकिन फिलहाल चीन अफगानिस्तान में अमेरिका की नाकामी और उसके दुष्प्रचार का पूरा फायदा उठा रहा है. चीनी सरकारी मीडिया ने काबुल हवाई अड्डे की तस्वीरें प्रकाशित करते हुए कहा कि यह उस अशांति का संकेत है जिसे अमेरिका पीछे छोड़ रहा है. मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा, “वॉशिंगटन ने अशांति, विभाजन और टूटे परिवारों की एक भयानक विरासत को पीछे छोड़ा है. अमेरिका की ताकत और भूमिका विनाश है, निर्माण नहीं” एए/वीके (एएफपी).