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करजई और अब्दुल्ला मिले तालिबान के नेताओं से

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला की तालिबान के नेताओं के साथ मुलाकात हुई है. इसे देश में तालिबान द्वारा एक नई सरकार बनाने की प्रक्रिया के शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.दोनों अफगान नेताओं की मुलाकात तालिबान नेता अनस हक्कानी से हुई. अनस हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई हैं. वो आतंकवाद के आरोप में जेल की सजा भी काट चुके हैं. उनके हक्कानी नेटवर्क को अमेरिका ने एक आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है.

मुलाकातों के बाद करजई के एक प्रवक्ता ने कहा कि ये शुरूआती मुलाकातें हैं और इनके बाद तालिबान के उच्च नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से बातचीत होगी. तालिबान सरकार बनाने के अपने इरादे की पहले ही घोषणा कर चुका है. संगठन ने एक बयान में कहा है कि उसकी सरकार एक “समावेशी, इस्लामिक सरकार” होगी. नहीं गए थे देश छोड़ कर 15 अगस्त के दिन जब तालिबान द्वारा काबुल कब्जा लेने के ठीक पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर चले गए थे, तब करजई ने ट्वीट करके कहा था कि वो देश के अंदर ही हैं और अब्दुल्ला अब्दुल्ला और वो पूर्व मुजाहिद्दीन नेता गुलबुद्दीन हेकमतियार के साथ मिल कर सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के लिए काम करेंगे. हेकमतियार 1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध में सक्रीय था. माना जाता है कि सोवियत सेना को अफगानिस्तान से निकालने के उद्देश्य से सीआईए ने जिन मुजाहिद्दीन लड़ाकों को पैसे दिए उनमें सबसे ज्यादा पैसे और मदद पाने वाल संगठन हेकमतियार का ही था.

राष्ट्रपति होने का दावा 2001 में उसने करजई की सरकार के खिलाफ भी एक सशस्त्र अभियान चलाया लेकिन वो नाकाम रहा. देखना होगा कि करजई, अब्दुल्ला और हेकमतियार तालिबान की सरकार में शामिल होते हैं या नहीं. हालांकि सरकार को लेकर अभी और मोर्चों पर भी संघर्ष होने की संभावना है. अशरफ गनी सरकार में उप-राष्ट्रपति रहे अमरुल्ला सलेह ने दावा किया है कि वो भी अभी अफगानिस्तान के अंदर ही हैं और देश के संविधान के अनुसार इस समय देश के कार्यकारी राष्ट्रपति हैं. हालांकि सलेह का ठिकाना अभी अज्ञात है. गनी खुद इस वक्त कहां हैं इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है.

इस बीच दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देशों में इस बात को लेकर उधेड़बुन चल रही है कि तालिबान अगर अपनी सरकार की घोषणा करेंगे तो उस सरकार को मान्यता देनी चाहिए या नहीं. मान्यता देने का सवाल यूरोपीय संघ की विदेश नीति और सुरक्षा नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा है कि तालिबान से बात करना जरूरी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि तालिबान को मान्यता दे दी जाए. बोरेल ने कहा कि बातचीत नाटो सैनिकों के साथ काम कर चुके अफगान लोगों और विदेशी नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित रूप से निकाल लेने के लिए जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा, “अफगानिस्तान में जो हुआ है वो पूरी पश्चिमी दुनिया की हार है और हमें यह स्वीकार करने की हिम्मत रखनी चाहिए” इस बीच चीन ने कहा है कि वो पहले अफगानिस्तान में एक “खुली, समावेशी और व्यापक रूप से प्रतिनिधित्व वाली” सरकार के बनने का इंतजार करेगा और उसके बाद उसे मान्यता देने पर विचार करेगा. सीके/एए (एपी, रॉयटर्स).