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RTI रिपोर्ट में खुलासा: 3.86 करोड़ भारतीयों ने वैक्सीन की दूसरी खुराक में देरी से कोरोना का खतरा बढ़ाया

मेमोरी सेल’ का उत्पादन करती है ‘बूस्टर डोज’
-दूसरी खुराक ‘बूस्टर डोज’ की भूमिका निभाती है। यह न सिर्फ कोविड रोधी एंटीबॉडी का स्तर बढ़ाती है, बल्कि प्रतिरोधक तंत्र में ‘मेमोरी-बी सेल’ का उत्पादन भी सुनिश्चित करती है। ‘मेमोरी-बी सेल’ एक किस्म की श्वेत रक्त कोशिका है। सार्स-कोव-2 वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही इसमें मौजूद रिसेप्टर प्रतिरोधक तंत्र को सचेत कर देते हैं। इससे वह संक्रमण से लड़ने में कारगर एंटीबॉडी पैदा करने लगता है।
संक्रमित होने पर दो से तीन महीने करें इंतजार
-अगर आप कोविड-19 टीके की पहली खुराक लगवाने के बाद संक्रमित हो जाते हैं तो आपको दूसरी खुराक के लिए दो से तीन महीने तक इंतजार करने की सलाह दी जाती है। दरअसल, संक्रमित होने के बाद आपके शरीर में दोबारा एंटीबॉडी बनने शुरू हो जाते हैं।

कोरोना संक्रमण के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए पूर्ण टीकाकरण बेहद जरूरी है। हालांकि, कई बार लोग वैक्सीन की अनुपलब्धता तो कई बार बुखार या फिर किसी अन्य कारण से तय समय पर दूसरी खुराक नहीं ले पाते। एक आरटीआई के मुताबिक 3.86 करोड़ से अधिक भारतीयों ने टीके की दूसरी खुराक लेने में देरी की। विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि वैक्सीन का पूरा लाभ लेने के लिए समय पर दूसरी खुराक लगवाना अहम है। डेल्टा वेरिएंट के खतरे के मद्देनजर यह और भी ज्यादा आवश्यक है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि दोनों डोज तय समयसीमा में लेना अधिक असरदार जरूर है, लेकिन अगर इसमें थोड़ी देरी हो जाए तो भी घबराने वाली कोई बात नहीं। न तो आपकी पहली खुराक बेअसर हो जाएगी, न ही आपको नए सिरे से टीकाकरण करवाने की जरूरत पड़ेगी। तय तारीख से दस से 15 दिन की देरी से दूसरी डोज लगवाने पर भी उतना ही फायदा मिलेगा।

क्यों जरूरी है दूसरी खुराक
1.नए वेरिएंट से बचाव में मददगार
-पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) के मई में प्रकाशित अध्ययन की मानें तो कोविड टीके की दूसरी खुराक सार्स-कोव-2 वायरस के नए स्वरूपों से बेहतर सुरक्षा दिला सकती है। इसे लगवाने के बाद वैक्सीन का असर 33 फीसदी से बढ़कर 60 से 88 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।

2.दोबारा संक्रमण की आशंका 0.07 फीसदी
-अमेरिका स्थित वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जून में प्रकाशित अध्ययन में दावा किया था कि पूर्ण टीकाकरण के बाद कोरोना की जद में आने की आशंका महज 0.07 फीसदी रह जाती है। वैक्सीन संक्रमितों के अस्पताल में भर्ती होने या दम तोड़ने का खतरा घटाने में भी कारगर है।

3.लक्षण उभरने का जोखिम भी कम
-नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में टीकाकरण के बाद कोरोना की चपेट में आने वाले ज्यादातर मरीज ‘एसिम्प्टोमैटिक’ यानी बिना लक्षण वाले मिले। इससे स्पष्ट है कि वैक्सीन भले ही वायरस को हमला करने से नहीं रोक पाई हो, पर यह व्यक्ति के गंभीर रूप से बीमार पड़ने या दम तोड़ने का खतरा घटाने में जरूर सफल रही।

किसमें कितना फासला संभव
-84 से 112 दिन के बीच ली जानी चाहिए कोविशील्ड की दूसरी खुराक
-28 से 42 दिन का फासला होना चाहिए कोवैक्सीन की दोनों खुराक में
-21 दिन के अंतराल पर स्पूतनिक-वी की दूसरी खुराक लगवाना जरूरी
3.86 करोड़ से ज्यादा लोग चूके
-34072993 लाभार्थियों ने समय पर नहीं लगवाई कोविशील्ड की दूसरी खुराक
-4678406 लोगों को निर्धारित समयसीमा में नहीं लगी कोवैक्सीन की दूसरी डोज
(नोट : आंकड़े 17 अगस्त तक के, स्रोत : एक आरटीआई पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का जवाब)