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गे छात्र ने कहा-भाग जाना चाहता हूं, पर बाहर निकलूंगा तो मार डालेंगे, तालिबान शासन में जान बचाने को जूझ रहे LGBT अफगान

अफगानिस्तान में तालिबान शासन लागू होने के बाद वहां पर जिंदगी मुश्किल होती जा रही है। महिलाओं के लिए तो मुश्किलें बढ़ी ही हैं, साथ ही एक अन्य समुदाय भी है जो अपने आपको परेशानी में पा रहा है। यह है अफगानिस्तान का एलजीबीटी समुदाय। इस दर्द को एक एलजीबीटी अफगान की इन बातों से बखूबी महसूस किया जा सकता है। इस अफगान ने कहा ‘अफगानिस्तान में गे या लेस्बियन लोगों के लिए जिंदगी पहले ही बहुत मुश्किल थी। तालिबान शासन के लागू होने के बाद तो यह जानलेवा जैसा हो गया है।’ यह बात एक एलजीबीटी अफगान ने कही। तालिबान की बढ़ती हिंसा को देखते हुए अब वह यहां से भाग जाने का मन बना रहा है। हालांकि वह यहां से निकल जाएगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। वजह, यहां से भागने के लिए काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचना जरूरी है, लेकिन तालिबान उसे वहां तक पहुंचने देंगे यह बात बहुत कठिन नजर आती है।बढ़ गया है जान का खतरा
एक गे अफगान छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस देश से भाग जाना ही सबसे बेहतर विकल्प है। अगर उसे उसे वीजा मिलता है और किसी देश में रहने की परमिशन मिलती है तो वह सबकुछ छोड़कर भाग जाना चाहेगा। उसने कहा कि वह किसी भी देश जा सकता है, लेकिन यहां नहीं रह सकता। अब हमारे लिए यहां रहने का कोई मतलब नहीं रह गया है। इन सबके बीच यह 21 वर्षीय युवा अंदर छुपकर किसी तरह अपने दिन गुजार रहा है। उसे इस बात का डर है कि बाहर निकलने पर पता नहीं वह सुरक्षित भी रहेगा या नहीं। खासतौर पर एयरपोर्ट के हालात को देखने के बाद उसका डर और ज्यादा बढ़ गया है।

विभिन्न देशों से शरण देने की अपील
इस बीच एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों की वकालत करने वाले कनाडा स्थित एक ग्रुप ने विभिन्न देशों से अपील की है। इस अपील में उसने गे, लेस्बियन या ट्रांसजेंडर अफगान शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने पर विचार करने को कहा है। उसने कहा है कि एलजीबीटी लोगों के प्रति लोगों के मन में बहुत ज्यादा नकारात्मकता है। इसके चलते इस समुदाय से जुड़े लोगों में अपनी सुरक्षा और पहचान को लेकर बहुत ज्यादा असुरक्षा है। ग्रुप ने आगे कहा कि जबकि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी हो चुकी है, इस बात का अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि हालात और मुश्किल होंगे। अमेरिकी उपन्यासकार नेमत सेदात, जोकि एक गे अफगान-अमेरिकन हैं और पांच साल की उम्र में देश छोड़ चुके हैं। उन्होंने अफगान यूनिवर्सिटी में 2012 से 2013 की पढ़ाया है। सेदात ने बताया कि 100 से ज्यादा एलजीबीटी अफगान नागरिका उनसे संपर्क कर चुके हैं। यह सभी देश छोड़कर भाग जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लोग मुझे मैसेज भेज रहे हैं। मुझसे पूछ रहे हैं कि हम क्या करें, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं है।

पहल तो हुई है, लेकिन सबकी हां नहीं है
हालांकि तमाम देशों की तरफ से अफगान लोगों को अपने यहां शरण देने की पहल की जा रही है। लेकिन इसमें भी
अफगान एलजीबीटी लोगों के लिए गारंटी नहीं है। कनाडा और आयरलैंड ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके यहां एलजीबीटी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अफगान नागरिक शरण ले सकते हैं। कनाडा अपने यहां 20 हजार अफगान शरणार्थियों को जगह दे रहा है। उसने कहा है कि इसमें एलजीबीटी समुदाय के लोग भी आ सकते हैं। लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों की तरफ से इस दिशा में कोई आश्वासन नहीं मिला है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अफगान शरणार्थियों के लिए 500 मिलियन अमेरिकन डॉलर की रकम की घोषणा की है। वहीं यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता नेड प्राइस ने इन शरणार्थियों को पूर्ण सुरक्षा देने की बात कही है। लेकिन जब उनसे अफगान एलजीबीटी समुदाय को लेकर सवाल पूछा गया तो कोई जवाब नहीं मिला। दूसरी तरफ  ब्रिटेन ने 5000 अफगान नागरिकों को अपने यहां शरण देने की घोषणा की है। इसमें महिलाओं, लड़कियों और धार्मिक व अन्य माइनॉरिटी के लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है। लेकिन यहां पर भी अफगान एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए कोई आश्वासन नहीं मिला है। वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो किसी भी अफगान नागरिक को अपने यहां शरण देने के इच्छुक नहीं हैं। इनमें ऑस्ट्रेलिया, टर्की और ईरान जैसे देश शामिल हैं।