लखनऊ | उत्तर प्रदेश की चुनाव की वजह से मायावती कल अपना जन्मदिन सादगी से मनाने जा रही है | यह पहला मौका होगा जबा मायावती अपना जन्म दिन सादगी से मनाने का फैसला किया है | सत्ता रहते मायावती का जन्मदिन खासिढूक्धाम से मानती रही है |कभी नोटों की माला पहनकर अपना जम्म मानकर विरोधियो को आलोचना करने पर मजबूर करने वाली मायावती का नाम कौन नहीं जानता।
यह वह नाम है जो देश के सबसे बड़े राज्य यूपी का बड़ा चेहरा है। उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी मायावती आईएएस बनना चाहती थी लेकिन गरीबी व बदहाली की जंग लड़ रही इस हौसलेबुलंद महिला के किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वे यूपी की मुख्यमंत्री बनी। आज उनके बिना यूपी के राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
मायावती का शुरुआती जीवन
मायावती का जन्म एक गरीब और दलित परिवार में 15 जनवरी 1956 में दिल्ली के लेडी हार्डिंस अस्पताल में हुआ था। उनके पिता प्रभु दास पोस्ट ऑफिस में क्लर्क और मां रामरती गृहणी थीं। मायावती के छह भाई और दो बहनें हैं। दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में मकान के दो छोटे कमरों में उनका पूरा परिवार रहता था। और यहीं खेलते-कुदते मायावती का बचपन गुजरा। मायावती की मां भले ही अनपढ़ थीं, लेकिन अपने बच्चों की उच्च शिक्षा देना चाहती थीं।
टीचर बनकर की एलएलबी की पढ़ाई
इंद्रपुरी इलाके के प्रतिभा विधालय से मायावती ने शुरुआती पढ़ाई की। बचपन से ही माया का सपना था कलेक्टर बनने का। बीएड करने के प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने लगीं। वो दिन में बच्चों को पढ़ातीं और रातभर अपनी पढ़ाई करतीं। 1977 का वो दौर था, जब उनके आर्थिक हालातों ने उन्हें एक स्कूल टीचर बना दिया था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी भी की।
मायावती ने कभी नहीं मानी हार
गरीबी और बदहाली की शुरुआती जिंदगी के बावजूद मायावती ने कभी हार नहीं मानी, जिसका परिणाम है कि आज प्रदेश की राज्य की राजनीति की समीकरण उन्हीं से तय होते हैं।
वह दलित, वंचित और शोषित तबकों के लिए हौसला बन चुकी हैं। जुझारू राजनीतिज्ञ माने जाने वाली मायावती ने जो कुछ हासिल किया है, वो एक लंबी राजनीतिक लंड़ाई के बाद ही हासिल किया है जिसमें काशीराम का बहुत बड़ा योगदान है।