आईएस खुरासान, हक्कानी नेटवर्क और तालिबान का त्रिकोण दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है। तालिबान और आईएस खुरासान दोनों ही अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात की स्थापना चाहते हैं, मगर एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन माने जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, दोनों संगठनों के बीच भारी मतभेद हैं। हालांकि, इन दोनों की कट्टर विचारधारा काफी हद तक एक समान है। इस त्रिकोण में शामिल हक्कानी नेटवर्क तालिबान के ज्यादा करीब है और समय-समय पर दोनों एक-दूसरे की मदद करते हैं।
तो चलिए जानते हैं इस त्रिकोण के बीच क्या हैं समानताएं
1.शरीया कानून – अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात और शरीया कानून की स्थापना करना तीनों संगठनों का मुख्य मकसद
2.महिला शिक्षा, रोजगार -महिलाओं के पढ़ने-लिखने, नौकरी करने के खिलाफ। हालांकि, तालिबान ने इस बार समर्थन का भरोसा दिलाया
3.पर्दा प्रथा- तालिबान, आईएस खुरासान और हक्कानी नेटवर्क लड़कियों व महिलाओं के हिजाब में रहने के पक्षधर हैं
4.पश्चिम विरोधी- तीनों संगठन अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो बलों के अलावा उनके समर्थकों को निशाना बनाते आए हैं
इस त्रिकोण के बीच किन मसलों पर है मतभेद
1.एक जैसी विचारधारा के बावजूद तालिबान और आईएस खुरासान में कोई तालमेल नहीं, विशेषज्ञ हक्कानी नेटवर्क को इनके बीच की कड़ी मानते हैं
2.तालिबान पर वैश्विक इस्लामी पंथ के बजाय राष्ट्रवाद और जातीय आधार पर संगठन को खड़ा करने का आरोप लगाता है आईएस खुरासान
3.आईएस खुरासान ने दोहा में अफगानिस्तान से विदेशी बलों की वापसी को लेकर तालिबान की ओर से किए गए शांति समझौते का खुलकर विरोध किया था
4.आईएस खुरासान के नेता दोहा शांति समझौते को
अब चलिए जानते हैं तीनों के बारे में
आईएसकेपी
इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रोविंस (आईएसकेपी) इस्लामिक स्टेट (आईएस) का ही एक रूप है। खुफिया इकाइयों की मानें तो इस संगठन में अधिकतर पाकिस्तानी शामिल हैं। इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रोविंस (आईएसकेपी) को आईएसआईएस-के नाम से भी जाना जाता है। इसके पास 1500 से 2200 आतंकी लड़ाके होने का अनुमान है। इसकी स्थापना भी पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पास की गई थी।
हक्कानी नेटवर्क
हक्कानी नेटवर्क के पास बड़े हमलों को अंजाम देने वाले कुशल लड़ाके हैं। ये लड़ाके तकनीकी रूप से माहिर हैं और एक्सप्लोसिव डिवाइस व रॉकेट बनाने में सक्षम हैं। अलकायदा के साथ इस संगठन के रिश्ते अच्छे हैं। इस संगठन के बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह क्षेत्रीय और विदेशी चरमपंथी संगठनों से पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय आतंकी सगठनों के साथ मेलजोल में बड़ी भूमिका निभाता है।
तालिबान
पश्तो भाषा के शब्द ‘तालिबान’ का मतलब विद्यार्थी या छात्र होता है। उत्तरी पाकिस्तान में 1990 के दशक में इस संगठन का उभार हुआ। यह माना जाता है कि मुख्यत: पश्तून लोगों का यह आंदोलन सुन्नी इस्लामिक धर्म की शिक्षा देने वाले मदरसों से जुड़े लोगों ने खड़ा किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय पाकिस्तान स्थित इन मदरसों की फंडिंग सऊदी अरब करता था। अपने शुरुआती दौर में तालिबान शांति और सुरक्षा स्थापित करने का दावा किया करता था। लेकिन इसके साथ ही वह सत्ता में आने पर इस्लामिक कानून शरिया के आधार पर शासन स्थापित करने की बात भी कहता था और इसके लिए हिंसक अभियान भी चलाता था। तालिबान अफगान पर एक बार और 1996 से 2001 तक शासन कर चुका है और फिर से उसने काबुल की सत्ता पर वापसी की है।
लेकर तालिबान और उसके मौजूदा नेतृत्व पर जिहाद की राह छोड़ने के आरोप भी लगाते हैं