नौ जजों की नियुक्ति की आदेश होने बाद सुप्रीम कोर्ट में रिक्तियों की संख्या अब मात्र एक रह गई है। लेकिन हाईकोर्ट में रिक्तियों को भरना सुप्रीम कोर्ट के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है। उच्च अदालतों में जजों की रिक्तियों की संख्या 455 है जो कुल क्षमता का लगभग 45 फीसदी है। रिक्तियों का आंकड़ा पिछले एक साल से लगभग यही बना हुआ है।
देश के सबसे बड़े हाईकोर्ट इलाहाबाद में 1 अगस्त 2021 को 66 रिक्तियां बनी हुई हैं। यहां जजों की अधिकृत संख्या 160 है। इसके बाद कलकत्ता (कुल 72) का नंबर आता है जहां 41 रिक्तियां हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जजों के 39 पद खाली हैं। पटना हाईकोर्ट में 34, दिल्ली हाईकोर्ट में 30, बंबई हाईकोर्ट में 31 और राजस्थान हाईकोर्ट में जजों की 25 रिक्तियां हैं। इसके अलावा झारखंड हाईकोर्ट में 10 और उत्तराखंड हाईकोर्ट में भी न्यायाधीशों के 4 पद खाली हैं। सबसे ज्यादा रिक्तियां कलकत्ता और तेलंगाना उच्च न्यायालय में है, जहां जजों की अधिकृत संख्या क्रमशः 72 और 42 है लेकिन जजों की रिक्तियां 41 तथा 30 हैं।
तीन हाईकोर्ट में कोई रिक्ति नहीं:
सिक्किम, मेघालय और मणिपुर हाईकोर्ट में कोई रिक्ति नहीं है और यह पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। हालांकि इन उच्च न्यायालयों जजों की संख्या 3 से 4 जजों की है, इसलिए यहां रिक्तियां नहीं हैं। हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए अनेक प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास लंबित पड़े हैं। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि हाईकोर्ट कॉलेजियम से प्रस्तावों के आने का अनुपात रिक्तियों के अनुसार नहीं है। हाईकोर्ट में नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट में तीन वरिष्ठतम जजों का कॉलेजियम करता है।
57 लाख मुकदमे लंबित:
गौरतलब है कि देश के 25 हाईकोर्ट में लगभग 57 लाख मुकदमे लंबित हैं, नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के अनुसार इन लंबित मुकदमों का लगभग 54 फीसदी सिर्फ पांच हाईकोर्ट-इलाहाबाद, पंजाब हरियाणा, बंबई, मद्रास और राजस्थान हाईकोर्ट में हैं। इन हाईकोर्ट में अपराधिक अपीलों की सुनवाई में कई सालों का समय लग रहा है। इस स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जजों को दो साल के हाईकोर्ट में एडहॉक जज नियुक्त करने का प्रस्ताव किया था। लेकिन जजों की नियुक्ति के मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) के आलोक में केंद्र सरकार ने इसे मंजूर नहीं किया।