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कुशीनगर के पडरौना में भी है वृंदावन, यहां भी लुभाती हैं निधिवन की लताएं

आप कुशीनगर के पडरौना शहर आएं और यहां का वृंदावन धाम नहीं देखा तो यात्रा अधूरी है। यहां वृंदावन की मिट्टी की सुगंध है तो वृंदावन की तरह यहां के निधिवन की लताएं मन मोह लेती हैं। काले और सफेद संगमरमर से बनी राधा बल्लभजी की मूर्ति के दर्शन होते हैं। जन्माष्टमी पर कृष्ण कन्हाई का जन्मोत्सव मनाने श्रद्धालुओं का समूह उमड़ता है।

186 साल पहले राजा ईश्वरी प्रताप ने कराया था निर्माण

186 साल पहले पडरौना राज परिवार के राजा ईश्वरी प्रताप नारायण सिंह शहर में स्थित राजमहल के बगल में वृंदावन बसाया था। साल 1835 में बैलगाड़ियों पर रखकर वृंदावन से ही मिट्टी मंगाई गई थी। मथुरा के कलाकारों द्वारा यहां रासलीला की जाती थी। महल में बैठकर राज परिवार के लोग रासलीला देखते थे तो शहर के लोग भी इस पल के साक्षी बनते थे। प्रेमीजन कम हुए तो रासलीला बंद कर दी गई। मंदिर निर्माण के समय मध्य प्रदेश के ग्वालियर से पुजारी बुलाए गए थे। उनकी आठवीं पीढ़ी अब ठाकुरजी की सेवा कर रही है। जन्माष्टमी के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। राज परिवार के सदस्य इस दिन पूजन-अर्चन करते हैं।

देखने लायक है संगमरमर पर बनी नक्काशी

वृंदावन के निधिवन की तरह इसे भी संवारा गया था। तरह-तरह की फूल-पत्तियां, पेड़-पौधे लगाए गए थे। वन में लगी भगवान विष्णु की मूर्ति कुछ साल पहले चोरी हो गई, लेकिन सिंहासन अब भी है। प्रत्येक रविवार को राधा रानी व ठाकुरजी का श्रृंगार किया जाता है। यहां बागवानी और सुव्यवस्थित रसोई भी है। बगीचे में तैयार होने वाली सब्जियों का भोग लगाया जाता है। यहां संगमरमर पर बनी नक्काशी को देख लोग वाह-वाह कह उठते हैं। इस नक्काशी को राजस्थान के कलाकारों ने बनाया था।

आज तक नहीं सूखा कुओं का पानी

मंदिर निर्माण के समय ही रामधाम पोखरे की भी खुदाई कराई गई थी। बताते हैं कि इस पोखरे के भीतर सात कुएं हैं। इसके अतिरिक्त दो कुएं और भी हैं। इन्हीं कुओं के पानी से ठाकुरजी का भोग लगाने से लेकर अन्य जरूरी काम होते थे। अब कुएं का उपयोग तो बंद हो गया, लेकिन इसका पानी आज तक नहीं सूखा। यहां महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नानघर भी बनवाए गए थे, जो अब भी मौजूद हैं। राज परिवार के कुल देवता भगवान श्रीकृष्ण होने के नाते परिवार द्वारा स्थापित चीनी मिलों का नाम भी श्रीकृष्ण शुगर मिल रखा गया था।

कदंब के पेड़ से उभरती थीं राम नाम की आकृतियां

इस वृंदावन में स्थित कदंब के पेड़ से छिलके हटाने पर राम नाम की आकृति उभरती थी। कुछ साल पहले पेड़ को छंटवा दिया गया, जिसके बाद आकृतियां दिखनी बंद हो गईं।

राज परिवार ने बताया

राज परिवार के कुंवर अनिल प्रताप नारायण सिंह ने बताया कि वृंदावन बसाने के लिए मथुरा वृंदावन में जमीन खरीदी गई थी और वहीं से मिट्टी और पौधे लाए गए थे। इस क्षेत्र को भगवान श्रीकृष्ण की लीला के लिए बनाया गया था। रात के समय यहां रासलीला होती थी। इस मंदिर के नाम से वृंदावन में आज भी जमीन है, जिसे पडरौना कुंज के नाम से जाना जाता है।