अफगानिस्तान पर तालिबानी शासन से युवा पीढ़ी अपने भविष्य और आजादी को लेकर बेचैन है। सभी के सामने बस एक सवाल है कि उनके भविष्य का क्या होगा। महिलाओं के सामने शिक्षा और नौकरी करने का संकट मंडरा रहा है।
लगभग दो तिहाई अफगान 25 वर्ष से कम आयु के हैं। इसके साथ ही लगभग एक पूरी पीढ़ी तालिबान के 1996 से 2001 तक के शासन के बारे में जानती भी नहीं है। उस दौरान तालिबान ने सख्त शरिया कानून के जरिए बर्बरता की सारी हदे लांघ दी थी। लड़कियों के स्कूल जाने, महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी थी। साथ ही सार्वजनिक फांसी दी जाती थी। अमेरिकी समर्थित सेनाओं ने 2001 में तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद से तालिबान आतंकियों ने देश के हजारों अफगानों की जान ली।
हालांकि इस बार अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान के सुर थोड़ा नरम हैं। तालिबान ने छात्रों को आश्वस्त किया है कि उनकी शिक्षा बाधित नहीं की जाएगी। साथ ही महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा और प्रतिभाशाली पेशेवरों से देश नहीं छोड़ने का आग्रह भी किया है। आधा दर्जन अफगान छात्रों और युवा पेशवरों ने रायटर्स के साथ बातचीत में स्वतंत्रता छीनने का डर जताया है। ये वो युवा आबादी है जो सेलफोन और पॉप संगीत सुनने की आदी है। इन युवाओं ने तालिबान को अपने माता-पिता द्वारा सुनाए गए किस्से-कहानियों में ही जाना है। बहुतों ने तो पहली बार तालिबान लड़ाकों को देखा भी तब जब वे काबुल की सड़कों पर पैट्रोलिंग करते नजर आए।प्रवेश परीक्षा टॉप करने की खुशी चिंता में बदली
ऐसी एक 20 वर्षीय युवा ने अपने विचार साझा किए। साल्गी को पिछले हफ्ते पता चला कि उसने इस साल अफगानिस्तान विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा देने वाले दो लाख छात्रों में टॉप किया है तो वह बहुत खुश हुई। काबुल में पढ़ाई के दौरान वह महीनों तक कमरे से बाहर ही निकली। इस दौरान कई बार वह भोजन करना भी भूल जाती थी। साल्गी ने बताया कि जब रिजल्ट का पता चला तो लगा कि दुनिया का सबसे कीमती उपहार मिल गया। साल्गी ने बताया कि इस दौरान मैं और मेरी खुशी के मारे एक दूसरे के गले लगकर रो पड़ी। लेकिन पिछले हफ्ते की घटनाओं को याद करते ही उसकी खुशी तुरंत चिंता में बदल जाती है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के जाने के बाद 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे ने सबकुछ बदल कर रख दिया।
‘मैं सबसे किस्मत वाली और बदकिस्मत एक साथ हो गई’
हम एक बहुत ही अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। हमें कुछ नहीं समझ में आ रहा कि आगे क्या होगा। मुझे लगता है कि मैं सबसे किस्मत वाली और बदकिस्मत एक साथ हो गई – साल्गी, 20 वर्षीय अफगान छात्रा
हमारी उम्मीदें और सपने हमसे छीन लिए गए
21 साल की सूजन नबी कहती हैं कि उन्होंने बड़ी बड़ी योजनाएं बना रखी थीं। वह बताती हैं कि अपने लिए मैंने आने वाले 10 साल के लिए कई ऊंचे लक्ष्य तय किए थे। हमें जिंदगी की उम्मीद थी, बदलाव की उम्मीद थी। लेकिन एक हफ्ते में उन्होंने देश कब्जा लिया और 24 घंटे में हमारी उम्मीदें, हमारे सपने हमसे छीन लिए गए।
80 फीसदी बढ़ा प्राइमरी में लड़कियों का नामांकन
कुछ युवतियां तालिबान की जीत से विशेष रूप से चिंतित हैं। इसका कारण है तालिबान का लड़कियों के प्रति पुराना व्यवहार। वहीं तालिबान के 2001 में सत्ता से हटने के बाद से प्राइमरी स्कूलों में लड़कियों का नामांकन शून्य से बढ़कर 80 फीसदी हो चुका है। वहीं हाईस्कूल में नामांकन की दर वर्ष 2001 में 18 फीसदी थी जो अब 50 फीसदी है।
ईमेल और सोशल मीडिया मैसेज को डिलीट किया
15 अगस्त की सुबह जब तालिबान काबुल की ओर बढ़ रहे थे तब 26 साल के जावेद यूनिवर्सिटी से घर की ओर दौड़ पड़े थे। अपना पूरा नाम बताने से डर रहे जावेद ने सारे ईमेल, सारे सोशल मीडिया मेसेज डिलीट कर दिए हैं, खासकर वे जो अमेरीकियों को भेजे गए थे। जावेद बताते हैं कि अमेरिकी फंड से चलने वाले प्रोग्राम से उन्हें जितने भी सर्टिफिकेट मिले थे, वे सारे उन्होंने अपने घर के पिछवाड़े में जला दिए। अपने अच्छे काम के लिए उन्हें एक ट्रॉफी मिली थी जो उन्होंने तोड़ दी। पिछले दो हफ्ते में ऐसे तमाम लोगों ने देश छोड़ देने की कोशिश की है, जो विदेशी संस्थाओं के लिए काम करते थे।
‘मैं इन्हें खोना नहीं चाहती’
कभी देश में सिर्फ एक रेडियो स्टेशन हुआ करता था, आज वहां 170 रेडियो स्टेशन हैं, 100 से ज्यादा अखबार और दर्जनों टीवी स्टेशन हैं। स्मार्टफोन और इंटरनेट तो तालिबान के राज में होता ही नहीं था, जिसने युवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमाएं खोल दी हैं। 18 साल की इलाहा तमीम ने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा पास की है। वह कहती हैं, ये चीजें तो हम हर वक्त इस्तेमाल करते हैं। जब रिलैक्स होना है तब भी और जब दुनिया में हो रही नई घटनाओं के बारे में जानना है तब भी। मैं इन्हें खोना नहीं चाहती।