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तालिबान ने छवि सुधारने के लिए लिया ड्रग्स का सहारा, अफीम की खेती पर लगाई रोक

तालिबान दुनियाभर के देशों से मान्यता पाने के लिए अब अपनी साफ-सुथरी छवि दिखाने की कोशिश कर रहा है। इसी के चलते तालिबान ने अपने सबसे बड़े कमाई के स्रोत अफीम की खेती पर रोक लगा दी है। इससे पहले पिछले साल तालिबान ने ड्रग से 11 हजार करोड़ रुपए कमाए थे।  मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हालिया दिनों में तालिबान ने कंधार में किसानों से कहा कि अब अफीम उगाना अवैध होगा।

गौरतलब है कंधार में अफीम की खेती सबसे ज्यादा होती है। अफीम यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है। इसके चलते देशभर में कच्चे अफीम के दाम तेजी से बढ़े हैं। ड्रग के व्यापार से ही तालिबान के 80 हजार लड़ाकों की फंडिंग होती है। नाटो की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में तालिबान ने ड्रग से 11 हजार करोड़ रुपये कमाए। 2001 में अफीम का उत्पादन 180 टन था, जो 2007 में बढ़कर 8,000 टन हो गया।

18 अगस्त को तालिबानी प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि देश के नए शासक ड्रग के व्यापार को इजाजत नहीं देंगे। उस समय मुजाहिद ने यह नहीं बताया था कि इस व्यापार को रोकने के लिए क्या करेंगे। लेकिन अब तालिबान ने अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया।

तीन गुने दाम में बिक रहा
प्रतिबंध के चलते कच्चे अफीम के दाम में काफी तेजी देखी जा रही है। कंधार, उरुजगन और हेलमन में स्थानीय किसानों ने कहा कि कच्चे अफीम के दाम तीन गुना हो गए हैं। पहले यह 70 डॉलर में एक मिलता था, जबकि अब 200 डॉलर में बिक रहा है। मजार-ए-शरीफ में भी अफीम की कीमत दोगुनी हो गई है। कच्चे अफीम से ही हेरोइन ड्रग बनता है।

2017 में अफगानिस्तान में 9,900 टन का उत्पादन
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में अफगानिस्तान में अफीम का उत्पादन 9,900 टन रहा। इसकी बिक्री से किसानों ने करीब 10 हजार करोड़ रुपए की कमाई की। यह देश की जीडीपी का सात फीसदी हिस्सा था। रिपोर्ट के मुताबिक अवैध अफीम की इकोनॉमी करीब 49 हजार करोड़ रुपए की रही।