उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है। भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने असंतुष्टों पर निगाहें रखनी शुरू कर दी हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अंदरूनी तौर पर इस पर काम भी शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि चुनाव का ऐलान होने पर दोनों दलों के कई नेता पाला बदल सकते हैं। उत्तराखंड विधान सभा चुनावों में अभी तक यह देखने में आया है कि हर बार चुनावों के बाद सत्तापक्ष को विपक्ष में बैठना पड़ा। भाजपा ने उत्तराखंड में इस मिथक को तोड़ने का ऐलान किया है और इसी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने प्रत्येक विधानसभा वार के पिछले चुनावों के मतदान का आंकड़ा जुटा कर इसका आकलन कर रही है। रणनीतिकार इसके जरिए पार्टी के मजबूत और कमजोर पक्ष को तलाश रहे हैं और कमजोर विधानसभा क्षेत्रों में विपक्ष के असंतुष्ट नेताओं या फिर पिछले चुनावों में जिन निर्दलीयों ने दो हजार से अधिक वोट खींचे हैं, उन पर डोरे डालने की फिराक में है। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि चूंकि, कई विस सीटों पर हार-जीत का फासला बहुत कम रहता है, ऐसे में इन सीटों पर विपक्ष के नेताओं या फिर निर्दलीयों को मनाने में कोई गुरेज नहीं करना चाहिए।
सूत्रों ने दावा किया है कि कांग्रेस के तीन पूर्व विधायक व मतदाताओं को प्रभावित करने वाले कुछ लोग भाजपा के संपर्क में हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक फिलहाल असंतुष्ट बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा ने यदि इन नेताओं को उनकी इच्छा के अनुसार पार्टी ने उन्हें जगह दी तो फिर यह रणनीति अंजाम तक पहुंचने की उम्मीद है।
ये नेता छोड़ चुके हैं पार्टी
भाजपा काडर से जुड़े दो नेता अब तक पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। इनमें पूर्व दर्जाधारी रविंद्र जुगरान व हरिद्वार के नरेश शर्मा शामिल हैं। नरेश भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के रिश्तेदार भी हैं। इन दोनों नेताओं ने आप का दामन थामा है। इसके लिए अलावा भाजपा की विचारधारा के कर्नल कोठियाल भी अब आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने किसी तरह उन्हें चुनाव न लड़ने से मना दिया था। वहीं, रविवार को संघ परिवार से जुड़े व विहिप के पूर्व प्रदेश महामंत्री महेंद्र नेगी भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
भाजपा में हमेशा अन्य दलों की अपेक्षा कार्यकर्ताओं का सम्मान सर्वोपरि है। पार्टी कार्यकर्ता को जो जिम्मेदारी सौंपी जाती है, उसे बखूबी निभाता भी है। चुनावी बेला पर कुछ महत्वकांक्षी कार्यकर्ता पाला बदलते रहते हैं।
जिताऊ हुए तो बाहरी नेताओं को आयात कर सकती है कांग्रेस
भाजपा के मजबूत और असंतुष्ट नेताओं पर कांग्रेस भी पैनी निगाहें गड़ाए हुए है। खासकर जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशियों का प्रदर्शन कमजोर रहा है, उनमें कांग्रेस जरूरत पड़ने पर दूसरे दलों से मजबूत नेताओं को ‘आयात’ भी कर सकती है। हाल में कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत कुछ भाजपा नेताओं के संपर्क में होने का दावा भी कर चुके हैं। कांग्रेस के लिए वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव करो-या मरो जैसी स्थिति का है। कांग्रेस का मानना है कि यदि इस कांग्रेस पिछड़ी तो वर्ष 2027 के चुनाव में हालात और भी कठिन हो सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार करीब 10 से पंद्रह सीट ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस खुद को अपेक्षाकृत कमजोर मानती है। इसके पीछे जातीय और क्षेत्रीय समीकरण भी कारण है। वर्ष 2017 के चुनाव में कुछ ऐसे उदाहरण भी है कि दल बदलते ही सामाजिक-जातीय समीकरणों ने तस्वीर को पलट कर रख दिया। रायपुर विधानसभा क्षेत्र के संघ से जुड़े नेता महेंद्र सिंह नेगी गुरू जी को कांग्रेस में शामिल करा कर कांग्रेस ने अपनी भावी रणनीति के संकेत दे भी दिए हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस प्रदेश सभी सीटों पर प्रत्याशियों का सर्वे भी कर रही है।