सैयद अली शाह गिलानी ने करीब तीन दशकों तक कश्मीर में अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व किया था. उनके निधन के बाद घाटी में एहतियातन सुरक्षा बढ़ा दी गई और इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है.प्रमुख अलगाववादी नेता और हुर्रियत के चेयरमैन रहे सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार रात श्रीनगर स्थित घर पर निधन हो गया. वह 92 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने पिछले साल राजनीति और हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया था. गुरुवार सुबह उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गिलानी को सुबह 5 बजे हैदरपोरा में सुपुर्द-ए-खाक किया गया, जबकि परिवार उनका अंतिम संस्कार सुबह 10 बजे करना चाहता था.
मीडिया में बताया जा रहा है कि परिवार चाहता था कि अंतिम संस्कार में रिश्तेदार भी शामिल हो और इसलिए देर से उन्हें दफनाया जाए. मार्च 2018 में उन्हें मामूली दिल का दौरा पड़ा था और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बुधवार देर रात उनके निधन के बाद कश्मीर घाटी में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. गिलानी कट्टर पाकिस्तानी समर्थक माने जाते थे और वे कश्मीर में अलगाववाद के प्रमुख चेहरों में से एक थे. प्रशासन को ऐसी आशंका थी कि उनके अंतिम संस्कार में भारी भीड़ उमड़ सकती है और इसी वजह से उसने कुछ पाबंदियां लगाई हैं. हुर्रियत के कट्टर नेता गिलानी एक कट्टर नेता माने जाते थे और वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे. पिछले एक दशक से ज्यादा समय से घर पर नजरबंद थे.उनकी मृत्यु ऐसे समय में हुई जब हुर्रियत के दोनों धड़े कट्टर और उदारवादी गुट राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की गई कार्रवाई, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद से परेशान हैं. गिलानी को उन कट्टरपंथी नेताओं के साथ जोड़कर देखा जाएगा जो संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में कश्मीर विवाद के समाधान की मांग करते आए थे. गिलानी का राजनीतिक सफर गिलानी का जन्म 29 सितंबर 1929 को बांदीपोरा जिले में हुआ था. वह स्कूल टीचर थे और बाद में कश्मीर में अलगाववादी मुहिम का प्रमुख चेहरा बने. गिलानी तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 1972, 1977 और 1987 में वह सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चुने गए थे. 1990 में कश्मीर में आतंकवाद भड़कने के बाद गिलानी चुनावी विरोधी बन गए.वह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर उदारवादी रुख रखने वाले नेताओं के साथ उनकी नहीं बनी और उन्होंने 2004 में एक अलग धड़े तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया. शोक संदेश कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गिलानी के निधन पर शोक जाहिर किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, “हम ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं थे. लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके विश्वासों पर कायम रहने के लिए उनका सम्मान करती हूं” दूसरी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी के निधन पर ट्वीट कर कहा कि पाकिस्तान में झंडा आधा झुका दिया जाएगा और एक दिन का शोक मनाया जाएगा. उन्होंने कहा, “गिलानी जीवनभर अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए संघर्ष करते रहे” गिलानी के निधन पर भारत की केंद्र सरकार की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है.