Thursday , December 19 2024

मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है…गिलानी के निधन से पाक को मिला जहर उगलने का मौका, इमरान ने बहाए मगरमच्छ के आंसू

तीन दशकों से अधिक समय तक अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व करने वाले और पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार रात उनके आवास पर निधन हो गया। गिलानी के निधन की खबर सुनते ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर कुरैशी ने मगरमच्छ के आंसू बहाने शुरू कर दिए और इसे मौके के रूप में इस्तेमाल किया। पाकिस्तान अपनी पुरानी आदत की तरह ही भारत के खिलाफ जहर उगलने से बाज नहीं आया और गिलानी की मौत को भी भुनाने की कोशिश करने लगा। इमरान खान ने न सिर्फ गिलानी के निधन पर दुख जताया, बल्कि उन्होंने पाकिस्तान का आधा झंडा भी झुकवा दिया और एक दिन के शोक का ऐलान किया। इमरान खान ने ट्वीट किया कि कश्‍मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी के निधन की खबर सुनकर बहुत दुखी हूं। वह जीवनभर अपने लोगों और उनके आत्‍मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ते रहे। इमरान ने कहा कि भारत ने उन्‍हें कैद करके रखा और प्रताड़‍ित किया। इमरान खान ने एक और ट्वीट में कहा कि हम पाकिस्‍तान में उनके संघर्ष को सलाम करते हैं और उनके शब्‍दों को याद करते हैं- ‘हम पाकिस्‍तानी हैं और पाकिस्‍तान हमारा है।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्‍तान का झंडा आधा झुका रहेगा और हम एक दिन का आधिकारिक शोक मनाएंगे।वहीं, पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पाकिस्तान ने कश्मीर स्वतंत्रता आंदोलन के मशाल वाहक सैयद अली शाह गिलानी के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि गिलानी ने अंत तक कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्हें शांति मिले और उनकी आजादी का सपना साकार हो। बता दें कि यहां आजादी के सपने का संदर्भ पाकिस्तान के उस मुहिम से है जो वर्षों से आतंक के दम पर चला रहा है, जिसमें वह कश्मीर को भारत से छिनना चाहता है। 

बता दें कि गिलानी 91 वर्ष के थे। उनके परिवार में उनके दो बेटे और छह बेटियां हैं। उन्होंने 1968 में अपनी पहली पत्नी के निधन के बाद दोबारा विवाह किया था।  अलगाववादी नेता गिलानी पिछले दो दशक से अधिक समय से गुर्दे संबंधी बीमारी से पीड़ित थे। इसके अलावा वह बढ़ती आयु संबंधी कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे थे। कश्मीर घाटी में अफवाहों के फैलने के कारण भ्रम की स्थिति पैदा होने से रोकने के लिए मोबाइल इंटरनेट एहतियातन बंद किया गया है। 

पूर्ववर्ती राज्य में सोपोर से तीन बार विधायक रहे गिलानी 2008 के अमरनाथ भूमि विवाद और 2010 में श्रीनगर में एक युवक की मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों का चेहरा बन गए थे।वह हुर्रियत कांफ्रेंस के संस्थापक सदस्य थे, लेकिन वह उससे अलग हो गए और उन्होंने 2000 की शुरुआत में तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था। आखिरकार उन्होंने जून 2020 में हुर्रियत कांफ्रेंस से भी विदाई ले ली। बता दें कि पाकिस्तान ने गिलानी को सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया था।