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उत्तरी श्रीलंका में गतिविधि बढ़ा रहा चीन, भारतीय तट के नजदीक पहुंचने की कोशिश में

चीन लगातार भारत को घेरने की कोशिश में है। इस कड़ी में चीन भारत के पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध बनाने की कोशिश में है और श्रीलंका भी इससे अछूता नहीं है। श्रीलंका में चीन अपनी विस्तारवादी नीति पर काम कर रहा है और भारत के लिए यह खतरे की घंटी है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट मुताबिक बीजिंग तमिल मूल के लोगों को लुभाने की कोशिश कर रहा है। चीन अपनी कर्ज नीतियों के जरिए श्रीलंका में पहले से ही पैठ बना चुका है। और अब वह भारतीय तट के नजदीक पहुंचने की हर संभव कोशिश में है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि चीन उत्तरी श्रीलंका में इकॉनोमिक एक्टिविटी और प्रस्तावित इन्फ्रास्ट्रकचर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स पर बहुत तेजी से काम कर रहा है जिसका बाद में रणनीतिक तौर पर फायदा उठाया जा सकता है और यह भारत के लिए चिंता का विषय है। इससे पहले श्रीलंका में चीन के प्रोजेक्ट्स दक्षिणी हिस्से तक ही सीमित थे लेकिन अब गोताबाया राजपक्षे सरकार उत्तरी श्रीलंका में चीन को जगह दे रही है।

भारत जाफना प्रायद्वीप के तीन द्वीपों में चीनी सिनोसार-एटेकविन जॉइंट वेंचर को 12 मिलियन डॉलर की हाइब्रिड पवन और सौर ऊर्जा परियोजना देने के श्रीलंका के फैसले का पहले ही विरोध कर चुका है। तमिलनाडु तट से करीब 50 किलोमीटर दूर होने के कारण, भारत इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहा है। श्रीलंका ने एक और चीनी जॉइंट वेंचर को एक समुद्र तटीय गांव में स्थानीय किसानों के विरोध के बावजूद समुद्री ककड़ी मछली की खेती के लिए जमीन दी है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस तरह के कई अतिक्रमण देखे जा रहे हैं।

कोलंबो बंदरगाह पर पूर्वी कंटेनर टर्मिनल को जापान और श्रीलंका के साथ मिलकर विकसित करने के समझौते से श्रीलंका के पीछे हटने से भारत परेशान है। त्रिंकोमाली में तेल टैंक फार्म परियोजना को लेकर भी दोनों देश के बीच मतभेद है। श्रीलंका ने हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के पट्टे पर चीन को दिया हुआ है। श्रीलंका के साथ ही चीन सेशेल्स, मॉरीशस, मालदीव, बांग्लादेश, म्यांमार और पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ समुद्री संबंध बनाकर पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पंख फैला रहा है।