कोरोना महामारी जितनी भयावह है, उतनी ही विचित्र भी। वैज्ञानिक इसके रहस्यों से रोज पर्दा उठा रहे हैं। एक ताजा शोध में पता चला है कि कोरोना से होने वाली 18 फीसदी मौतों के लिए इंसानी शरीर में उत्पन्न हुई दुष्ट एंडीबॉडीज जिम्मेदार हैं। इन्हें ऑटोएंडीबॉडीज भी कहा जाता है, जो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र पर ही हमला कर देती हैं।
हाल में इस बाबत साइंस इम्यूनोलॉजी जर्नल में एक विस्तृत शोध प्रकाशित हुआ है। इसी के आधार पर नेचर जर्नल ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार, इंसानी शरीर में सक्रिय कुछ एंटीबाडीज कभी-कभी शरीर के प्रतिरोधक तंत्र की ही दुश्मन बन जाती है। कारण पता नहीं है। लेकिन कोरोना महामारी से पहले 35 हजार स्वस्थ लोगों पर हुए शोध में पाया गया कि 18-69 आयु वर्ग के 0.18 फीसदी लोगों में तथा 70-79 आयु के 1.1 फीसदी लोगों में इस प्रकार की दुष्ट एंटीबॉडीज पाई गई हैं। यह उम्र बढ़ने के साथ यह बढ़ती हैं। लेकिन कोरोना मरीजों में इनकी मौजूदी ज्यादा देखी गई है।
38 देशों के मरीजों की ऑटोएंटीबॉडीज जांची गई
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने 38 देशों के 3,595 गंभीर कोरोना मरीजों में ऑटोएंटीबॉडीज की जांच की। पाया कि 13.6 फीसदी मरीजों में यह मौजूद थीं। 40 से कम आयु के 9.6 और 80 से अधिक आयु के 21 फीसदी मरीजों में ये एंटीबॉडीज पाई गईं। जबकि जिन मरीजों की मौत हो चुकी थी, उनमें 18 फीसदी में ही इनकी मौजूदगी पाई गई।
‘शोध इलाज के लिए महत्वपूर्ण’
शोध में शामिल न्यूयॉर्क की रॉकफिलर यूनिवर्सिटी के इम्यूनोलॉजिस्ट जीन लारेंट ने कहा कि आईसीयू में भर्ती औसतन दस फीसदी मरीजों तथा मरने वाले पांच में से एक मरीज में ऑटोएंटीबॉडीज पाई गई। लेकिन कोरोना रोगियों में इन एंटीबॉडीज की अति सक्रियता क्या संक्रमण की वजह से हुई या फिर जिन लोगों में ये एंटीबाडीज ज्यादा थी, उनमें संक्रमण ज्यादा हो रहा है, इस पर वैज्ञानिक फिलहाल कोई अंतिम राय कायम नहीं कर पाए हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह शोध इलाज के लिए महत्वपूर्ण है। यदि गंभीर मरीजों में ऑटोएंटीबॉडीज की उपस्थिति का पता लग जाए तो इलाज के दौरान इस तथ्य को ध्यान में रखा जा सकेगा। इसलिए डॉक्टरों को इन एंटीबॉडीज की जांच करानी चाहिए। शोध के अनुसार, ऑटोएंटीबॉडीज विषाणु अवरोधक प्रोटीन टाइप वन इंटरफेरान पर हमला कर उसकी गतिविधियों को रोक देती हैं। जबकि यह प्रोटीन वायरल संक्रमण के खिलाफ लड़ने में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि यह सीधे न्यूरॉन को संदेश भेजता है।