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ZEE5 Helmet Review: कंडोम की जरूरत और लोगों की झिझक को मजेदार अंदाज में दिखाती है ‘हेलमेट’, लेकिन…

फिल्म: हेलमेट
ओटीटी: जी5
निर्देशक: सतराम रमानी
स्टार कास्ट: अपारशक्ति खुराना, प्रनूतन बहल, अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा, आशीष विद्यार्थी और शारिब हाशमीकहानी: फिल्म की कहानी शादी के बैंड में बतौर सिंगर काम करने वाले लकी (अपारशक्ति खुराना) के इर्द गिर्द घूमती है। जो रूपाली (प्रनूतन बहल) से प्यार करता है, लेकिन रूपाली के पिता जोगी (आशीष विद्यार्थी) को लकी पसंद नहीं है, जिसकी मुख्य वजह है कि रूपाली अमीर घर की लड़की है, जबकि लकी पैसों की तंगी से जूझने वाला एक आम लड़का। ऐसे में लकी अपने दोस्त सुल्तान (अभिषेक बनर्जी) और माइनस (आशीष वर्मा) के साथ एक ट्रक लूटता है। लकी की जानकारी के मुताबिक ट्रक में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स होने चाहिए थे, लेकिन ट्रक के अंदर डिब्बो में कंडोम मिलते हैं। इसके बाद फिल्म में मजेदार अंदाज में समाज की कंडोम खरीदने की झिझक को दिखाया जाता है और ये सभी हेलमेट पहनकर कंडोम बेचना शुरू कर देते हैं। ऐसा करके इन सभी की आर्थिक दिक्कत दूर हो पाती है या नहीं, लकी- रूपाली से शादी कर पाता है या नहीं, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

क्या कुछ है खास: इस बात पर तो फिल्म के पहले पोस्टर से ही जोर दिया जा रहा है कि फिल्म समाज के उस हिस्से पर व्यंगात्मक रूप से चोट करती है, जो आज भी कंडोम खरीदने क्या, बल्कि बात करने से भी झिझकता है। फिल्म में ऐसे कई छोटे- छोटे किस्से और पहलू दिखाए गए हैं जिन से ये देखने को मिलता है कि आखिर कोई भी शख्स कंडोम की बात करने या फिर खरीदने से झिझकता क्यों है। देश की बढ़ती आबादी और सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज से बचाव के लिए कंडोम कितना जरूरी है, इसे फिल्म में बखूबी दिखाया गया है।

कैसी है एक्टिंग और निर्देशन: फिल्म की कहानी के मुताबिक बतौर निर्देशक सतराम के पास कुछ बहुत हटकर करने के लिए था नहीं, ऐसे में उनका निर्देशन कहानी के हिसाब से ठीक है। इसके अलावा प्रनूतन बहल की एक्टिंग काफी ज्यादा ओवर लगती है। फिल्म के कई हिस्सों में अपारशक्ति खुराना भी ओवर एक्टिंग करते नजर आ रहे हैं। वहीं बात अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा, आशीष विद्यार्थी और शारिब हाशमी की करें तो उन्होंने अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है।देखें या नहीं: वैसे तो फिल्म कुल करीब पौने दो घंटे की है, हालांकि इसके बाद भी कुछ हिस्से जबरन के लगते हैं, जहां बतौर दर्शक आपको ये महसूस होगा कि इस सीन की जरूरत नहीं थी। फिल्म के गाने भी कुछ खास नहीं हैं, ऐसे में फिल्म के बीच में उनका सुरूर भी नहीं चढ़ता है और वो भी बोरिंग से ही लगते हैं। इन सबके बीच चूंकि ये मुद्दा काफी अहम है और फिल्म में इसे दिखाया भी सही तरीके से गया है, तो फिल्म को एक बार देखा जा सकता है।