तालिबान अफगानिस्तान में ईरान मॉडल के तर्ज पर सरकार बना सकता है। मुल्ला हिब्तुल्लाह अखुंदजादा अफगानिस्तान को नया सुप्रीम लीडर बनाया जा सकता है। तालिबान सरकार बनाने के लिए ईरान का फॉर्मूला अपनाएगा। जहां एक सुप्रीम लीडर होगा और उसके अंतर्गत प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति काम करेंगे। तालिबान ने अपना प्लान तैयार कर लिया है। आइए जानते हैं क्या है ईरानी मॉडल और यह कैसे काम करता है।
ईरान में इस्लामिक सरकार है। जहां पर एक सर्वोच्च नेता होता है। पूरी सरकार का नियंत्रण उसके हाथों में ही होता है। सर्वोच्च नेता के तहत ही राष्ट्रपति सरकार चलाता है। संसद भी साथ-साथ काम करती है। अभी ईरान में अयातुल्ला अली खामेनेई सर्वोच्च नेता हैं। वहीं इब्राहिम रईसी ईरान के राष्ट्रपति हैं। रईसी को खामनेई के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है। ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद दो ही सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हुए हैं जिनमें अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी और उनके उत्तराधिकारी, अयातुल्ला अली खामेनेई हैं।
सर्वोच्च नेता ही सबसे बड़ा
ईरान में सर्वोच्च नेता ही ईरान के सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ होते हैं और सुरक्षा सेवाओं का पूरा नियंत्रण उनके हाथों में ही होता है। वह न्यायपालिका के प्रमुख, प्रभावशाली लोगों की परिषद के आधे सदस्यों, शुक्रवार को होने वाली प्रार्थना के नेताओं और राज्य टेलीविजन और रेडियो नेटवर्क के प्रमुखों को भी नियुक्त करता है। सर्वोच्च नेता की बहु-अरब डॉलर की धर्मार्थ नींव भी ईरानी अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को नियंत्रित करती है।
राष्ट्रपति दूसरा सर्वोच्च अधिकारी
ईरान के संविधान में राष्ट्रपति को देश का दूसरे सर्वोच्च अधिकारी का स्थान हासिल है। राष्ट्रपति चार साल के लिए चुना जाता है और लगातार दो कार्यकाल से अधिक नहीं रह सकता है। वह सत्ता की कार्यकारी शाखा का प्रमुख होता है और संविधान लागू कराने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति के कंधों पर ही होती है। घरेलू नीति और विदेश मामलों पर राष्ट्रपति का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। लेकिन राज्य के सभी मामलों पर अंतिम निर्णय सर्वोच्च नेता का ही होता है।
संसद को भी है कई अधिकार
– ईरानी संसद एक सदनीय विधायी निकाय है जिसके 290 सदस्य हर चार साल में सार्वजनिक रूप से चुने जाते हैं।
– संसद के पास कानूनों को पेश करने और वार्षिक बजट को अस्वीकार करने के साथ-साथ मंत्रियों और राष्ट्रपति को बुलाने की शक्ति है।
– हालांकि, संसद से पास सभी कानूनों को गार्डियन काउंसिल की मंजूरी मिलना जरूरी है।
क्या है गार्डियन काउंसिल?
ईरान में गार्डियन काउंसिल सबसे ज़्यादा प्रभावशाली संस्था है, जिसका काम संसद द्वारा पारित सभी कानूनों को मंजूरी देना या रोकना है। यह संस्था उम्मीदवारों को संसदीय चुनावों या विशेषज्ञों की समिति के लिए होने वाले चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने से प्रतिबंधित कर सकती है। इस काउंसिल में छह धर्मशास्त्री होते हैं, जिनकी नियुक्ति सुप्रीम नेता करते हैं। इसके साथ ही छह न्यायाधीश होते हैं जिन्हें न्यायपालिका मनोनीत करती है और इनके नामों को संसद मंजूरी देती है। सदस्यों का चुनाव छह साल के अंतराल में चरणबद्ध ढंग से होता है, जिससे सदस्य हर तीन साल में बदलते रहें
विशेषज्ञों की समिति
ये एक 88 सदस्यों की मजबूत संस्था है, जिसमें इस्लामिक शोधार्थी और उलेमा शामिल होते हैं। इस संस्था का काम सर्वोच्च नेता की नियुक्ति से लेकर उनके प्रदर्शन पर नजर रखना होता है। अगर संस्था को लगता है कि सुप्रीम नेता अपना काम करने में सक्षम नहीं है तो इस संस्था के पास सुप्रीम नेता को हटाने की शक्ति भी है। हालांकि, ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सुप्रीम नेता के फैसलों को चुनौती दिया गया हो, लेकिन 82 वर्षीय अयातोल्लाह अली ख़ामेनेई की सेहत को लेकर लगातार जताई जा रही चिंताओं के चलते ये संस्था काफी अहम हो गई है।
एक्सपीडिएंसी काउंसिल
ये काउंसिल सुप्रीम नेता को सलाह देती है। कानूनी मामलों में गार्डियन काउंसिल और संसद के बीच विवाद होने पर इस संस्था को फैसला करने का अधिकार है। सर्वोच्च नेता इस काउंसिल के सभी 45 सदस्यों की नियुक्ति करते हैं जो कि जानी-मानी धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक हस्तियां होती हैं।
न्यायपालिका प्रमुख
ईरान के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति सर्वोच्च नेता करते हैं। मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च नेता के प्रति ही उत्तरदायी होते हैं। वह देश की न्यायपालिका के प्रमुख होते हैं। इस पद के अंतर्गत आने वाली अदालतें इस्लामी कानून के पालन और विधिक नीतियों को परिभाषित करती हैं। मुख्य न्यायाधीश इब्राहीम रईसी, जो कि एक कट्टरपंथी उलेमा हैं, गार्डियन काउंसिल के भी छह मूल सदस्यों को मनोनीत करते हैं।
तालिबान कर चुका है कई नियुक्तियां
काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान पहले ही कई प्रांतों के गवर्नर, पुलिस चीफ और कमांडर्स और अन्य पदों के लिए नियुक्तियां कर चुका है। सिर्फ केंद्रीय सरकार का ऐलान होना बाकी है।