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दोराहे पर खड़ा है अफगानिस्तान, तालिबान राज की दशा और दिशा दोनों अनिश्चित

अफगानिस्तान में सरकार का जो प्रारूप पता चल रहा है वह ईरान का मॉडल अपनाने की कोशिश जैसा लग रहा है। लेकिन तालिबान के अंदरूनी मसले देश मे जनमानस का विभाजित स्वरूप और पंजशीर के अलावा शासन, प्रशासन सहित विभिन्न चुनौतियों को देखकर लग रहा है कि अफगानिस्तान की राह अभी पूरी तरह अनिश्चित है।

दोराहे पर खड़ा है अफगानिस्तान :

पूर्व राजदूत जी पार्थसारथी का कहना है कि तालिबान ईरानी मॉडल अपनाने का प्रयास कर रहा है। इसमे धार्मिक लीडर प्रमुख होंगे। यानी शासन का एक धार्मिक मॉडल सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। क्योंकि अफगानिस्तान दोराहे पर खड़ा है। दूसरी तरफ पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि ईरान मॉडल का नकल करने का प्रयास हो सकता है क्योंकि तालिबान उनकी मदद चाहते हैं। लेकिन ये पूरी तरह संभव नही होगा।

अराजकता का डर :

इस पूरे इलाके की समझ रखने वाले पूर्व राजनयिक पार्थसारथी ने कहा कि अगर तालिबान ने ठीक तरीके से शासन नहीं चलाया तो यहां अराजकता की स्थिति हो सकती है। हमें जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। बल्कि नजर बनाए रखना चाहिए।

भारत की होगी जरूरत :

पार्थसारथी ने कहा, तालिबान शासन को दो तीन महीने में दाल रोटी के लिए मदद की जरूरत होगी कौन पूरा करेगा। हम ही मदद कर सकते हैं। चीन इस तरह की मानवीय मदद नहीं करता। वह अपने जाल में उलझा सकता है। उन्होंने कहा, हमें ईरान के संपर्क में रहना चाहिए। चाबहार हमने बनाया है हम चाबहार के जरिये मदद कर सकते हैं। कूटनीतिक रूप से भारत को सक्रिय रहना होगा।

शासन पर होगा आर्थिक दबाव :

पार्थसारथी ने कहा, हम कह सकते हैं कि अफगानिस्तान गुट निरपेक्ष बने। बाहरी दबाव को नकार दें। बाहरी कौन है रूस,चीन और पाकिस्तान। उनकी जो आर्थिक कमजोरी है ऊसका असर शासन पर दिखेगा। चीन अगर मदद देगा तो उसके बदले में उनसे बहुत कुछ हासिल करेगा। भारत को नजर बनाए रखनी चाहिए। अभी काफी स्थितियों में बदलाव होगा। हमारी भूमिका बढ़ेगी।

आतंक और कश्मीर पर आशंका :

पूर्व राजनयिक ने कहा, आतंकवाद के मसले पर दुनिया और खासतौर पर हमें चिंता है। कश्मीर को लेकर कई आशंकाए हैं। उनके अलग अलग बयान आए हैं। पार्थसारथी ने कहा कि हमें देखना होगा कि हक्कानी क्या भूमिका अदा करते हैं। वे पाकिस्तान के पिट्ठू हैं, लेकिन नई सरकार पर पाकिस्तान का कितना असर होगा ये देखना होगा।

अंदरूनी मसले तय नही :

उधर, पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि सरकार शायद शनिवार तक अपना अस्तित्व ले लेगी। लेकिन अंदरूनी मसले तय नही हुए हैं। तालिबान के अंदर भी ये लोग अलग अलग बैकग्राउण्ड से आए हैं। इसके अलावा तालिबान ने जो दोहा में वादे किए हैं अन्य भागीदार पक्षों को शामिल करने के लिए उसपर भी अभी रुख देखना होगा।

विभाजित अफगानिस्तान की आशंका :

शशांक ने कहा, कई तरह की चुनौती है। अगर आतंकी हमला होता है तो कैसे डील करेंगे। पंजशीर का मसला काफी पेचीदा है। एक अफगान के बजाय विभाजित अफगान न बने इसके लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। वहां कई जातीय व राजनीतिक समूह हैं,सब अपनी तरह से बात कर रहे हैं।

इस्लामिक मुद्दों पर भी बंटी राय :

पूर्व विदेश सचिव ने कहा, कुछ लोग है जिनका कहना है कि अगर इस्लामिक मुद्दा होगा तो दुनिया के किसी भी हिस्से में हों वे जरूर बोलेंगे। ऐसे लोग कश्मीर पर भी क्या रुख तय करेंगे देखना होगा। दूसरे समूह भी हैं जो कह रहे हैं कि दुनिया के अन्य देशों में रहने वाले मुस्लिम अपने इस्लामिक मुद्दे खुद तय करें। इसी तरह प्रो पाकिस्तान और पाकिस्तान से अलग आवाज भी है।

कई देशों से चाहिए मदद :

शशांक ने कहा, फिलहाल सरकार बनने का पहला काम शुरू हो रहा है। लेकिन प्रशासन, आर्थिक मसलों पर बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा तालिबान की ईरानियन मॉडल की इच्छा हो सकती है। ईरान से वे पेट्रोल डीजल वगैरह में मदद चाहते हैं। लेकिन ये कैसे हो सकता है। ईरान ने अपना मॉडल तैयार किया है। जबकि इन्होंने अमेरिका से समझौता करके किया है। पैसा चीन से चाहिए। हथियार वगैरह को रिपेयर करने और हवाई अड्डे को संचालित करने के लिए तुर्की की मदद चाहिए। तुर्की को नाटो का अनुभव है। वे कतर से भी बात कर रहे हैं। साथ ही हजारा शिया पर प्रभाव के लिए ईरान की मदद चाहिए। ऊर्जा स्रोत भी चाहिए। कुल मिलाकर अभी तालिबान शासन और अफगानिस्तान की एक देश के रूप में दशा और दिशा दोनो अधर में है।