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मॉनेटाइजेशन नीति और महंगाई को लेकर केंद्र सरकार और RSS में ठनी

केंद्र सरकार के मुद्रीकरण नीति की घोषणा करने के फैसले, महंगाई पर चिंताओं को दूर करने में देरी, और नई अफगानिस्तान मेंशासन के साथ दिल्ली की औपचारिक भागीदारी को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच असहमति की स्थिति है। मामले से जुड़े लोगों ने ये जानकारी दी।

इंफ्लेशन पर कोई कंट्रोल नहीं’

आरएसएस के पदाधिकारियों के अनुसार, बढ़ती कीमतों के मुद्दे को संघ के विभिन्न सहयोगियों द्वारा रेखांकित किया गया है। इधर, RSS से संबद्ध सबसे बड़े श्रमिक संघों में से एक भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महंगाई के खिलाफ पहले ही एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है। बीएमएस के महासचिव बिनय कुमार सिन्हा ने कहा कि कोविड के बाद स्थिति और खराब हो गई है। नौकरी में कटौती और वेतन में कटौती से श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित हैं और इंफ्लेशन पर कोई कंट्रोल नहीं है।

‘लोगों को पता लगे कंपनियां का मुनाफा’

मुद्रास्फीति के खिलाफ 9 सितंबर को देशव्यापी विरोध का आह्वान करने वाले बीएमएस ने यह भी सुझाव दिया है कि उत्पादों के बिक्री मूल्य का उल्लेख करने के अलावा, सरकार को उस प्रावधान को पेश करना चाहिए जहां उत्पादन की लागत को भी लेबल किया गया है ताकि लोगों को इसके बारे में पता चल सके कि कंपनियां कितना मुनाफा कमा रही हैं।

‘पेट्रोल को जीएसटी के तहत क्यों नहीं लाया गया’

सिन्हा ने कहा “उदाहरण के लिए, फार्मा सेक्टर में, वे कितना मुनाफा कमा सकते हैं, इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसी तरह, अगर सरकार एक राष्ट्र, एक कर की बात कर रही है, तो आम आदमी के जीवन को प्रभावित करने वाले रोजमर्रा के उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए पेट्रोल को जीएसटी के तहत क्यों नहीं लाया गया? हम यह भी मांग कर रहे हैं कि जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकने के लिए खाद्य तेलों और अन्य खाद्य पदार्थों को भी आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में लाया जाना चाहिए”।

राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन पर देशव्यापी प्रदर्शन

बीएमएस 2 नवंबर को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) पर एक देशव्यापी प्रदर्शन करेगा वहीं आरएसएस सहयोगी- स्वदेशी जागरण मंच ने भी 6 लाख करोड़ एनएमपी की आलोचना की है। पिछले महीने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस कार्यक्रम का अनावरण किया। सरकार ने वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक, चार वर्षों में एनएमपी के तहत केंद्र सरकार के मंत्रालयों और राज्य द्वारा संचालित कंपनियों की बुनियादी ढांचा संपत्ति को पट्टे पर देकर धन जुटाने की योजना का बचाव किया है जबकि एसजेएम ने संपत्ति को निजी हाथों में देने के खिलाफ आगाह किया है।