अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार को लेकर दुनियाभर के देशों में चिंता पैदा हो गई है. साथ ही उसकी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए ना हो, ऐसा सभी देश ऐसा चाहते हैं.अधिकारियों ने कहा कि भारत और रूस का मानना है कि अफगानिस्तान में सक्रिय विदेशी आतंकवादी समूह मध्य एशिया और भारत के लिए खतरा हैं. बुधवार को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों की बैठक में आतंकवाद विरोधी सहयोग को गहरा करने पर दोनों देश सहमत हुए. दो दशकों की लड़ाई के बाद पिछले महीने अफगानिस्तान में तालिबान ने जीत हासिल की और एक अस्थायी सरकार की घोषणा की जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एक झिझक भरी स्वीकृति मिली है. दिल्ली में रूसी सुरक्षा परिषद के प्रमुख निकोलाई पेत्रूशेव और भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बीच बैठक के बाद, भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि भारत और रूस दोनों अफगानिस्तान के घटनाक्रम से बहुत चिंतित हैं. वादों पर कायम रहे तालिबान दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि तालिबान को अपने वादों पर कायम रहना चाहिए, जिसमें महिलाओं के लिए बुनियादी मानवाधिकारों का सम्मान और आतंकवादी समूहों द्वारा अपने क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं करने देना शामिल है. अधिकारी ने कहा, “अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों की मौजूदगी और मध्य एशिया और भारत में आतंकवाद से खतरे पर विस्तार से विमर्श हुआ” भारत को डर है कि पाकिस्तान से संचालित होने वाले आतंकवादी समूह भी हमलों को अंजाम देने के लिए अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं और भारत का कहना है कि तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिएअपना-अपना डर रूस को डर है कि अफगानिस्तान में उथल-पुथल मध्य एशिया में फैल सकती है, जिसे वह अपना दक्षिणी रक्षात्मक पहलू मानता है और प्रभाव क्षेत्र के रूप में जहां से कट्टरपंथी इस्लामी खतरे उत्पन्न हो सकते हैं. पत्रूशेव और डोभाल की बैठक के बाद रूस की सुरक्षा परिषद ने एक बयान में कहा कि द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने पर चर्चा की गई. साथ ही, आतंकवाद विरोधी, अवैध प्रवासन और ड्रग्स ट्रैफिकिंग से मुकाबला करने को लेकर भी बातचीत हुई. भारत और रूस लंबे समय से घनिष्ठ सैन्य साझेदार रहे हैं लेकिन हाल के सालों में दिल्ली ने हथियारों की आपूर्ति और गहरे राजनीतिक संबंधों के लिए अमेरिका की ओर रुख किया है. लेकिन भारत सरकार के अधिकारी ने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद क्षेत्रीय स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई है. सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि पत्रूशेव की भारत यात्रा 24 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के बीच फोन पर हुई बातचीत के फॉलोअप के तौर पर हुई. एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)