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आखिर तालिबान ने मुल्ला बरादर के बजाय अचानक अखुंद क्यों बनाया PM, ये हैं पांच वजहें

अफगानिस्तान में तालिबान ने सरकार का गठन कर दिया है। तालिबान ने सात सितंबर को घोषणा की कि मुल्ला हसन अखुंद को अफगानिस्तान का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। यह फैसला काबुल समेत अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर तालिबान के कब्जे के दो सप्ताह बाद आया। अंखुद को अफगान का प्रधानमंत्री बनाए जाने पर सबको हैरानी हुई। इसकी वजह यह थी कि तालिबान के ऐलान से पहले पीएम की रेस में मुल्ला बरादर सबसे आगे चल हे थे और कहीं भी अंखुद का नाम तक नहीं था। मगर तालिबान ने यह फैसला लेकर सबको चौंका दिया। पहले मुल्ला बरादर का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन ऐन वक्त पर अखुंद ने बाजी मार ली। आइए जानते हैं कि बरादर के बजाय अखुंद को मुखिया बनने की आखिर वजह क्या है?

1. अखुंद का सर्वमान्य व्यक्तित्व
मुल्ला अखुंद तालिबान में एक दिलचस्प और रहस्यमय व्यक्ति हैं। 1990 के दशक में चरमपंथी समूह की स्थापना के बाद से वह अफगानिस्तान में एक प्रभावी व्यक्तित्व रहे हैं, लेकिन उस समय के अन्य तालिबान नेताओं के उलट वह 1980 के दशक के सोवियत-अफगान युद्ध में शामिल नहीं रहे। तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर और उनके साथी सोवियत विरोधी अफगान लड़ाकों के साथ लड़े थे, लेकिन अखुंद उनमें शामिल नहीं थे।

2. बरादर की हक्कानी नेटवर्क से तनातनी
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क के बीच राजनीतिक तनाव है। हक्कानी तालिबान के सबसे उग्रवादी गुटों में से है। अखुंद बरादर और हक्कानी नेटवर्क के समर्थकों के बीच एक समझौता उम्मीदवार प्रतीत होते हैं। उनकी नियुक्ति में देरी तालिबान में आंतरिक विभाजन का संकेत हो सकती है।

3 अखुंद की अधिक कट्टरपंथी छवि हक्कानी को भाती
अखुंद एक रूढ़िवादी और धार्मिक विद्वान हैं, जिनकी मान्यताओं में महिलाओं पर प्रतिबंध और नैतिक, धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिक अधिकारों से वंचित करना शामिल है। वहीं, महिलाओं के अधिकारों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने और पूर्व सरकार के सदस्यों के लिए माफी जैसे मुद्दों पर हक्कानी नेटवर्क की विचारधारा अखुंद की विचारधारा से मिलती जुलती है।

  1. अखुंद के पास विदेश मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव
    अखुंद ने 1990 के दशक की तालिबान सरकार में विदेश मंत्री के रूप में कार्य करते हुए राजनीतिक भूमिका निभाई। हालांकि, उनका महत्व संगठन की धार्मिक पहचान के विकास में अधिक है।
  2. तालिबान के धार्मिक समूह पर प्रभाव और सख्त इस्लामिक विचारधार के पैरोकार
    अखुंद मुल्ला उमर की तरह सख्त इस्लामी विचारधारा के पक्षधर थे, जिसे देवबंदी के नाम से जाना जाता है। उन्हें तालिबान में धार्मिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति के तौर पर अधिक देखा जाता है। 1990 के दशक में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया था।

सत्ता का समीकरण
बरादर समर्थक सैन्य अभियान चलाने के मामले में हक्कानी नेटवर्क से कमजोर हैं। वहीं, अगर राजनीतिक मामले की बात करें तो अखुंद समर्थक सबसे ज्यादा प्रभावशाली हैं। ऐसे में अखुंद और हक्कानी नेटवर्क का मेल मुल्ला बरादर पर भारी पड़ गया।

अखुंद की खास बातें
– अखुंद ने 20 वर्षों तक रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में काम किया।
– अखुंद अफगानिस्तान के सुप्रीम नेता हैबतुल्ला अखुंजादा का करीबी रहे।
– तालिबान में खुद की बहुत अच्छी प्रतिष्ठा बनाई।
– अखुंद मिलिट्री बैकग्राउंड के बजाय धार्मिक बैकग्राउंड से हैं।
– अपने चरित्र और धार्मिकता के लिए जाना जाते हैं।
– पाकिस्तान के विभिन्न मदरसों में उन्होंने तालीम ली है।

बरादर की खास बातें
– मुल्ला बरादर तालिबान के संस्थापकों में से एक है।
– 1994 में तालिबान के गठन में वह भी शामिल था।
– 1996 से 2001 के शासन के दौरान अहम भूमिका निभाई थी।
– 2001 में अमेरिकी हमले के बाद से देश छोड़कर भाग गया था।
– 2010 में पाकिस्तान के कराची से गिरफ्तार हुआ था।
– कतर के दोहा में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर की कमान संभाली।