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मिठास में खटास : पुरानी चीनी का दस लाख टन स्टॉक खपाना बना चुनौती

शुगर मिलों के लिए लगभग दस लाख टन चीनी खपाना इस बार बड़ी चुनौती बन गया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के आदेशानुसार दो साल पुरानी चीनी को बेचा नहीं जा सकता जबकि कोरोना काल में चीनी की खपत कम होने और चीनी का उत्पादन काफी होने के बाद इस बार चीनी मिलों के पास चीनी का काफी स्टॉक है। शुगर मिल एसोसिएशन ने इस बाबत प्राधिकरण एवं सरकार दोनों से अनुरोध किया है कि नियमों में कुछ ढील की जाए।

17 नवंबर 2020 को एफएसएसएआई की ओर से पैकेजिंग, लेबलिंग एवं प्रदर्शन विनियमन संबंधी अधिसूचना जारी की थी। दरअसल वर्ष 2011 के इन नियमों को दो भागों में विभाजित किया गया था। खाद्य पदार्थों के मानकों को और स्पष्ट किया गया। किस पर कैसा लेबल लगा हो, उसकी एक्सपायरी कैसी हो और उसे कब तक इस्तेमाल किया जा सकता है, यह सब स्पष्ट किया गया था। चीनी के बारे में आदेश दिए गए थे कि उसके लेबल पर उसकी उत्पादन तिथि अंकित की जाए। कहा गया था कि मैन्युफैक्चरिंग के दो साल बाद चीनी को बेचा नहीं जा सकता है। साथ ही यह भी कहा गया था कि कारोबारी इन नियमों का पालन गजट प्रकाशन की तारीख के एक साल बाद शुरू करेंगे। एक साल पूरा होने पर इस साल नवंबर माह से इन नियमों का पूरी तरह से पालन करना होगा।

इस समय है 45 लाख टन का स्टॉक
इस समय भी चीनी मिलों केपास लगभग 45 लाख टन चीनी का स्टॉक जमा है। दरअसल, इस साल सूबे की 120 चीनी मिलों ने 110 लाख टन चीनी का उत्पादन किया। मुख्यत: चीनी कमर्शियल, घरेलू प्रयोग में आती और इसका निर्यात किया जाता है। वैसे भी कोरोना महामारी के दौरान बाजार में चीनी की डिमांड बुरी तरह से गिरी और नया उत्पादन काफी हुआ। शुगर मिल एसोसिएशन पदाधिकारियों का मानना है कि पूरी चीनी खपाने के बावजूद लगभग दस लाख टन चीनी का स्टॉक ऐसा होगा जिसे बेचना मुश्किल होगा। समय कम रहने के कारण मिल संचालकों में हड़बड़ी है।

री-प्रोसेस करना होगा
इस चीनी को बेचने योग्य बनाने के लिए फिर से चीनी मिलों को इसे री-प्रोसेस (पुनर्प्रसंस्करण)करना होगा। री- प्रोसेस में इस चीनी को पिघलाकर, गर्म कर दोबारा से चीनी बनानी पड़ती है। जब मिलें चलेंगी यह तभी होगा और इसमें अतिरिक्त खर्च आएगा। चीनी विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि हर साल उत्तर प्रदेश में लगभग सौ से 110 लाख टन चीनी का उत्पादन अब हो रहा है। पिछले वर्ष तो 125 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। ऐसे में प्रति वर्ष लगभग पांच से दस प्रतिशत चीनी के साथ यह स्थिति आ सकती है।

सरकार तक बात पहुंचाई
उत्तर प्रदेश शुगर मिल एसोसिएशन ने इस इस बाबत इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन को पत्र लिखकर कहा गया कि इस मसले पर सरकार से बात की जाए। बताया जा रहा है कि एसोसिएशन सरकार से बात कर रही है। साथ ही एफएसएसआई से भी अनुरोध किया है कि मानकों में कुछ ढील दी जाए।

चीनी मिल संचालकों को बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होगी। ऐसी चीनी को री- प्रोसेस किया जा सकता है। इसमें बहुत ज्यादा समय नहीं लगता है। वैसे बी कैटगरी का सर्टिफिकेट जारी कर इस तरह की चीनी की खपत के मार्ग पर बात हो रही है। 

  • संजय आर. भूसरेड्डी अपर मुख्य सचिव  चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास

सरकार ने यूपी में किसानों की समस्याओं से जुड़े हर मामले को गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी एक्सपोर्ट का बड़ी मात्रा में निर्धारण किया। साथ ही हमने खांडसारी उद्योगों को बढ़ावा देकर शुगर मिलों के साथ विकल्प खड़े किए। इस प्रकरण पर भी समुचित वार्ता एवं समन्वय के जरिए  काम होगा और बेहतर कार्ययोजना को अमल में लाया जाएगा