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Daughters Day 2021: खुले आसमान की ऊंची उड़ान हैं बेटियां, जानिए कुछ ऐसी ही बेटियों की कहानी

बेटी एक खूबसूरत एहसास होती है। निश्छल मन सी परी का रूप होती है। तपती धूप में शीतल हवाओं की तरह वो हर दर्द का इलाज होती है। घर की रौनक आंगन में चिड़िया की तरह, अंधकार में उजाले की खिलखिलाहट होती है। पिता की पगड़ी, गर्व, सम्मान होती है। बेटी एक खूबसूरत एहसास होती है। सीमा भट्टी की ये पंक्तियां आज के दौर में बेटियों पर सटीक बैठती हैं। जो हर मुश्किल दौर में अपनों और परायों की मदद के लिए हर वक्त डटी रहती है।

वक्त के साथ बदलती लोगों की सोच ने समाज में बेटियों को एक नई पहचान दी है। लोग बेटे और बेटी के बीच का भेद मिटाकर उन्हें भी अच्छी परवरिश और प्यार दे रहे हैं। यहीं वजह है कि बेटों की तरह अब बेटियां भी हर क्षेत्र में आगे आकर माता-पिता का नाम रौशन कर रहीं हैं। आज डॉटर्स डे पर हम कुछ ऐसी ही बेटियों की कहानी आपको बताएंगे, जो दूसरे के लिए प्रेरणा हैं।
मां की थाती को सहेजा, अब संवार रहीं दूसरों का जीवन

दिव्या उपाध्याय

चुरामनपुर निवासी दिव्या उपाध्याय ने अपनी शिक्षा और हुनर को आर्थिक रूप से मजबूर महिलाओं के बीच बांटा और उन्हें आज स्वावलंबी बना रहीं हैं। दिव्या महिलाओं को शिक्षित भी करती हैं। उनका सपना है खुद का जरी जरदोजी वर्क का व्यवसाय करने का, जिसमें स्टाफ महिलाएं होंगी।

दिव्या स्नातक होने के साथ एनटीटी का कोर्स कर स्कूल में पढ़ा भी चुकी हैं। दिव्या की मां को महिला सुरक्षा व सशक्तीकरण के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है। पिता के निधन के बाद भी दिव्या अपनी बड़ी बहन के साथ मिलकर छोटे भाई व परिवार का ख्याल रख रही हैं।

दिव्या बताती हैं स्कूल में पढ़ाने के दौरान मां के साथ चंदापुर गांव जाती थीं। वहीं महिलाओं को हैंडवर्क, जरी जरदोजी, एंब्रायडरी का काम करते देखा। उन्हें यह भा गया, साथ ही एक रास्ता दिखा, जिससे रोजगार भी होगा और अन्य महिलाओं को जोड़कर उन्हें भी आर्थिक तौर पर मजबूत किया जा सकता है। अब तक दिव्या 150 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं।

माता-पिता की सेवा के लिए समर्पित किया जीवन

पारुल

श्रवण कुमार ने जिस तरह अपना जीवन माता-पिता की सेवा को समर्पित किया था, उसी तरह सिगरा स्थित बैंक कॉलोनी निवासी पारुल भी अपना जीवन अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा को समर्पित कर चुकी हैं। माता-पिता की देखभाल के लिए पारुल ने बच्चों को शिक्षा देने के साथ अपना खुद का बिजनेस भी शुरू किया है। 28 वर्षीय पारुल ने अपने माता-पिता की देखभाल के लिए शादी न करने का फैसला किया है।

पारुल के माता-पिता ने भी अपनी दोनों बेटियों को बेटों जैसा ही प्यार दिया है। बरसों पहले जब मुंबई छोड़कर पारुल का परिवार बनारस आया तो उस वक्त परिवार के सामने कई तरह की चुनौतियां थी। लेेकिन पारुल की मां ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने अपनी बेटियों के लिए रात-दिन मेहनत की।
टेलरिंग का काम कर पिता ने अपनी दोनों बेटियों को शिक्षा-दीक्षा दी। जिसकी बदौलत आज दोनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हैं। पारुल की बड़ी बहन की शादी हाल ही में हुई है। जिसके बाद माता-पिता की पूरी जिम्मेदारी पारुल पर है।

बेटी ने दिलाई मां को पहचान

रीता

बात चाहे आज से 50 साल पहले की हो या फिर आज के समय की, एक औरत को बेटियों को पालने और बड़ा करने में जितनी मुश्किलों को सामना करना पड़ता है, उतना बेटों के लिए नहीं। और ये तब और मुश्किल हो जाता है, जब कोई औरत तीन बेटियों की मां हो। रीता भी एक ऐसी ही मां हैं, जिनके पास तीन बेटियां हैं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी बेटियों को ये एहसास नहीं होने दिया कि लड़कियों के लिए समाज में कोई चीज मुमकिन नहीं।

इवेंट मैनेजमेंट में अपना नाम कमा रही पूजा गोस्वामी की सफलता में बहुत बड़ा हाथ उनकी मां की सोच का है। पूजा अपने परिवार की पहली ऐसी बेटी थीं, जिन्होंने दसवीं के बाद बाहरवीं, स्नातक व एमबीए करने के बाद अपना खुद का स्टार्टअप शुरू किया। आज पूजा अपने जैसे कई युवाओं को इवेंट मैनेजमेंट का प्रशिक्षण देकर उन्हें अपने पैराें पर खड़ा कर रही है।

बच्चों की परवरिश करने के लिए पूजा की मां को हर दिन नए संघर्षों से सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी, उनका सपना था कि वो अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगी, और उन्हें एक सफल इंसान बनाई बनाएंगी। पूजा के काम से लोग उनकी मां को पहचानते है। रीता गोस्वामी खुद भी एक उद्यमी महिला हैं, जिनका बीड्स का कारोबार है।

परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहीं कशिश

कशिश

साकेत नगर निवासी 16 वर्षीय कशिश कुश्ती की उस परंपरा को आगे बढ़ा रहीं हैं, जिसे कभी उनके खानदान के दादा, ताया, पिता और चाचा ने आगे बढ़ाया और राष्ट्रीय प्रतियोगिता, यूपी, पूर्वांचल और बनारस केसरी का खिताब जीता। अब आगे इसी परंपरा को खानदान की बेटी आगे बढ़ा रही है।

राष्ट्रीय स्तर तक लड़ चुके पिता विनोद ने दूध बेचकर बेटी कशिश को दंगल गर्ल बनाने की ठानी तो बेटी ने भी पिता को निराश नहीं किया। पांच वर्ष के कुश्ती कॅरियर में स्कूली स्टेट, जूनियर स्टेट में दो बार स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। इसके अलावा स्कूली नेशनल 2019 में दमखम दिखा चुकी हैं।

कशिश के चाचा मुकेश यादव का कहना है अभी तक हमारे खानदान में पहलवानी में पुरुषों का वर्चस्व था, लेकिन इसी परंपरा को खानदान की बेटी आगे बढ़ा रही है। कशिश का कहना है कि परिवार से अगर सपोर्ट मिले तो सिर्फ कुश्ती में ही नहीं हर क्षेत्र में बेटियां कमाल कर सकती हैं। मुझे मेरे खानदान की परंपरा को आगे बढ़ाने का मौका मिला तो ओलंपिक में पदक लाकर काशी और खानदान का नाम रौशन करूंगी।

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