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यूपी मंत्रिमंडल विस्तार: सबका साथ-सबका विश्वास पर भाजपा ने बिछाई सियासी बिसात, ब्राह्मणों को मनाया

भाजपा ने योगी सरकार के मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार के जरिए ‘सबका साथ-सबका विश्वास’ का संदेश देते हुए 2022 के विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाने की कोशिश की है। लोकसभा चुनाव  के बाद अगस्त 2019 में पहले विस्तार में क्षेत्रीय व जातीय संतुलन साधने में रह गई खामियों को भी दूसरे विस्तार से दूर करने की कोशिश हुई है। 

पार्टी के रणनीतिकारों ने उन वर्गों व जातियों को राजनीति में भागीदारी देने की भाजपा की प्रतिबद्धता का संदेश देने का प्रयास किया है जिनके बीच भाजपा की पकड़ व पहुंच बढ़ी है। साथ ही जिन्हें कई कारणों से अब तक सामान्यत: सत्ता की सियासत में हाशिए पर रहना पड़ा है।

विधानसभा चुनाव से लगभग 5 महीने पहले हुए इस दूसरे और वर्तमान सरकार के संभवत: अंतिम विस्तार के बाद बनी पूरे 60 सदस्यीय मंत्रिमंडल की तस्वीर पर नजर डालें और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल प्रदेश के चेहरों के साथ उसका संतुलन बैठाएं तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भाजपा ने प्रदेश के पूरब से पश्चिम तक क्षेत्रीय संतुलन पर नजर रखी है। यह भी प्रयास किया है कि उसके समर्थकों क्षेत्रों या वर्गों की अनदेखी न हो। 

अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों की भागीदारी बढ़ाकर तथा अनसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व देकर पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को जमीन पर उतारने का प्रयास किया है। मंत्रिमंडल में ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर विपक्ष के भाजपा सरकार में ब्राह्मणों की उपेक्षा के आरोपों का प्रतिकार तथा विरोधियों पर पलटवार भी किया गया है। यह सोशल इंजीनियरिंग एक तरह से वर्तमान गृहमंत्री व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी लड़ाई को समग्र हिंदुत्व के फॉर्मूले पर 60 बनाम 40 बनाने की रणनीति का हिस्सा है। 

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एपी तिवारी कहते भी हैं कि विस्तार से जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय अर्थात समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भागीदारी व सम्मान देने के संकल्प का संदेश निकल रहा है। इसके जरिए समावेशी राजनीति को भी मजबूती देने की कोशिश हुई है। इससे योगी सरकार के बेहतर विकास प्रदर्शन के साथ अस्मिता की राजनीति को ताकत मिलेगी।

जातीय सियासी गणित का साधा संतुलन
मंत्रिमंडल में अगड़ों व अन्य जिसमें पिछड़े व अनुसूचित जाति के लोग शामिल हैं के बीच 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी बांटने की रणनीति पर काम कर सबका ध्यान रखने का संकल्प जताया गया है। विस्तार में जितिन प्रसाद के रूप में अगड़ी जाति के ब्राह्मण चेहरे को शामिल करके कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान की मौत से घटे अगड़े जातियों के प्रतिनिधित्व को 28 ही बनाए रखा गया है। हालांकि पूर्व की अपेक्षा मंत्रिमंडल में ठाकुरों का पहले 8 चेहरों की तुलना में प्रतिनिधित्व घटकर सात ही रह गया है। अब ब्राह्मणों की संख्या 9 की जगह 10 हो गई है। इसे सियासी समीकरणों की मजबूरी मानी जा सकती है।

इस तरह भी रखा बराबरी का ध्यान
अगस्त 2019 में मंत्री बने विजय कश्यप के निधन से पिछड़ी जातियों की संख्या 19 की जगह 18 रह गई थी। विस्तार में एक कुर्मी, एक प्रजापति (कुम्हार) और एक बिंद को शामिल करके कश्यप के निधन के बाद असंतुलित हुए समीकरणों को दुरुस्त किया गया है। साथ ही पिछड़ों की भागीदारी बढ़ाकर भी भाजपा की सियासत में इनका खास ध्यान रखने का संदेश देकर विपक्ष के लिए सियासी चुनौती खड़ी करने का प्रयास किया है। 

अगस्त 2019 के विस्तार के बाद मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति के सात चेहरे हो गए थे। पर कमल रानी वरुण के निधन से यह संख्या घटकर 6 रह गई थी। दूसरे विस्तार में अनुसूचित जाति की खटिक बिरादरी से दो चेहरों को लेकर न सिर्फ वरुण के निधन से दलितों के कम हुए प्रतिनिधित्व को दुरुस्त किया गया है, बल्कि इनका प्रतिनिधित्व बढ़ाकर भाजपा के साथ चलने का संदेश देने की कोशिश हुई है। मंत्रिमंडल में सिख तथा मुस्लिम प्रतिनिधित्व पूर्ववत एक-एक बनाए रखा गया है।

साधते-साधते भी रह गया असंतुलन
तमाम समीकरणों का ध्यान रखने के बावजूद कैबिनेट मंत्रियों में कोई महिला चेहरा नहीं है, लेकिन माना जा सकता है कि  भाजपा ने इसकी कमी बेबीरानी मौर्य को राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाकर पूरी करने की कोशिश की है। साथ ही संगीता बिंद के रूप में पूर्वांचल की अति पिछड़ी जातियों में नया महिला नेतृत्व उभारने की कोशिश की है। भाजपा की झोली में अच्छी संख्या में सीटें डालने के बावजूद कुछ महत्वपूर्ण जिलों को अब भी मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व न मिलने का मलाल है। प्रतिनिधित्व पाए जिलों के पिछड़ेपन और संगठन के सामने वहां खड़़ी सामाजिक समरसता के संतुलन की चुनौती को देखते हुए यह अनदेखी समझी जा सकती है।

नया नेतृत्व उभारने पर ध्यान
गौर से देखें तो भाजपा नेतृत्व ने इस विस्तार के जरिए पार्टी के लिए अलग-अलग जातियों से नए नेतृत्व को निकालकर उसे तराशने की रणनीति पर भी काम किया है। जिन्हें मंत्री बनाया गया है उनमें जितिन को छोड़ दें तो सभी नए हैं। छत्रपाल गंगवार के अलावा ज्यादातर की आयु भी ज्यादा नहीं है। कई तो पहली बार के विधायक हैं। जाहिर है कि भाजपा ने इनके जरिए संगठन के लिए सामाजिक समीकरणों पर काम करने के लिए भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर कई नए चेहरे सामने लाने की भी कोशिश की है।