सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर लगे प्रतिबंध को हटाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि रोजगार की आड़ में अन्य नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। न्यायाधीश एम आर शाह और ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा, “हमें बेरोजगारी और नागरिक के जीवन के अधिकार के बीच संतुलन बनाना होगा। कुछ लोगों के रोजगार की आड़ में हम दूसरों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दे सकते। पटाखा विक्रेताओं के एक समूह ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और पटाखों की बिक्री की अनुमति मांगी थी, इसपर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देने से इनकार कर दिया।
दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हमारा मुख्य ध्यान निर्दोष नागरिकों के जीवन के अधिकार पर है। अगर विशेषज्ञों की समिति द्वारा पटाखा बिक्री और फोड़ने की अनुमति मिलती है तो हम आने वाले समय में इस पर विचार कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि कानून तो हैं, लेकिन अंतत: क्रियान्वयन वहां होना चाहिए। हमारे आदेश को सच्ची भावना से लागू किया जाना चाहिए।
लाखों बेरोजगारों पर ध्यान देने की जरूरत- वकील
पटाखों के निर्माता संघ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आत्माराम नाडकर्णी ने कहा कि दिवाली 4 नवंबर को है। इस कारोबार से लाखों लोग जुड़े हुए हैं, उनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा है। पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) को इसपर अपना विचार रखना चाहिए। साथ ही सरकार को भी केंद्र सरकार को भी लाखों बेरोजगार लोगों को ध्यान में रखकर अपनी राय रखनी चाहिए।
कोरोना काल में एनजीटी ने पटाखों की बिक्री पर लगाया था प्रतिबंध
गौरतलब है कि कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट ने ‘खराब’ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) वाले क्षेत्रों में में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने बताया था कि स्वास्थ्य पर पटाखों के दुष्प्रभावों को मापने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता नहीं है। दिल्ली का कोई भी व्यक्ति इसके प्रभावों से अच्छी तरह से अवगत है।