कानपुर में जीका से सबसे ज्यादा खतरा गर्भवती और गर्भस्थ शिशुओं को है। यह सब जानने के बाद भी हद दर्जे की लापरवाही बरती जा रही है। जीका संक्रमित महिला का प्रसव एक नर्सिंगहोम में हुआ है। किसी जीका संक्रमित महिला का यह प्रदेश में पहला प्रसव है। महिला ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, इसमें एक बच्चे की हालत गंभीर है।
ताज्जुब की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे बच्चों के लिए अलग से इंतजाम नहीं किए। आम बालरोगियों जैसी ही व्यवस्था है। हालांकि जीका से अभी तक कोई मरीज गंभीर नहीं हुआ, शायद इसीलिए स्वास्थ्य विभाग भी इसे लेकर गंभीर नहीं है। काजीखेड़ा की महिला के प्रसव के बाद स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था की पोल खुल गई है।
विभाग ने जीका संक्रमित मां के बच्चे के इलाज के लिए कुछ भी अलग से इंतजाम नहीं किया है। हैलट के बालरोग अस्पताल, डफरिन, कांशीराम अस्पताल में ऐसे बच्चों के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। डॉक्टरों का कहना है कि भले ही कोई संक्रमित नर्सिंगहोम में प्रसव कराता है लेकिन इसकी निगरानी मेडिकल कॉलेज या स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों को करनी चाहिए। ऐसा नहीं हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग की टीम गुरुवार को हैलट शिफ्ट किए गए नवजात को देखने भी नहीं पहुंची। इसी तरह आठ अन्य गर्भवतियों को फोन करके ही खैरियत ली जा रही है। कायदे से विशेषज्ञों की टीम की मॉनीटरिंग में संक्रमित गर्भवती को रहनी चाहिए।
इससे बच्चों की स्थिति में जो बदलाव आएंगे, वह दुनिया भर के लिए शोध का विषय होगा। इसके साथ ही भविष्य में जीका संक्रमित माताओं के बच्चों के लिए एक गाइडलाइन बनेगी। सीएमओ डॉ. नैपाल सिंह का कहना है कि सभी गर्भवतियों और उनके गर्भस्थ शिशुओं की मॉनीटरिंग की जा रही है।
यह होना चाहिए
स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कालेज को कायदे से जीका संक्रमित माताओं के शिशुओं के लिए अलग वार्ड बनाना चाहिए। यहां जीका के इलाज की बारीकी समझने वाले विशेषज्ञों की टीम होनी चाहिए। नवजात में अगर किसी भी बीमारी के लक्षण हैं तो तुरंत एमआरआई करानी चाहिए जिससे मस्तिष्क और रीढ़ की जांच हो। इसके अलावा अन्य लक्षण भी बच्चे में हो सकते हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए।