Sunday , November 24 2024

13वीं विधानसभा की कोख से जन्मा उत्तराखंड: देवगौड़ा की घोषणा, अटल का अमल और बंट गया उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के पर्वतीय इलाकों को मिलाकर अलग राज्य बनाने का 1993-94 का आंदोलन रामपुर तिराहा कांड के चलते पूरे देश में न सिर्फ चर्चित हुआ बल्कि इसकी प्रतिक्रिया में पर्वतीय इलाकों में हिंसक धरना-प्रदर्शन ने राजनीतिक दलों का ध्यान भी इस पर केंद्रित कर दिया। वैसे मुलायम सिंह यादव ने भी बतौर मुख्यमंत्री पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य बनाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार को 23 अगस्त 1994 को प्रस्ताव भेजा था। मुलायम ने आरक्षण पर पर्वतीय क्षेत्र के छात्रों की आशंकाओं को दूर करने के लिए वहां के सभी विश्वविद्यालयों में एमएससी और बीएड की कक्षाओं में सीटें भी बढ़ा दीं, लेकिन वह पर्वतीय क्षेत्र के लोगों का गुस्सा कम नहीं कर पाए।

देवगौड़ा की घोषणा, अटल का अमल, 9 नवंबर 2000 को बंट गया उत्तर प्रदेश
दिलचस्प यह रहा कि 1996 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के बाद बनी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार जिसमें रामपुर तिराहा कांड के कारण पर्वतीय इलाके के लोगों की निगाह में खलनायक बने मुलायम सिंह यादव भी बतौर रक्षामंत्री शामिल थे, उसने अलग राज्य बनाने की घोषणा कर दी। पर, इसने साकार रूप लिया 9 नवंबर 2000 को जब केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रस्ताव पर तत्कालीन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इसकी अधिसूचना जारी की गई। उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) राज्य अस्तित्व में आया। उत्तरांचल के साथ ही देश में दो अन्य राज्य छत्तीसगढ़ और झारखंड भी अस्तित्व में आए।

भाजपा ने मुद्दा बना दिया
रामपुर तिराहा कांड को भाजपा ने मुद्दा बना दिया। भाजपा नेता और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष कल्याण सिंह न सिर्फ पीड़ित परिवारों से मिले बल्कि मुलायम सिंह यादव सरकार और केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया। राज्यपाल के अभिभाषण पर बोलते हुए कल्याण सिंह ने न केवल रामपुर तिराहा कांड में हुई अमानवीयता को मुद्दा बनाया। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने भी मुलायम सिंह यादव की सरकार की तरफ से रखे गए राज्य विभाजन के प्रस्ताव का समर्थन किया था लेकिन उसी की केंद्र सरकार ने प्रदेश से भेजे गए दो-दो प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। कल्याण सिंह ने राज्य व केंद्र में भाजपा सरकार बनने पर पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य बनाने की भाजपा की नीति भी दोहराई।
वाजपेयी की सरकार ने की शुरुआत
चुनाव आ गए। भाजपा ने अलग राज्य पर अपनी प्रतिबद्धता जताई। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 दिन ही रही। वह इसपर कुछ कर तो नहीं सके, लेकिन वादा जरूर किया कि जब उनकी स्थायी सरकार बनेगी तो इसपर जरूर काम करेंगे। इसके बाद संयुक्त मोर्चा ने जनता दल के नेता और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने।

उन्होंने 15 अगस्त 1996 को लाल किला से यूपी के पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य की स्थापना की घोषणा की। पर, 21 अप्रैल 1997 को उन्हें पद से हटना पड़ा। वर्ष 1998 में लोकसभा के फिर चुनाव हुए।

अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार ने उत्तरांचल विधेयक राष्ट्रपति के माध्यम से प्रदेश विधानसभा को भेजा। प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने 26 संशोधनों के साथ ‘उत्तरांचल राज्य विधेयक’ विधानसभा से पारित कराकर केंद्र को भेजा। पर, इसी बीच 1999 में लोकसभा के फिर चुनाव हो गए।

केंद्र सरकार ने पारित किया विधेयक
अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार ने ‘उत्तर   प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000’ लोकसभा में रखा। लोकसभा ने 1 अगस्त   और राज्यसभा ने 10 अगस्त को इस विधेयक को पारित कर दिया। राष्ट्रपति   ने अगस्त 2000 में विधेयक को स्वीकृति दे दी। विधेयक अधिनियम बन गया। प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने अन्य औपचारिकताएं पूरी कर 9 नवंबर 2000 को प्रदेश का औपचारिक विभाजन कर दिया। इस तरह उत्तरांचल राज्य अस्तित्व में आया।
उत्तरांचल से उत्तराखंड… पारित हुआ नाम परिवर्तन का अधिनियम
उत्तरांचल के लोग अपना राज्य बनने से खुश तो थे लेकिन उनकी मांग थी कि राज्य का नाम उत्तरांचल के बजाय उत्तराखंड रखा जाए। आखिरकार लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए केंद्र सरकार ने 21 दिसंबर, 2006 को उत्तरांचल (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 2006 को पारित कर दिया। केंद्र सरकार ने 29 दिसंबर 2006 को 1 जनवरी, 2007 से  उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड करने की अधिसूचना जारी कर दी। राज्य    के गठन के समय प्रदेश विधानसभा में पर्वतीय क्षेत्रों से 22 और विधानपरिषद में 8 सदस्य थे। नए राज्य में 71 सदस्यीय विधानसभा बनाने का निर्णय हुआ। इसमें 70 निर्वाचित होते हैं, जबकि एंग्लो इंडियन समुदाय से एक सदस्य मनोनीत किया जाता है।

यूपी के और बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ा
उत्तराखंड के अलावा देश में मध्यप्रदेश को विभाजित कर छत्तीसगढ़ और बिहार को काटकर झारखंड राज्य बनाने के कारण भाजपा छोटे राज्यों के समर्थक के रूप में उभरी। साथ ही इन राज्यों के निर्माण ने उत्तर प्रदेश के और बंटवारे की मांग करने वालों का हौसला बढ़ा दिया। पश्चिम से हरित प्रदेश की मांग उठी तो पूरब से अलग पूर्वांचल राज्य बनाने की आवाज मुखर हुई। बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने को लेकर आंदोलन हुए। तराई से रुहेलखंड राज्य बनाने की मांग भी उठी। ये मांगें अब भी अलग-अलग तरीके से जब-तब सामने आती रहती हैं। कुछ राजनीतिक दल भी समय-समय पर राज्य के बंटवारे पर अपने समीकरणों के लिहाज से राजनीति करते हैं। बसपा की नेता मायावती का प्रदेश को 4 हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव भी सभी को याद होगा।