प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी संकट को अवसर में बदलने में यकीन करते हैं। अगले कई हफ्तों के दौरान उन्हें कुछ कड़ी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना है। यदि वह उन पर काबू पाने में सफल हो जाते हैं, तो यह 2024 के संसदीय चुनावों में उनकी सुचारू वापसी की नींव रख सकता है। वैसे इस साल बजट के रूप में उन्होंने अभी-अभी एक बाधा पार कर ली है, जिसे वित्तमंत्री ने ‘अमृत काल’ का बजट कहा है। मोदी के सामने आगामी चुनौती है, उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव। चूंकि चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार पर लगे प्रतिबंधों में कुछ ढील दी है, ऐसे में मोदी पांच राज्यों के चुनींदा जिला मुख्यालयों में जाना चाहेंगे। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे 10 मार्च को आएंगे और तब मोदी की वास्तविक राजनीतिक चुनौती शुरू होगी और वह है अगले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव। यह देखना होगा कि नरेंद्र मोदी अपनी पसंद का चुनाव कैसे करेंगे और उनके पास विकल्प क्या हैं?
पहले बजट पर लौटते हैं। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रभावी ढंग से भाजपा के 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में शामिल भाजपा के तकरीबन सभी प्रमुख मुद्दों को अमल में लाया है। दिलचस्प यह है कि मोदी, दिवंगत अरुण जेटली और निर्मला सीतारमण, इन तीनों ने घोषणा पत्र के मसौदे को मंजूरी दी थी। बजट में बड़े आर्थिक सुधारों को शामिल किया गया है। क्रिप्टो करेंसी और डिजिटल मुद्रा का जिक्र भाजपा के घोषणा पत्र में नहीं था, उसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था में जगह दी गई है। मोदी प्रशासन के लिए क्रिप्टो करंसी एक बड़ी चुनौती है। भाजपा ने इस संकट को भी पार कर लिया है। इसकी जिम्मेदारी अब रिजर्व बैंक पर डाल दी गई है।
अभी संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस चल रही है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने काफी उत्तेजक भाषण दिया है, मगर वह भाजपा की चाल में उलझ गए। कुल मिलाकर देखा जाए, तो अभी संसद सुचारू ढंग से चल रही है। न तो कांग्रेस और न ही तृणमूल ने कार्यवाही को बाधित किया है। इससे मोदी सरकार को पर्याप्त राहत है और अपनी रणनीति पर काम करने का मौका मिला है। मोदी सरकार ने तय किया है कि बजट सत्र के पहले हिस्से में वह कोई विधेयक नहीं लाएगी।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों को अनेक पर्यवेक्षक मोदी सरकार की दूसरी पारी की मध्यावधि समीक्षा की तरह देख रहे हैं। औसतन हर तीसरे महीने में देश के किसी भी कोने में होने वाले चुनाव अपने आपमें चुनौती हैं और इन सबमें जीतने की इच्छा ने मोदी पर अतिरिक्त दबाव बनाया है। वह अपनी पार्टी के वोट दिलाने वाले सर्वोच्च नेता हैं और हर चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व वही करते हैं।
मोदी ने पांचों राज्यों में चुनाव प्रचार का एक दौर पूरा कर लिया है। पार्टी के अंदरूनी लोग कहते हैं कि वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स में भी नरेंद्र मोदी की उपस्थिति हजारों लोगों की उपस्थिति में होने वाली सभाओं जैसी प्रभावी होती है। व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश और मणिपुर के चुनाव में विजय हासिल करने में भाजपा को मुश्किलें नहीं आनी चाहिए। लेकिन पंजाब और गोवा में उसे धक्का लग सकता है और इससे मोदी को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 अप्रैल को और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म होगा। मोदी को इन शीर्ष सांविधानिक पदों के उम्मीदवारों के चयन को लेकर काफी मशक्कत करनी होगी। राष्ट्रपति के पिछले चुनाव के समय 2017 में भाजपा के पास भारी बहुमत था, क्योंकि तब शिवसेना और अकाली दल एनडीए का हिस्सा थे। यही नहीं, तब तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में थी और उसने रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था। लेकिन अब परिदृश्य बदल गया है। तमिलनाडु में द्रमुक सरकार में है और 2019 में दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बदले जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर की विधानसभा बहाल नहीं हुई है। इसके अलावा बहुत कुछ पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी निर्भर करेगा।
इसलिए मोदी को राष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार की जीत के लिए आवश्यक मत प्राप्त करने के लिए भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है। राष्ट्रपति के चुनाव के लिए लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों तथा सारी विधानसभाओं के सदस्यों को मिलाकर इलेक्टोरल कॉलेज बनाया जाता है और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर निर्वाचन किया जाता है। 2017 में दोनों सदनों के 776 सांसदों और 4,120 विधायकों से इलेक्टोरल कॉलेज बनाया गया था। मोदी ने इसके बारे में हाल ही में आरएसएस के नेताओं, भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह के साथ विस्तृत चर्चा की है। ऐसे कयास हैं कि आरएसएस ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए अपनी पसंद के उम्मीदवारों के कुछ नाम भी सुझाए हैं।
कहा जाता है कि मोदी इस बार देश के शीर्ष सांविधानिक पद पर किसी दक्षिणी राज्य, संभवतः तमिलनाडु से किसी महिला को देखना चाहते हैं। संभावित उम्मीदवारों में दो राज्यपालों के नाम हैं।एक बात बहुत स्पष्ट दिख रही है कि न तो कोविंद को दूसरा कार्यकाल मिलने जा रहा है और न ही नायडू को पदोन्नत करने पर विचार हो रहा है। संभवतः इस बारे में जुलाई के पहले हफ्ते में ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। और मोदी की शैली के अनुरूप कोई चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है।