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यूपी का रण : धर्म और कर्म की धुरी पर घूम रही है अयोध्या की सियासत, राम की नगरी का मुद्दा बरकरार

अयोध्या में एक बार फिर विचारों की जंग है। मंदिर-मस्जिद विवाद के उफान पर आने के बाद यहां चुनाव में जीत और हार का फैसला विवाद की पृष्ठभूमि पर ही होता रहा है। समय चाहे जैसा रहा हो, लेकिन चुनाव के अंतिम क्षण में ध्रुवीकरण जीत का मार्ग प्रशस्त करता रहा है। समय बदला, परिस्थितियां बदलीं, श्रीराम मंदिर का निर्माण भी शुरू हो गया, लेकिन सियासत की अंतर्धारा में यह मुद्दा अब भी बरकरार है। इस बार के चुनाव में जीत-हार की पटकथा इसी पृष्ठभूमि में लिखे जाने की कोशिश है।

देश की सियासत के केंद्र बिंदु में रहने वाली अयोध्या फिर से उसी भूमिका में है। भाजपा, बसपा, आप जैसे कई दलों के नेताओं ने घोषित -अघोषित रूप से यहीं से विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया। अयोध्या को भुनाने की कोशिश की। साफ है कि अयोध्या अब भी सियासत की अंतर्धारा में तेजी से बह रही है। सबके लिए अयोध्या नाक का सवाल बन गई है। भाजपा इस पर वर्चस्व बनाए रखकर बदली परिस्थितियों में अपने विचारों व सियासी पकड़ का संदेश देना चाहती है।

बहरहाल, अयोध्या पर सियासी कब्जे के लिए सभी प्रमुख दलों नें अपने योद्धाओं को मैदान में उतार दिया है। दशकों से इस पर कब्जा बरकरार रखने वाली भाजपा ने विधायक रहे वेद प्रकाश गुप्ता को फिर से आगे बढ़ाया है, तो सपा ने पिछले चुनाव में असफल होने वाले तेज नरायन पांडेय पवन को प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने नए प्रत्याशी रवि मौर्य को, तो कांग्रेस ने नौ साल बाद महिला प्रत्याशी रीता मौर्य को उतारा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के दर्शन-पूजन के बाद उत्साहित आप ने जिले की अन्य सीटों के साथ ही यहां भी प्रत्याशी उतार दिया है। 

भाजपा और सपा प्रत्याशियों को लंबा सियासी अनुभव है। भाजपा प्रत्याशी वेद प्रकाश गुप्त चौथी बार चुनाव मैदान में हैं। वे वर्ष 2007 के चुनाव में सपा और 2012 के चुनाव में बसपा के टिकट पर अखाड़े में उतरे थे, लेकिन दोनों बार हार गए। दल बदल कर 2017 में गुप्त भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे और विधानसभा पहुंचे। सपा प्रत्याशी तेज नरायन पांडेय पवन लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति की उपज हैं। पार्टी ने उन्हें 2012 के चुनाव में अयोध्या विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया और वे चुनाव जीते भी। 

यह पहला मौका था, जब 1991 के बाद अयोध्या में भगवा ब्रिगेड को शिकस्त मिली, लेकिन सपा के टिकट पर ही 2017 के चुनाव में वे हार गए। एक बार फिर सपा ने उनको इस वीआईपी सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है। बसपा प्रत्याशी रवि मौर्य पार्टी के काडर के नेता हैं। वे पहली बार चुनावी मैदान में आए हैं, तो कांग्रेस से रीता मौर्य का भी यह पहला सियासी इम्तिहान है। चुनाव की जंग में यहां हमेशा ही भाजपा और सपा आमने-सामने रही है। इस बार भी इन्हीं दोनों के बीच लड़ाई के आसार बन रहे हैं। कांग्रेस और बसपा इसे त्रिकोणीय बनाकर मुख्य मुकाबले में आने की कोशिश कर रहे हैं। पुरानी पीढ़ी के नेता की पहचान रखने वाले भाजपा प्रत्याशी वेद प्रकाश गुप्ता शालीन, मृदुभाषी और मिलनसार हैं, लेकिन पिछले पांच साल में आम मतदाताओं के बीच कम रहने की चर्चा है। 

आम लोगों की नजर में सपा प्रत्याशी तेज नरायन पांडेय व्यवहार कुशल, मुखर और लोगों के बीच बने रहे हैं। उन्हें ज्यादा बोलने और मुद्दों को गढ़ने वाला कहा जाता है। पर, विधायक रहने के दौरान हुई नाराजगी का असर आज भी माना जा रहा है। यहां से विधायक रहे डॉ. निर्मल खत्री प्रदेश में राज्यमंत्री, दो बार सांसद और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, तो भाजपा से कई बार के विधायक लल्लू सिंह प्रदेश सरकार में मंत्री, दो बार के सांसद के साथ संगठन के कई बड़े पदों पर रह चुके हैं। (संवाद)

2017 के चुनाव परिणाम
वेद प्रकाश गुप्ता, भाजपा 1,07,014
तेज नारायण,सपा 56,574
मो. बज्मी सिद्दीकी, बसपा 39,554

वोटों की गणित
3,81,532
कुल मतदाता
ब्राह्मण 62 हजार
ठाकुर 34 हजार
यादव 37 हजार
मुसलमान 55 हजार
वैश्य 51 हजार
निषाद 30 हजार
दलित 42 हजार    
कायस्थ 18 हजार, 
पिछड़ा वर्ग 33 हजार
अन्य 16 हजार