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Ukraine Crisis : रास्ता बताने के लिए बहन कर रही थी वीडियो कॉल, यूक्रेनियन सैनिकों ने तानीं बंदूकें

चारों ओर बम धमाके हो रहे थे। अपनी दो बहनें और एक भाई के साथ मैं खारकीव से निकलने का प्रयास कर रही थी। हड़बड़ी में मेरी बहन रास्ता भटक गई। उसे समझाने के लिए मैंने वीडियो कॉल किया तो यूक्रेन के सैनिकों ने मुझे व मेरे भाई पर बंदूकें तान दी। एक बारगी लगा कि सब कुछ खत्म हो जाएगा।

करीब पांच मिनट तक मौत से सामना होता रहा। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। यूक्रेनियन सैनिक क्या बोल रहे थे, समझ में नहीं आ रहा था। उनके चेहरे गुस्से से लाल थे। बंदूक के आगे पांच मिनट के भीतर होने वाले धमाकों की आवाजें हलक को सुखा दे रहीं थीं। सड़क से गुजर रहे स्थानीय निवासियों ने किसी तरह सैनिकों को समझाया। तब किसी तरह सुरक्षित निकल पाए। खारकीव से आईजीआई एयरपोर्ट पर पहुंची एमबीबीएस तीसरे साल की छात्रा यासमीन ने शनिवार को यह खौफनाक दास्तां बयां की।

यासमीन अपने तीन बहन-भाई के साथ यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। उसका भाई खारकीव इंटरनेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में दूसरे वर्ष का छात्र है, जबकि बहन नौशीन और निलोफर वीएन कराजीन यूनिवर्सिटी में चौथे वर्ष की छात्राएं हैं। यासमीन ने बताया कि जब कई दिनों तक बंकर में रुकने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली तो खुद की जान जोखिम में डाल अपने वतन लौटने का प्रयास किया।
इस बीच किसी तरह खाने-पीने का सामान लेने के लिए खारकीव स्थित स्टोर पहुंची। दूसरे हॉस्टल से आ रही बहन से वीडियो कॉल पर बात कर रही थी। इस बीच यूक्रेन के सैनिकों ने पीछे से चिल्लाना शुरू कर दिया। इससे पहले माजरा कुछ समझ आता कि पीछे मुड़कर देखने पर बंदूकें अपनी ओर तनी हुई देखकर दिल बैठ गया। एक पल के लिए लगा कि अब सब कुछ खत्म हो जाएगा।
यूक्रेनी सैनिक लगातार चिल्ला रहे थे, लेकिन बम धमाकों की शोर के आगे कुछ भी समझ पाना मुश्किल था। इस बीच पास से गुजर रहे स्थानीय लोगों ने सैनिकों को समझाकर मेरा वीडियो कॉल बंद कर दिया, तब जाकर जान बची। कैब के माध्यम से ल्वीव रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां से पोलैंड पहुंचने के बाद भारत की धरती पर उतरने के बाद ही सुरक्षित महसूस हुआ।
वहीं, इमरान ने बताया कि बम धमाकों की वजह से दिल पहले ही दहला हुआ था। यूक्रेन के सैनिकों की बंदूकें अपने ऊपर तनी देखकर आंखों के आगे अंधेरा छा गया था। मन में खुद से ज्यादा बहन की सुरक्षा को लेकर चिंता थी, लेकिन किसी तरह हम चारों भाई-बहन सुरक्षित निकलकर दिल्ली पहुंचे हैं। अब यहां से अपने घर चेन्नई के लिए सफर तय करना है।

36 घंटे पोलैंड पुलिस की गिरफ्त में रही फरीदाबाद की छात्रा

यूक्रेन से जान बचाकर भारत लौट रही फरीदाबाद की एक छात्रा पोलैंड बॉर्डर पर आकर बुरी तरह फंस गई। ठंड के कारण बेहोश हुई छात्रा का हैंडबैग चोरी हो गया, जिसमें उसके मोबाइल समेत तमाम दस्तावेज चले गए। यहां स्थानीय पुलिस ने जांच की तो वह खुद को भारतीय साबित नहीं कर सकी। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। दोस्तों ने मामले की सूचना भारतीय दूतावास को दी, जिस पर फरीदाबाद से परिजनों ने दस्तावेज की फोटोकॉपी ई-मेल से भेजी और 36 घंटे बाद छात्रा पुलिस की गिरफ्त से बाहर निकल पाई। दिल्ली आकर छात्रा मानसी मंगला ने अपनी पीड़ा बयां की।

फरीदाबाद की मानसी मंगला यूक्रेन में टरनोपिल शहर के नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की चौथे साल की छात्रा हैं। रूसी हमले के बाद 24 फरवरी को ही वह अपने हॉस्टल से पोलैंड बार्डर के लिए दोस्तों के साथ निकल गई। ट्रेन, कैब, बस से तीन दिन में बॉर्डर पर पहुंचना संभव हुआ। जमा देने वाली ठंड के बीच बॉर्डर पर वह बेहोश हो गई। होश आने पर उसे अपना हैंडबैग नहीं मिला। इसमें उसके मोबाइल समेत दूसरे जरूरी दस्तावेज रखे थे। अब उसके सामने पहचान का संकट पैदा हो गया। उसका यह साबित करना मुश्किल था कि वह भारतीय है। इसी बीच उसका सामना स्थानीय पुलिस से हुआ। उससे पासपोर्ट मांगा गया, लेकिन वह पुलिसकर्मियों को समझाने में नाकाम रही कि उसका सामान चोरी हो गया। वह मोबाइल, पासपोर्ट समेत दूसरे कागजात चोरी होने का कोई प्रमाण भी नहीं दे सकी। इसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया।

मानसी को थोड़ी मदद तब मिली, जब उसे दोस्तों से मिलने दिया गया। इसके बाद उन्होंने दूतावास को सूचना दी। संयोग रहा कि उसे अपने घर का एक नंबर याद था। फोन पर बातचीत हुई। परिवारवालों से दूतावास से संपर्क कर दस्तावेज की फोटो कापी भेजी। तब जाकर वह पुलिस की गिरफ्त से निकल सकी। इसमें करीब 36 घंटे का वक्त लगा। यूक्रेनियन पुलिस व दूतावास ने छात्रा का अस्थायी टिकट जारी कराया और वह शनिवार सुबह आईजीआई एयरपोर्ट पर पहुंच गई। 

स्विफ्ट से बाहर रूस, वतन लौटने लगे हैं भारतीय छात्र

यूक्रेन पर रूस के हमले के विरोध में अमेरिका व यूरोपीय आयोग ने रूस के कई बैंकों को सोसायटी फॉर वर्ल्ड वाइड इंटर बैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन(स्विफ्ट) मैसेजिंग सिस्टम से बाहर कर दिया है। इससे वहां रह रहे भारत समेत अन्य कई देशों के बच्चों को वित्तीय लेनेेदेन में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उधर, कई छात्रों को रूस छोड़कर भारत लौटना पड़ रहा है।

क्रीमिया की क्रीमियन फेडरल यूनिवर्सिटी से शनिवार को दिल्ली एयरपोर्ट लौटी दो छात्राओं ने अपना दर्द साझा किया। एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा व मूलरूप से राजस्थान के अलवर की रहने वाली खुशी रावत ने बताया कि रूस के स्विफ्ट से बाहर होते ही सामान खरीदने में परेशानी हो रही है। घर से मिलने वाली रकम का भी संदेशा नहीं मिल रहा है। इसकी वजह से रुपयों के पुष्टि संदेश को लेकर परेशानी हो रही है। राजस्थान निवासी रिद्धिमा प्रधान ने कहा कि वह भी एमबीबीएस दूसरे वर्ष की छात्रा हैं। लड़ाई छिड़ने के बाद से रूस में महंगाई बढ़ गई है। खाने-पीने से लेकर अन्य चीजों के दामों में कई गुना बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यही वजह है कि रिद्धिमा के साथ 20 अन्य भारतीय छात्रों ने भी रूस छोड़ने का फैसला किया है।

32 घंटे का सफर तय कर पहुंचे मास्को
छात्राओं ने बताया कि भारत आने के लिए क्रीमिया से सीधी फ्लाइट नहीं मिल पा रही थी। इस वजह से पहले छात्रों को 32 घंटे का सफर तय कर मास्को पहुंचना पड़ रहा है। इसके बाद वाया दुबई भारत वापसी हो रही है। युद्ध छिड़ने की वजह से छात्रों को एयरपोर्ट पर लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

चाचा आप कहां हो, जल्दी आ जाओ…

चाचा, आप कहां हो, जल्दी आ जाओ…। यूक्रेन के कीव में एके-47 की गोलियां से जख्मी हुए 31 वर्षीय छात्र हरजोत सिंह की भतीजी गुरलीन अपने चाचा को इस वक्त कुछ इस तरह की याद कर रही है। मासूम को यूक्रेन संकट से बेशक सीधा वास्ता नहीं, अब हर वक्त हरजोत के पहुंचने का रास्ता देख रही है। पिता केसर सिंह की आंखें लगातार टीवी पर टिकी हैं, मां प्रकाश कौर हर पल बेटे के महफूज लौटने का इंतजार कर रही हैं।

यूक्रेन में छह घंटे के युद्धविराम में भी उसके भारत लौटने की उम्मीद फीकी हो गई। क्योंकि, वह फिलहाल पैदल चल नहीं सकता है। परिजनों ने हरजोत सिंह के साथ देश के सभी छात्रों की सुरक्षित स्वदेश वापसी की सरकार से गुहार लगाई है।

हरजोत के बड़े भाई प्रभजोत सिंह ने बताया कि घर में सभी लोग उसकी खैरियत की दुआएं मांग रहे हैं। शुक्रवार को भी बातचीत हुई तो बताया कि पहले से उसकी हालत ठीक है, मगर यूक्रेन की मौजूदा स्थिति को देखकर तब तक राहत की सांस नहीं ले सकते हैं, जब तक उनका भाई घर लौट न आए।

दिल्ली के छतरपुर एक्सटेंशन निवासी प्रभजोत सिंह ने बताया कि कीव से हरजोत अपने दो दोस्तों के साथ भारत आने के लिए निकले थे, लेकिन रास्ते में सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें रोका गया। इस दौरान उन्हें गो बैक…कहा गया। जैसे ही कैब ने यू टर्न लिया तो फायरिंग होने लगी। फिर बाहर निकलते ही हरजोत को एक के बाद एक चार गोलियां लगीं। भाई ने बताया कि घटना के बाद से हरजोत को पता नहीं है कि उनके दोस्त कहां हैं। कीव से हरजोत कैब में रवाना हुए, लेकिन गोलियां चलने के बाद मची अफरातफरी में पासपोर्ट भी उनके बैग में वहीं छूट गया।

शनिवार शाम तक परिजनों का हरजोत से फोन पर संपर्क नहीं हो सका। डॉक्टर भी उसे अधिक बातचीत करने से मना कर रहे हैं। हरजोत अपने परिवार के साथ दिल्ली के छतरपुर में रह रहे हैं। पिता की एक दुकान है तो भाई प्रभजोत भी कंप्यूटर हार्डवेयर का काम करते हैं। सात वर्षीय बेटी गुरलीन कौर बार-बार अपने चाचा को याद कर उनके जल्द सुरक्षित लौटने की बात कर रही है।

सुरक्षित वापसी का इंतजार
दो मार्च को हरजोत सिंह ने परिजनों को फोन पर बताया कि 27 फरवरी को वह अपने हॉस्टल से रवाना हुए थे, लेकिन ट्रेन में जगह नहीं मिल पाई, जिसके बाद पोलैंड बार्डर तक पहुंचने के लिए हरजोत ने अपने दोस्तों के साथ कैब का सहारा लिया। कीव से कुछ दूर आगे चलते ही रात का वक्त होने की वजह से सुरक्षा जांच के लिए रोका गया। इस दौरान वहां गोलीबारी में हरजोत घायल हो गए। वह तीन दिन तक बेहोश रहे। होश में आने पर डॉक्टर के फोन से घरवालों को फोन कर आपबीती बताई। पिता केसर सिंह ने बताया कि यूक्रेन में दूतावास से संपर्क करने के बाद वहां इलाज की व्यवस्था कराई गई। वहीं, परिजन सुरक्षित वापसी का इंतजार कर रहे हैं।

दो दिन से बंकर में भूखी है बेटी…उसे बचा लो

मेरी बेटी यूक्रेन के पिसाचिन शहर में फंसी हुई है। बंकर में रह रही है। दो दिन से बेटी ने कुछ खाया भी नहीं है। बमबारी से वो बहुत डरी हुई है। सरकार से निवेदन है कि बिटिया को किसी तरह वापस ले आए। कुछ ऐसी ही शिकायतें यूक्रेन में फंसे बच्चों की सहायता के लिए कंट्रोल रूम में पहुंच रही हैं। हालांकि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि उनके बच्चों की सरकार की तरफ से पूरी मदद की जाएगी।

फरीदाबाद मंडल के आयुक्त एवं हरियाणा भवन दिल्ली के रेजिडेंट कमिश्नर संजय जून ने बताया कि यूक्रेन में फंसे हरियाणा राज्य के निवासियों और छात्रों की सहायता के लिए मंडल आयुक्त कार्यालय फरीदाबाद में राज्य स्तरीय नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 0129-2981617 भी जारी किया गया है। शनिवार को करीब पांच शिकायतें कंट्रोल रूम में आईं। कुरुक्षेत्र निवासी दर्शन ने कहा कि उनकी बेटी सिमरन दो दिन पहले यूक्रेन के युद्ध वाले शहर खारकीव में थी। बेटी से सुबह बात हुई थी। दो दिन से बंकर में भूखे-प्यासे छिपकर जान बचाने के बाद वहां से पिसाचिन आ गई। वहां ठंड बहुत पड़ रही है। दो दिन से बेटी ने कुछ खाया नहीं है। सरकार बस मेरी बेटी को वापस ला दे।

सुमी में फंसे विद्यार्थियों को निकालने की कवायद नहीं

युद्धग्रस्त यूक्रेन से गुरुग्राम के छात्रों को निकालने को लेकर जिला प्रशासन भले ही तमाम दावे कर रहा हो लेकिन सुमी ऐसा क्षेत्र है जहां पर फंसे छात्रों को निकालने के लिए सरकार की तरफ से अब तक कोई कवायद नहीं की जा रही है।

युद्ध शुरू हुए 10 दिन हो चुके हैं। ऐसे में परेशान छात्रों को समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करें और जान बचाने के लिए आखिर किस रास्ते से निकलें। जिला प्रशासन बाकायदा रिपोर्ट जारी कर यूक्रेन में फंसे कुल 91 में से 76 छात्रों की सकुशल स्वदेश वापसी की बात कह रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि जिला प्रशासन के पास सुमी में फंसे छात्रों की कोई जानकारी ही नहीं है और छात्र अपनी किस्मत पर निर्भर हैं।

दो बहनों की उम्र में छह साल का फासला पर रूस-यूक्रेन युद्ध से गहरा नाता

खुशबू और श्वेता सगी बहनें हैं। खुशबू मध्य प्रदेश के एक सरकारी अस्पताल में चिकित्सक हैं, जबकि श्वेता यूक्रेन की खारकीव के नेशनल मेडिकल विश्वविद्यालय की छात्रा हैं। दोनों की उम्र में भी करीब छह साल का अंतर है। बावजूद इसके, दोनों बहनों की मेडिकल पढ़ाई का रूस-यक्रेन युद्ध से गहरा और सीधा ताल्लुक है।

चौंकिएगा नहीं…। खुशबू ने उस वक्त खारकीव के मेडिकल विश्वविद्यालय से एमबीबीएस किया, जब 2014 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर क्रीमिया को अपने कब्जे में ले लिया था। उस वक्त की लड़ाई सीमित दायरे में थी।  लिहाजा, खुशबू को न अपना हॉस्टल छोड़ना पड़ा और न ही खारकीव, लेकिन 24 फरवरी के बाद से इस बार के युद्ध का दायरा फैलता गया है। नतीजतन, श्वेता को हॉस्टल, शहर ही नहीं, रास्तों के खौफनाक अनुभवों के साथ यूक्रेन को भी छोड़ना पड़ा है।

 आईजीआई एयरपोर्ट पर शनिवार यूक्रेन से लौट रही श्वेता को लेने इटारसी की डॉक्टर खुशबू भी पहुंची थी। सामना होने पर दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया और फफक पड़ी। खुशबू ने बताया कि गुजरा करीब एक हफ्ता पूरे परिवार पर भारी रहा है। खाना-पीना तो दूर की बात, इस बीच शायद ही किसी दिन नींद आई हो। हमको तो बार-बार 2014 के युद्धजनित हालात याद आ रहे थे, जबकि हम लोग उस वक्त युद्धक्षेत्र से दूर थे। अंतिम साल की पढ़ाई कर रही छोटी बहन तो इस बार युद्ध के बीच फंसी हुई थी।

श्वेता बताती हैं कि जब वह हॉस्टल से बाहर निकली तो घर के सामने बिना फटी मिसाइल फंसी थी। उसे देखकर वह और उसके दोस्त सहम गए। लगा कि ऊपर वाले ने हम लोगों की जान बचाई हो। अब हम जल्द निकल जाना चाहते थे। 28 फरवरी को बम धमाकों के बीच अपने को बचाते हुए खारकीव से कैब कर ल्वीव रेलवे स्टेशन पहुंची और वहां से हंगरी बार्डर तक पांच सौ डॉलर खर्च किए। वहां तीन दिन तक अपनी बारी और फ्लाइट का इंतजार कर शनिवार सुबह आईजीआई एयरपोर्ट पहुंचकर घरवालों के साथ राहत की सांस ली।

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