चुनावी कुरुक्षेत्र शांत हो गया। फिजा में भले ही गर्मी आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रही हो, पर चुनावी गहमागहमी और गर्मी अब शांत हो रही है। जनता ने फैसला सुना दिया। अब सबकी नजरें आने वाले जनादेश पर है। नजरें उस अमृत पर है, जिसके लिए हर तरीके से पूरे प्रदेश को मथा गया। कभी हुंकार से माहौल गरमाया गया, कभी नारों से। नेपथ्य से भी ऐसे-ऐसे बोल आए, ऐसे-ऐसे तराने आए, जिसने बड़े-बड़ों को बेचैन कर दिया। कुल मिलाकर कहें तो इस बार का चुनाव जुबानी जंग के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा। किसान, रोजगार, विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दों से शुरू हुआ चुनाव, तीखे बयानों की बेहद कटीली राहों से भी गुजरा। ज्यों-ज्यों चुनावी रथ आगे बढ़ा, हमले तीखे…और तीखे होते गए। पर, बड़ा सवाल यह है कि इन सबका मतदाताओं पर कितना असर हुआ? इस सवाल का मुकम्मल जवाब तो 10 मार्च को ही मिलेगा। बहरहाल हम याद दिला रहे हैं, उन तीखे बोलों की, उन हुंकारों की जिनके असर का परीक्षण भी जनादेश निरपेक्ष रूप से करेगा। यानी परिणाम सत्ता किसके हाथ में होगी सिर्फ यही नहीं तय करेगा, बल्कि उन बोलों को भी आईना दिखाएगा।
10 फरवरी को यूपी चुनाव के पहले चरण का आगाज हुआ था। दूसरा चरण 14 फरवरी को था। चूंकि, चुनाव का आगाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हुआ तो वहां के मुद्दे भी मुख्यत: किसानों से जुड़े थे। किसान आंदोलन की तगड़ी गूंज थी। रोजगार का मुद्दा भी उठा, पर सीधी टक्कर किसान आंदोलन बनाम कानून-व्यवस्था में रही। सपा-रालोद गठबंधन ने किसानों के मुद्दों को उठाने की पूरी कोशिश की, जबकि भाजपा ने कानून-व्यवस्था से हुंकार भरी। महंगाई के मुद्दे भी उछले पर तीखे बयानों की बारिश में उसकी तपिश उतना असर नहीं छोड़ पाई।
बुलडोजर और ठोको नीति
विपक्ष ने बुलडोजर पर सवाल उठाए। बुलडोजर के बहाने मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश की। …तो योगी ने विपक्ष के तीर को भी लपक कर बुलडोजर को अपने पक्ष में सकारात्मक रूप से पेश करना शुरू कर दिया। योगी के समर्थक उन्हें ‘बाबा बुलडोजर’ कहने लगे। सपा कहती रही कि इसके बहाने कुछ विशेष लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। जानबूझकर चुनिंदा लोगों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाया गया, लेकिन इसको भाजपा ने अपने तरीके से इसे ध्रुवीकरण का हथियार बना लिया। इसी तरह से ठोको नीति भी इस चुनाव में खूब प्रचारित हुई। अखिलेश कहते रहे कि बाबा की ठोको नीति कुछ खास लोगों के लिए ही है। अपनों पर यह नीति लागू नहीं हो रही है, पर भाजपा इसे भी अपने तरीके से खूब प्रचारित करती रही।
कानून-व्यवस्था और विकास
बातें कानून-व्यवस्था और विकास से शुरू हुई थीं, पर चरणवार पूरी तरह से बदलती चली गईं। छठवें और सातवें चरण तक कानून-व्यवस्था को उठाया तो गया पर तमंचावादी, जिन्नावादी जैसे बयानों ने ज्यादा उड़ान ले ली। भगवा खेमे ने बयानों की नई शृंखला जारी कर डाली, तो अखिलेश यादव अपने तीखे बयानों से अपने समर्थकों को रिझाने की कोशिश करते रहे। वे बोले, मैं भी नजर रखता हूं। धुआं उड़ाने वाले धुआं हो जाएंगे।
पश्चिम में बयानों की गर्मी
जिस समय मुद्दों की बात चल रही थी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अचानक जुबानी हमले शुरू हो गए। कहानी शुरू हुई एक वीडियो से जिसमें कुछ बिगड़े बोल थे। अच्छी बॉल के इंतजार में बैठे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसपर जोरदार शॉट लगाया। योगी के गर्मी निकालने के बयान से सियासी पारा चढ़ गया। बैठे-बिठाए ध्रुवीकरण के लिए भगवा खेमे को एक और हथियार मिल गया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, जयंत चौधरी ने भी इस पर तीखे पलटवार किए। इस सबसे गर्मी निकालने का मुद्दा इतना गरम हुआ कि पूरे चुनाव चला।
जिन्ना बनाम गन्ना
अखिलेश यादव के जिन्ना पर दिए बयान को भाजपाइयों ने खूब लपका। भाजपा नेता लगातार रैलियों और प्रचार में बोलते रहे कि ‘वे जिन्ना वाले हैं, हम गन्ना वाले हैं।’ चौथे चरण में लखीमपुर खीरी प्रकरण के बाद यहां किसान नाराज थे, इसलिए सपा तथा कांग्रेस ने इस मुद्दे को खूब भुनाने की कोशिश की। बसपा ने भी ताकत लगाई। ऐसे में यहां भाजपा ने भी खूब बयानों के तीर चलाए।
यूपी में का बा…सब बा
भाजपा सांसद रवि किशन के ‘यूपी में सब बा’ गीत के जवाब में लोक कलाकार नेहा राठौड़ के गीत ‘यूपी में का बा’ को इस चुनाव में जबरदस्त हिट मिले। इसे अखिलेश यादव ने हाथों हाथ लिया। यह गाना बेहद लोकप्रिय हुआ और भाजपा के लिए सिरदर्द बन गया। हालांकि, बाद में इसके अन्य भाग भी आए, पर सबसे ज्यादा हिट पहला भाग ही हुआ। हालांकि, इसकी काट और जवाब देने के लिए कवयित्री अनामिका अंबर ने ‘यूपी में बाबा’ को भी अच्छे ढंग से पेश किया। कई और गाने आए। नीलोत्पल मृणाल का भी गाया गाना-‘मोरवा के दाना देहला’ भी खूब वायरल हुआ।
जो राम को…
इस चुनाव में सभी चरणों में छुट्टा पशुओं का मुद्दा असर दिखाता नजर आया। भाजपा का चुनावी गीत, ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ खूब हिट हुआ तो विपक्ष का इसके विरोध में गीत आया, ‘जो सांड को लाए हैं, हम उनके भगाएंगे’ भी चर्चा का विषय बना रहा। खास तौर पर शुरुआती पांच चरणों में तो यह मुद्दा बेहद ही गर्म रहा।