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उत्तर प्रदेश में हुए बीते चार (लोकसभा और विधानसभा के दो-दो) चुनाव में दिलचस्प समानता दिखी। पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को वोट का लाभ और सीट का घाटा उठाना पड़ा, ठीक वैसा ही विधानसभा के बीते दो चुनावों में रहा।
दरअसल बीते दस साल के दौरान हुए चार चुनावों में भाजपा तब लाभ में रही है, जब मुकाबला बहुकोणीय हुआ। वहीं, मजबूत गठबंधन न होने का दूसरी बार घाटा उठाना पड़ा है। इस चुनाव में बीते चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोट शेयर में डेढ़ फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ, मगर उसकी सीटें 312 से घट कर 255 हो गई।
लोकसभा के प्रदर्शन से दूर
पार्टी लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव में लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दुहरा पाई। बीते विधानसभा चुनाव में 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब 3 फीसदी कम वोट मिले थे। इस विधानसभा चुनाव में बीते लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब नौ फीसदी कम वोट मिले हैं।
तो दोहरा सकते थे प्रदर्शन
पार्टी एंटीइन्कम्बेंसी थामने के लिए थोक में टिकट काटने का सफल फाॅर्मूला लागू नहीं कर पाई। पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार के मुताबिक, 156 विधायकों-मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी की रिपोर्ट थी। ज्यादातर के टिकट काटने पर सहमति भी थी। लेकिन एकाएक पिछड़े वर्ग के नेताओं की थोक में हुई विदाई के बाद कम टिकट काटे गए। परिणाम 11 मंत्री और कई विधायक अपनी सीट नहीं बचा पाए।
साल 2014 बनाम 2019
2014 : लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुकोणीय मुकाबले का भरपूर लाभ मिला था। सपा, बसपा, कांग्रेस ने अलग-अलग ताल ठोकी थी। तब पार्टी को गठबंधन के साथ राज्य की 80 में से 73 सीटें और करीब 43 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।
बीते लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ आ जाने के कारण मुकाबला बहुकोणीय नहीं हुआ। इस चुनाव में भाजपा का वोट 50 फीसदी के आंकड़े को तो पार कर गया, मगर उसकी सीटों की संख्या 73 से घट कर 64 रह गई।
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