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कीटनाशकों का कहर : गंगा की सेहत के साथ जलीय जंतुओं पर खतरा, ओसीपी और ओपीपी की बढ़ी मात्रा

उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा बेसिन में फसलों के उत्पादन में अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किए जा रहे कीटनाशकों से गंगा नदी की सेहत के साथ जलीय जंतुओं पर खतरा मंडराने लगा है। राष्ट्रीय नदी के जल में ऑर्गेनोक्लोरीन पेस्टिसाइड (ओसीपी) और न्यूरोटॉक्सिक ऑर्गेनोफॉस्फेट पेस्टिसाइड (ओपीपी) की मात्रा बढ़ने से गंगा डॉल्फिन, घड़ियाल ,मगरमच्छ, कछुआ समेत तमाम प्रजातियों के जलीय जंतुओं पर भी इसका विपरीत प्रभाव दिखाई दे रहा है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत राष्ट्रीय नदी के जल में पाए जाने वाले कीटनाशकों की मात्रा का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गंगा जल में खतरनाक रसायनों के साथ कीटनाशकों की मात्रा बढ़ रही है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसए हुसैन और डॉ. अंजू बरोठ की अगुवाई में संस्थान के शोधार्थियों रुचिका शाह, चेतन पीएस अहादा, और सुनंदा भोला की टीम ने अध्ययन में पाया कि गंगाजल में हेप्टाक्लोर, लिंडेर और डीडीई जैसे कीटनाशकों के अलावा कई कीटनाशक मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है। वैज्ञानिकों की ओर से किए गए शोध में यह बात सामने आई कि कहीं- कहीं गंगाजल में और ऑर्गेनोक्लोरीन पेस्टिसाइड की मात्रा 16.228 माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक है।

वैज्ञानिकों के शोध टीम में शामिल प्रोजेक्ट एसोसिएट रुचिका शाह के मुताबिक हेप्टाक्लोर इपोऑक्साइड ऐसा कीटनाशक है जो ज्यादातर स्थानों पर पाया गया। वैज्ञानिकों के अध्ययन से पता चलता है कि गंगाजल में ऑर्गेनोफॉस्फेट पेस्टिसाइड (ओपीपी) की मात्रा पानी में 0.397 मिलीग्राम माइक्रोग्राम प्रति लीटर है, जबकि यही आर्गेनोफास्फेट कीटनाशक नदियों के किनारे रेत में 30.053 माइक्रोग्राम प्रति किलो तक पाया गया है 

पश्चिम बंगाल के हासिमपुर में सबसे अधिक कीटनाशक 
शोध टीम में शामिल वैज्ञानिक रुचिका शाह के मुताबिक पश्चिम बंगाल के हासिमपुर में लिए गए गंगाजल के नमूने से पता चलता है कि वहां जल में कीटनाशकों की मात्रा सबसे अधिक है, जबकि यूपी के मिर्जापुर में गंगा नदी के किनारे रेत के नमूने का अध्ययन करने से पता चला कि यहां रेत में सबसे अधिक कीटनाशक पाया गया।

राष्ट्रीय नदी गंगा को पांच जोन में बांटकर किया गया अध्ययन 
वैज्ञानिकों ने बताया कि नदी के जल में कीटनाशकों की मात्रा का अध्ययन किया जा सके इसके लिए राष्ट्रीय नदी को पांच जोन में बांटा गया था। जोन एक में उत्तराखंड को रखा गया था जबकि  यूपी को दो अलग-अलग जोन में बांटा गया था। वही बिहार व झारखंड को भी एक जोन में रखकर अध्ययन किया गया। 

गंगा नदी की मछलियों के शरीर में भी पाए गए कीटनाशक 
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने गंगाजल का अध्ययन करने के साथ ही नदी में पायी जाने वाली चार प्रजातियों के मछलियों के शरीर के ऊतकों को निकालकर गउसका अध्ययन किया। शोध में यह बात सामने आई कि सभी प्रजातियों की मछलियों में ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक की मात्रा 356.621 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम  है जो चिंताजनक पहलू है। 

लॉन्ग रेंज एटमॉस्फेरिक ट्रांसफर के जरिये भी गंगा बेसिन में पहुंच रहे कीटनाशक 
वैज्ञानिक डॉक्टर रुचिका शाह के मुताबिक यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में किसान फसलों में बहुत अधिक कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। इसकी वजह से गंगा नदी में रहने वाले वन्यजीवों जलीय जंतुओं पर इसका असर दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड के हर्षिल जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी लिए गए जल के नमूनों से पता चलता है कि वहां भी जल में कीटनाशक मौजूद हैं। वैज्ञानिक रुचिका शाह के मुताबिक गंगा बेसिन में  लांग रेंज एटमॉस्फेरिक ट्रांसफर (एलएटी) के जरिए कीटनाशक गंगा बेसिन में पहुंच रहे हैं।

गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक राष्ट्रीय नदी में 32 स्थानों पर जल के नमूने लेकर वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है। अध्ययन से पता चलता है कि नदी में आर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक के अलावा ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशक मौजूद हैं। नदी के जल के अलावा नदी की रेत में भी कीटनाशकों की मात्रा पाई गई है।  मछलियों के ऊतकों के नमूने लेकर जांच करने से पता चलता है कि गंगा नदी के जलीय जंतुओं में भी कीटनाशक मौजूद है जो उनकी सेहत के लिए खराब है।

-डॉ एसए हुसैन,  वरिष्ठ  वैज्ञानिक,  भारतीय वन्यजीव संस्थान

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