उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी व पेंशनर्स अब ज्यादा दिन तक रियायती दर पर असीमित बिजली का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। इन्हें अब आम उपभोक्ताओं की तरह पूरा बिल चुकाना होगा। वर्ष 2016-17 में विभागीय कर्मियों व पेंशनरों की अलग श्रेणी समाप्त कर दिए जाने के बाद भी रियायती बिजली की सुविधा जारी रहने पर राज्य विद्युत नियामक आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए इनके बिजली लोड के जांच के निर्देश दिए हैं। आयोग ने पावर कॉर्पोरेशन से 2018-19 से अब तक विभागीय कर्मियों को दी गई रियायती बिजली का पूरा हिसाब-किताब तलब किया है।
आयोग ने पूछा है ऐसे कनेक्शनों की संख्या कितनी है, इनका लोड कितना है, इन्हें कितनी बिजली दी जा रही, इस पर खर्च कितना हो रहा है और इसके एवज में कितना राजस्व मिल रहा है? बिजली कंपनियों को एक सप्ताह में पूरा ब्योरा दाखिल करने के आदेश दिए गए हैं। इस तरह अब विभागीय कर्मियों और पेंशनरों के यहां मीटर लगाकर उन्हें घरेलू दर के दायरे में लाने की कवायद तेज कर दी गई है।
आयोग ने बिजली कंपनियों से जानकारी मांगी है कि अलग श्रेणी खत्म होने के बाद कितने विभागीय कर्मियों व पेंशनरों को बिल जारी किए गए हैं? आयोग ने हर बिजली कंपनी से नमूने के तौर पर 10-10 बिल और उसके एवज में जमा की गई राशि का ऑडिटेड ब्योरा दाखिल करने का आदेश दिया है।
सूत्रों का कहना है कि आयोग के रुख को देखते हुए पावर कॉर्पोरेशन ने सभी बिजली कंपनियों को विभागीय कर्मियों व पेंशनरों के कनेक्शनों की जांच कराकर उनके लोड, हर महीने इस्तेमाल की जाने वाली बिजली, घरेलू दर पर बिजली की कीमत और उनसे इसके एवज में वसूल की गई राशि का पूरा ब्योरा भेजने के निर्देश दिए हैं।
करीब एक लाख कर्मचारी व पेंशनर्स को मिल रही सुविधा
मौजूदा समय में रियायती बिजली की सुविधा लेने वाले बिजलीकर्मियों व पेंशनरों की संख्या एक लाख के करीब है। श्रेणी खत्म करने से पहले अलग-अलग स्तर के कर्मियों व पेंशनर्स के लिए 160 रुपये से लेकर 600 रुपये प्रतिमाह फिक्स चार्ज तय था। गर्मियों में एसी के लिए 600 रुपये प्रति एसी के हिसाब से भुगतान का प्रावधान था।
आयोग ने पहली बार 2015-16 के टैरिफ ऑर्डर में रियायती बिजली की सुविधा खत्म करने की पहल करते हुए इन्हें सामान्य बिजली उपभोक्ताओं की श्रेणी में रखते हुए बिलिंग के आदेश दिए थे। हालांकि आयोग ने यह विकल्प दिया था कि पावर कॉर्पोरेशन चाहे तो कर्मचारियों व पेंशनरों को रियायती बिजली की सुविधा दे सकता है, लेकिन इससे होने वाले राजस्व का नुकसान उसे वहन करना पड़ेगा।
आयोग इसे एआरआर या टैरिफ आर्डर का हिस्सा नहीं मानेगा और न ही इसका बोझ टैरिफ के जरिये आम उपभोक्ताओं पर डाला जा सकेगा। बाद में 2016-17 में अलग श्रेणी पूरी तरह खत्म ही कर दी गई।
सात साल बाद भी नहीं लगे मीटर
आयोग ने 2015-16 के टैरिफ ऑर्डर में रियायती बिजली की सुविधा ले रहे कर्मचारियों व पेंशनरों को मीटर लगवाने के लिए 1 जनवरी 2016 तक की मोहलत दी थी। 1 जनवरी 2016 के बाद मीटर न लगवाने वालों से अनुमानित खपत के आधार पर बिल की वसूली के आदेश दिए थे, लेकिन इस पर भी अमल नहीं हो सका।
सात साल बाद भी विभागीय कर्मियों व पेंशनरों के घर पर न तो मीटर लगे और न ही अनुमानित खपत के आधार पर बिलिंग शुरू हो पाई है। उलटे विभागीय कर्मियों व पेंशनर्स से अब बिल की वसूली ही बंद हो गई है। आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए इस श्रेणी के राजस्व का ब्योरा मांगा है।
रियायती बिजली पर 450 करोड़ से ज्यादा खर्च
विभागीय कर्मियों व पेंशनर्स को दी जा रही रियायती बिजली पर हर साल 450 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो रहे हैं। नियामक आयोग ने प्रति उपभोक्ता 600 यूनिट औसत उपभोग मानते हुए 6.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से इन्हें दी जाने वाली बिजली का राजस्व 450 करोड़ रुपये से ज्यादा माना है।
सीएम का निर्देश भी बेअसर
सीएम योगी आदित्यनाथ ने नवंबर 2018 में विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों व पेंशनर्स के घरों पर मीटर लगाकर बिजली उपभोग की सीमा निर्धारित करने के आदेश दिए थे। इसके बाद पावर कॉर्पोरेशन ने सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजकर आदेश का पालन कराने को कहा था, लेकिन सब कागजों पर ही रह गया।