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Ban on Wheat Export: निर्यात पर रोक से भी गेहूं सस्ता नहीं, 12 दिन में महज 54 पैसे की राहत

गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद घरेलू बाजार में इसकी कीमतें कम नहीं हो रही हैं। रोक के बाद से 12 दिन में खुदरा बाजार में गेहूं के दाम महज 54 पैसे प्रति किलो नरम हुए हैं। महंगे गेहूं के कई कारण हैं। विशेषज्ञों के  मुताबिक, उछलते वैश्विक दाम और देश में गेहूं उत्पादन में कमी आने से कीमतें मजबूत बनी हैं।

भारत ने गत 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। उस दिन वैश्विक बाजार में इसका भाव 1,167.2 डॉलर प्रति बशल था। 17 मई को यह और बढ़कर 1,284 डॉलर प्रति बशल (27.216 किलो के बराबर) पहुंच गया। हालांकि, 25 मई को भाव थोड़ा घटकर 1,128 डॉलर प्रति बशल पर आ गया। केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया का कहना है, वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी आ रही है। इसके साथ ही भारत में भीषण गर्मी के कारण उत्पादन में गिरावट भी मजबूती के लिए जिम्मेदार है। वैश्विक बाजार में जब तक दाम नहीं घटेंगे, घरेलू बाजार में कीमतों में गिरावट नहीं आएगी।

कुछ माह की दिक्कत और  
केडिया ने कहा, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति प्रभावित होने से वैश्विक बाजार में तेजी है। भारत को थोड़ी राहत इसलिए है, क्योंकि तीन-चार साल से उत्पादन बेहतर होने के कारण हमारे पास गेहूं का पर्याप्त भंडार बना हुआ है। फिर भी सस्ते दाम के लिए कुछ महीने इंतजार करना पड़ेगा।

गरम तवे पर छींटे सी राहत

तारीखकीमत प्रति क्विंटलदाम प्रति किलो
13 मई, 20222,334 रुपये23.34 रुपये
25 मई, 20222,280 रुपये22.80 रुपये
सस्ता54 रुपये54 पैसे

अब तक 70 लाख टन निर्यात
भारत 21 मार्च, 2022 तक कुल 70.30 लाख टन गेहूं का निर्यात कर चुका है। इनमें सबसे ज्यादा 39.37 लाख टन गेहूं बांग्लादेश को निर्यात किया गया है। श्रीलंका की हिस्सेदारी 5.80 लाख टन और संयुक्त अरब अमीरात की 4.70 लाख टन रही है। इससे पहले 2020-21 में 20.70 लाख टन गेहूं बाहर भेजा गया था।

उत्पादन में आठ फीसदी तक गिरावट
देश में इस साल गेहूं उत्पादन में 7-8 फीसदी की कमी की आशंका है। फसल वर्ष 2021-22 के लिए पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। इसे घटाकर फिलहाल 10.5 से 10.6 करोड़ टन कर दिया गया है। फसल वर्ष 2020-21 में देश में 10.95 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।

हर दशक में होती है ऐसी महंगाई
केडिया का कहना है कि इन वजहों के अलावा देश में महंगाई का चक्र बना हुआ है। यह हर 8-10 साल में एक बार बनता है। इससे पहले 2007-11 के बीच महंगाई का चक्र देखा गया था, जब कीमतें आसमान पर पहुंच गई थीं। मौजूदा चक्र के कारण अभी हम ऊर्जा महंगाई में फंसे हुए हैं, जिससे उत्पादन लागत में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल खाद्य तेल की महंगाई दहाई अंकों में पहुंच गई थी।

यूक्रेन से आपूर्ति खुलने पर ही सुधार
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष (कमोडिटी) अनुज गुप्ता का कहना है कि जब तक ब्लैक सी (समुद्र) का क्षेत्र नहीं खुलेगा, तब तक वैश्विक कीमतों में गिरावट नहीं आएगी। इसके लिए रूस और यूक्रेन युद्ध का बंद होना जरूरी है। इस क्षेत्र के खुलने के बाद आपूर्ति शुरू होते ही वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में अचानक गिरावट आएगी, जिससे घरेलू मोर्चे पर भी राहत मिलेगी। वैश्विक गेहूं आपूर्ति में रूस और यूक्रेन की 25 फीसदी हिस्सेदारी है।

इसलिए जारी रहेगा प्रतिबंध
मौजूदा हालात के कारण गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि दुनियाभर में अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में अगर हम निर्यात शुरू कर देते हैं तो जमाखोरी की आशंका बढ़ सकती है। इससे उन देशों को कोई लाभ नहीं होगा, जिन्हें अनाज की जरूरत है। हमारे इस फैसले से वैश्विक बाजारों पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात एक फीसदी से भी कम है।