Sunday , April 28 2024

आया सावन झुमके.., लागी भोले भंडारी की धुन

सावन का महीना लोगों के मन में उल्लास और उमंग लेकर आता है। इस महीने में लोग जहां पिकनिक आदि स्पोट पर भ्रमण करने के लिए लालायित रहते हैं, वहीं सावन के उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं। आया सावन बड़ा मनभावन रिमझिम पड़े फुहार.., आया सावन सुहाना है शिव के घर जाना है, कोई दे दो ये ठिकाना मुझे कावड़ चढ़ाना है..। हरि ओम नमः शिवाय, हरि ओम नमः शिवाय ..। सावन का महीना पवन करे शोर.., सावन में लग गई आग.., पेड़ों में झूले पड़ गए हैं, बच्चो की पेगे बढ़ गए है, मेहदी की सुगंध है छाई रे, दुल्हन ने नीद उडाई रे, आया सावन झूम झूम के। नाचे रे मन झूम झूम के।। आयो सावन को महीना सखी डालो रे झूला, सखी डालो रे झूला के सखी डालो रे झूला, इंतजार खत्म! आया सावन झूम के। तन, मन मेरा भीग गया लगा मुझे प्यारा सावन। आया सावन झूम के, तुम कब आओगे सजनवा? गीत के बोल चहुओर गूंजने लगे हैं।

सुरेश गांधी

जिंदगी के हर पल में तन मन को भिगोता पानी इंसान का कितना खास दोस्त बन जाता है। इसे सावन में ही समझा जा सकता है। सावन के शुरुवात में ही हुई मुसलाधार बारिश ने भीषण गर्मी से जूझ रहे लोगों इस कदर खुशनुमा एहसास कराया मानों सावन ने झूम कर आने का संदेश दिया है। इस बीच बारिश के दौरान लोगो के बीच सुखद एहसास का दृश्य देखते ही बन रहा है। मौसम का आनंद लेने के लिए लोगों को बालकनी में बैठे कहकहों के लुत्फ उठाते देखा जा सकता हे। बारिश का आनंद लेते लोगों के मन का मयूर नृत्य करते दिखने लगा है। रसोई में पकौड़े भी कड़ाही में ठुमके लगाने लगे हैं। बारिश में भींग कर सराबोर हुई धरती से निकल रही सोंधी खुशबू अलग से सुखद एहसास करा रही है। बरसात के पानी में छपाछप करते बच्चों की किलकारी से गलियां भी गुलजार हो गयी है। इसी तरह ग्रामीण इलाकों में अकाल की आशंका त्रस्त किसानों की भी मुसलाधार बारिश को देख बांछे खिल गई हैं।

इस महीने हवा की भयावह गड़गड़ाहट, खिड़कियों पर बारिश की बूंदों की थपथपाहट, टिन की छतों पर थपेड़े, पानी की गिरती चादरें, के बीच बाढ़ से भरी सड़कें, रेलवे ट्रैक, ट्रैफिक जाम और टेलीफोन लाइनें आपके साथ ’कट्टी’ होने के बावजूद, सभी मौसमों में से मानसून सबसे अच्छा है। यह सभी मौसमों में से सबसे अधिक सुनाई देने योग्य है, जिसमें गड़गड़ाहट की ’धूम-धड़क’ की पूरी श्रृंखला, पेड़ों पर बरसने वाली क्रूर हवाएं और उन्हें मॉरीशस के ’सेगा’ नर्तकियों और बिजली की चमक की तरह लहराने पर मजबूर कर देती है। मानसून ने लेखकों, कवियों और संगीतकारों को प्रेरित किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ’मेघ राग’, अपने ’उमद-घुमद’ शब्दों के साथ, भगवान शिव से उत्पन्न हुआ था। बारिश अपने आप में फ्यूजन संगीत की तरह है।

4 जुलाई से भगवान शिव का प्रिय माह शुरु होने वाला है. ऐसी मान्यता है कि सावन का महीना देवों के देव महादेव भगवान शिव को सबसे प्रिय होता है. इसलिए भक्त भगवान शिव की इस महीने में विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं. खास यह है कि 19 साल बाद सावन में दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। इस बार सावन 59 दिनों का होगा. भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सावन का महीना सबसे अच्छा माना जाता है. अब ऐसे में सावन माह मेष राशि, मिथुन राशि, सिंह राशि, वश्चिक राशि, धनु राशि, मीन राशि राशि के जातकों के लिए काफी खास माना जा रहा है. क्योकि उन पर महादेव की खास कृपा रहने वाली है. उनके आशीर्वाद से व्यक्ति को यश, कीर्ति और उन्नति होने की संभावना है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए सावन के महीने में ही कठोर तप और आराधना की थी। प्रसन्न होकर भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने को राजी हो गए थे, तब से महादेव को यह महीना अत्यंत प्रिय है।

सबसे प्रिय है शिव को सावन का सोमवार

शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। भगवान शिव की हरियाली से पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है। खासतौर से श्रावण मास के सोमवार को शिव का पूजन बेलपत्र, भांग, धतूरे, दूर्वाकुर आक्खे के पुष्प और लाल कनेर के पुष्पों से पूजन करने का प्रावधान है। इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताए गए हैं उनमें दूध, दही, शहद, घी, शर्करा को मिलाकर बनाए गए पंचामृत से भगवान आशुतोष की पूजा कल्याणकारी होती है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए एक दिन पूर्व सायंकाल से पहले तोड़कर रखना चाहिए। सोमवार को बेलपत्र तोड़कर भगवान पर चढ़ाया जाना उचित नहीं है। भगवान आशुतोष के साथ शिव परिवार, नंदी व भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में लाभकारी है। शिव की पूजा से पहले नंदी की पूजा की जानी चाहिए। सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व होता है। इसे भगवान शिव का दिन माना जाता है। इसलिए सोमवार के दिन शिव भक्त शिवालयों में जाकर शिव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं।

सावन के सोमवार व्रत

सावन का पहला सोमवारः 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवारः 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवारः 24 जुलाई (अधिक)
सावन का चौथा सोमवारः 31 जुलाई (अधिक)
सावन का पांचवा सोमवारः 07 अगस्त (अधिक)
सावन का छठा सोमवारः14 अगस्त (अधिक)
सावन का सातवां सोमवारः 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवारः 28 अगस्त

विश्व कल्याण की कांवड़ यात्रा

विषपान की घटना सावन महीने में हुई थी, तभी से यह क्रम अनवरत चलता आ रहा है। कांवड़ यात्रा को आप पदयात्रा को बढ़ावा देने के प्रतीक रूप में मान सकते हैं। पैदल यात्रा से शरीर के वायु तत्व का शमन होता है। कांवड़ यात्रा के माध्यम से व्यक्ति अपने संकल्प बल में प्रखरता लाता है। वैसे साल के सभी सोमवार शिव उपासना के माने गए हैं, लेकिन सावन में चार सोमवार, श्रावण नक्षत्र और शिव विवाह की तिथि पड़ने के कारण शिव उपासना का माहात्म्य बढ़ जाता है। ’शिव’ परमात्मा के कल्याणकारी स्वरूप का नाम है। जो मार्ग नियम, व्यवहार, आचरण और विचार हमें तुच्छता से शीर्ष की ओर ले जाए, वही कल्याणकारी है। शिव लिंग को अंतर्ज्योति का प्रतीक माना गया है। यह ध्यान की अंतिम अवस्था का प्रतीक है, क्योंकि सृष्टि के संहारक शिव भय, अज्ञान, काम, क्रोध, मद और लोभ जैसी बुराइयों का भी अंत करते हैं। शिव कर्पूर गौर अर्थात सत्वगुण के प्रतीक हैं। वे दिगंबर अर्थात माया के आवरण से पूरी तरह मुक्त हैं। उनकी जटाएं वेदों की ऋचाएं हैं। शिव त्रिनेत्रधारी हैं अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों के ज्ञाता हैं। बाघंबर उनका आसन है और वे गज चर्म का उत्तरीय धारण करते हैं। हमारी संस्कृति में बाघ क्रूरता और संकटों का प्रतीक है, जब कि हाथी मंगलकारी माना गया है। शिव के इस स्वरूप का अर्थ यह है कि वे दूषित विचारों को दबाकर अपने भक्तों को मंगल प्रदान करते हैं।

शिव का त्रिशूल उनके भक्तों को त्रिताप से मुक्त करता है। मानव कल्याण की संस्कृति ही वास्तव में शिव की संस्कृति है। सावन का महीना, पार्वती जी का भी महीना है। शिव परमपिता परमेश्वर हैं तो मां पार्वती जगदंबा और शक्ति। सदाशिव और मां पार्वती प्रकृति के आधार हैं। चतुर्मास में जब भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं, तब शिव रूद्र नहीं, वरन भोले बाबा बनकर आते हैं। सावन में धरती पर पाताल लोक के प्राणियों का विचरण होने लगता है। वर्षायोग से राहत भी मिलती है और परेशानी भी। चतुर्मास की शुरुआत में वर्षा के कारण रास्ते आने-जाने लायक नहीं रह जाते। सावन आते-आते वर्षा की गति मंथर हो जाती है। इस काल में पैदल यात्राओं का दौर धीरे-धीरे शुरू हो जाता है। कांवडियों के रूप में यह प्रार्थना सामूहिक उत्सव के रूप में देखने को मिलती है। कांवड़ यात्रा धर्म और अर्पण का प्रतीक है। सावन में काम का आवेग बढ़ता है। शंकर जी इस आवेग का शमन करते हैं। कामदेव को भस्म करने का प्रसंग भी सावन का ही है। और शिव का विवाह भी श्रावण मास की शिवरात्रि को ही संपन्न हुआ। शिव चरित में उल्लेख है कि सृष्टि चक्र की मर्यादा, परंपरा और नियमोपनियम बने रहें, इसलिए तारकासुर को मारने के लिए शिव ने विवाह किया। तभी से सावन में विवाह परंपरा का भी जन्म हुआ था। इस नाते सावन महीने में लोकोत्पत्ति का उत्सव भी मनाया जाता है।

जब साक्षात शिव दर्शन हुआ कन्या को

आगरा जिले के पास बटेश्वर में, जिन्हें ब्रह्मलालजी महाराज के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिवजी का शिवलिंग रूप के साथ-साथ पार्वती, गणेश का मूर्ति रूप भी है। श्रावण मास में कासगंज से गंगाजी का जल भरकर लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का कांवड़ यात्रा के माध्यम से अभिषेक करते हैं। यहां पर 101 मंदिर स्थापित हैं। इसके बारे में एक प्राचीन कथा है कि 2 मित्र राजाओं ने संकल्प किया कि हमारे पुत्र अथवा कन्या होने पर दोनों का विवाह करेंगे। परंतु दोनों के यहां पुत्री संतानें हुईं। एक राजा ने ये बात सबसे छिपा ली और विदाई का समय आने पर उस कन्या ने, जिसके पिता ने उसकी बात छुपाई थी, अपने मन में संकल्प किया कि वह यह विवाह नहीं करेगी और अपने प्राण त्याग देगी। उसने यमुना नदी में छलांग लगा दी। जल के बीच में उसे भगवान शिव के दर्शन हुए और उसकी समर्पण की भावना को देखकर भगवान ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब उसने कहा कि मुझे कन्या से लड़का बना दीजिए तो मेरे पिता की इज्जत बच जाएगी। इसके लिए भगवान ने उसे निर्देश दिया कि तुम इस नदी के किनारे मंदिर का निर्माण करना। यह मंदिर उसी समय से मौजूद है। यहां पर कांवड़ यात्रा के बाद जल चढ़ाने पर अथवा मान्यता करके जल चढ़ाने पर पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां एक-दो किलो से लेकर 500-700 किलोग्राम तक के घंटे टंगे हुए हैं। उज्जयनी में महाकाल को जल चढ़ाने से रोग निवृत्ति और दीर्घायु प्राप्त होती है। लाखों यात्री इस समय में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। यहां की विशेषता यह है कि हजारों की संख्या में संन्यासियों के माध्यम से टोली बनाकर कावड़ यात्री चलते हैं। ये यात्रा लगभग 15 दिन चलती है। हरिद्वार से जल लेकर दिल्ली, पंजाब आदि प्रांतों में करोड़ों यात्री जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा लगभग पूरे श्रावण मास से लेकर शिवरात्रि तक चलती है।