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ज्ञानवापी में एएसआई सर्वे टीम ने बनाया गुंबद का नक्शा

मंदिर शैली के 20 से ज्यादा आले भी मिले, दीवारों की 3-डी फोटोग्राफी हुई

सुरेश गांधी

वाराणसी : ज्ञानवापी में चल रहे एएसआई सर्वे का सोमवार को 5वां दिन पूरा हो गया। मंगलवार को भी सुबह 8 बजे से सर्वे शुरू होगा। पांच दिन में सर्वे टीम 31 घंटे काम कर चुकी है। ज्ञानवापी के तीनों गुंबद, उसके नीचे का हॉल, अंदर-बाहर की दीवारों, ख़ासकर पश्चिमी दीवार की 3डी मैपिंग की जा रही है। .. मिट्टी, राख, चूने के सैंपल लिये गये हैं। सूत्रों के मुताबिक़ ज्ञानवापी के एक तहखाने में कुछ ऐसे निशान मिले हैं जो इसके मंदिर होने की ओर इशारा करते हैं। इनमें 5 से 6 फूल की आकृतियां मिली हैं। 4 खंभे हैं जिनपर घंटी, कलश और फूल मिले हैं। खंभों पर पुरातन भाषा में लिखावट भी मिली है। इसके अलावा पश्चिमी दीवार पर स्वास्तिक चिन्ह, त्रिशूल और हाथी की सूंड की आकृति मिली है। इस बीच सर्वे टीम ने ज्ञानवापी के गुंबद पर अपने सर्वेयरों को सीढ़ी के सहारे चढ़ाकर न सिर्फ नापी-जोखी कराया बल्कि एन सिरे से नक्शा भी बना रही है। अधिवक्ताओं के मुताबिक रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिसे न्यायालय में सौंपा जायेगा। हिंदू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी व सुधीर त्रिपाठी ने बताया कि एएसआई अपने काम को अच्छे ढंग से आगे बढ़ा रहा है। एएसआई अपनी टेक्नोलॉजी, यूनिट, उपकरणों के माध्यम से कार्य कर रही है।

जबकि मुस्लिम पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के वकील ने कहा है कि सर्वे के दौरान मस्जिद में दिख रहा त्रिशूल का चिन्ह वास्तव में त्रिशूल का चिन्ह नहीं है, बल्कि ’अल्लाह’ लिखा हुआ है.उन्होंने कहा कि मुगलकालीन सिक्कों पर भी स्वास्तिक और ओम की आकृति उकेरी जाती थी. इसलिए यह कह देना कि कमल का फूल सिर्फ मंदिरों पर ही बना हुआ मिलेगा, गलत है. फूल तो कोई भी बना सकता है. उसका मंदिर या इस्लाम से कोई मतलब नहीं है. गुंबद के नीचे शंक्वाकार आकृति या शिखर नुमा आकृति के सवाल के जवाब में मसाजिद कमेटी के वकील अखलाक अहमद ने बताया कि दुनिया में जितने भी बड़े गुंबद होते हैं, वह दो हिस्सों में ही बनते हैं. अगर ऐसी बनावट नहीं होगी तो हवा क्रॉस होने की जगह ना होने के चलते वह गुंबद गिर जाएंगे. हालांकि एएसआई की रिपोर्ट में बताया जाएगा कि मिल रहे इस तरह के चिन्ह किस कालखंड में बनते थे? यह रिपोर्ट मुकदमे के फैसले के दौरान ही खुलेगा. हिंदू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने कहा- ’कल वो लोग गुंबद पर गए थे जो आज भी जारी रहा। गुंबद के ऊपर सीढ़ियां हैं, कलश रखे हैं। पश्चिमी द्वार पर मशीन लगाकर लेखाजोखा कागज पर तैयार कर रहे हैं। टीम मेहनत से काम कर रही है कुछ भी नहीं छिपेगा। मसाजिद कमेटी सहयोग कर रही है। हर जगह मशीन लगाकर काम हो रहा है। सारे साक्ष्य रिपोर्ट से मिलेंगे।’

यह सोचना गलत है कि हर दिन कुछ नया मिलेगा : विष्णु शंकर जैन

हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा- यह एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण है और यह एक अधिवक्ता आयोग के सर्वेक्षण से अलग है। यह सोचना गलत है कि हर दिन कुछ नया मिलेगा क्योंकि संरचना और वास्तुकला का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है। जब एएसआई रिपोर्ट आएगी, तब हमें निष्कर्ष पता चलेगा। एएसआई की रिपोर्ट में सब कुछ आ जाएगा। पूरे परिसर का सर्वे हो रहा है। एएसआई ने अपनी 42 सदस्यीय टीम को बांटा है। गुंबद के भीतरी, बाहरी और उसके आसपास मिले धार्मिक आकृतियों की फोटो और वीडियोग्राफी कराई। मैपिंग भी हुई है। धार्मिक महत्व से संबंधित 20 से ज्यादा साक्ष्य मिले हैं। एएसआई की एक टीम ने कंगूरों का अध्ययन किया और इसकी बनावट आदि की मैपिंग की है। चौथी टीम ने ज्ञानवापी की सीमा पर चहारदीवारी और पश्चिमी दीवारों का अवलोकन किया। साक्ष्य जुटाकर आगे की औपचारिकता पूरी की है।

सर्वे में जेम्स प्रिंसेप के नक्शे का भी सहारा

सर्वे टीम ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप की तरफ से तैयार नक्शे का भी सहारा ले रही है। 1832 में तैयार इस नक्शे के जरिये दावा किया गया था कि आदि विश्वेश्वर मंदिर दिव्य-भव्य था। इसमें 12 कोण दर्शाए गए हैं। आठ कोण बाहरी तो चार भीतरी हैं। भीतरी कोण के पास मंडप बना है। इसके पास गर्भ गृह दर्शाया गया है। जेम्स प्रिंसेप ने इलेसट्रेटेड बनारस नामक पुस्तक 1832 में लिखी थी। इसमें आदि विश्वेश्वर मंदिर का नक्शा भी प्रकाशित किया था। इसमें कहा गया है कि 124 फीट का चौकोर मंदिर बना था। इसके चारों कोने पर मंडप है। बीच में गर्भ गृह भी है,जिसे नक्शे में मंडपम लिखकर दर्शाया गया है। नक्शे को देखकर कहा जा सकता है कि यह कुल नौ शिखर वाला विश्वेश्वर मंदिर रहा होगा।