एएसआई को 2 सितंबर तक कोर्ट में जमा करनी है अपनी सर्वे रिपोर्ट, बुधवार को भी सर्वेक्षण किया जाएगा, दीवार पर बने निशान, रंगाई-पुताई में इस्तेमाल सामग्री, ईंट-पत्थर के टुकड़े व दीवार की चिनाई में इस्तेमाल सामग्री के नमूने बतौर साक्ष्य जुटाए गए
–सुरेश गांधी
वाराणसी : ज्ञानवापी परिसर इन दिनों सुर्खियों में है. तकरीबन तीस वर्षों से तालों में जकड़े इस परिसर के कुछ हिस्सों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग के एक्सपर्टस ज्ञानवापी के हर कोनों की पड़ताल में जुटे हुए हैं. एएसआई के विशेषज्ञ ज्ञानवापी की जमीन के अंदर छिपे रहस्यों को उजागर करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। ज्ञानवापी के दर-ओ-दीवार जिस तरह के राज उगल रहे थे, दावा किया जा रहा है कि कुछ वैसे ही राज तहखाने से भी निकल रहे हैं। हिन्दू पक्ष का दावा है कि सर्वे के दौरान न सिर्फ कई खंडित मूर्तियां मिलीं, बल्कि गुंबद से लेकर तहखाने तक चीख-चीख कर औरंगजेब की क्रूरता को बया कर रहे है। इसी क्रूरता को एएसआई की टीम सर्वे के जरिये सबूत तलाश रही है। मंगलवार को ज्ञानवापी सर्वे के छठे दिन का सर्वे पूरा हो गया है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु जैन ने बताया कि ’परिसर के चारों तरफ सर्वे हो हुआ। कोर्ट ने चार हफ्ते का समय दिया है उसी के हिसाब से काम हो रहा है। बुधवार को भी सर्वेक्षण किया जाएगा। खास यह है कि अब सर्वे के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटगिं रडार (जीपीआर) तकनीक का इस्तेमाल होगा. एएसआई को अपनी सर्वे रिपोर्ट 2 सितंबर तक कोर्ट में जमा करनी हैं।
टीम ने निर्माण कार्य और रंगाई-पुताई से संबंधित साक्ष्य जुटाए हैं। पुताई में इस्तेमाल सामग्री का नमूना लिया। ढांचे के हिसाब से डायग्राम बनाए गए। गुंबद की लंबाई-चौड़ाई को कागज पर उतारा गया। ज्ञानवापी के तीनों गुंबदों की जांच मंगलवार को भी जारी रही। सर्वे टीम और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के पदाधिकारी गुंबद पर गए। एक-एक स्थान की जांच हुई। आधुनिक तकनीक पर आधारित फोटो, वीडियोग्राफी, मैपिंग व स्कैनिंग कराई गई। सर्वे टीम के पूर्व सदस्य अशोक सिंह का दावा है कि गुंबद एवं दीवारों पर जगह-जगह स्वास्तिक बने हैं. दीवारों पर प्रतिमाएं उकेरी गयी है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुभाष चतुर्वेदी ने बताया कि ’एएसआई अपने तरीके से काम कर रही है। टीम पूरे परिसर में सर्वे कर रही है। व्यास जी के तहखाने में सर्वे चल रहा है। जहां जिन मशीनों की जरूरत होगी वो समय-समय पर काम करेगी। तथ्यों को संजोया जा रहा है, फिर एएसआई रिपोर्ट तैयार करेगी। टीम ज्ञानवापी के गुंबदों पर चढ़कर व व्यास तहखाने का सर्वे कर रही है। सातवें दिन यानी बुधवार से ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक से सर्वे शुरू हो सकता है। आईआईटी कानपुर की विशेषज्ञों की टीम वाराणसी पहुंच चुकी है। एएसआई ने आईआईटी कानपुर से ज्ञानवापी सर्वे में मदद मांगी है। आईआईटी के पास आधुनिक रडार है। रडार सर्वे में ज्ञानवापी परिसर का नए सिरे से अध्ययन किया जाएगा। जीपीआर की मदद से खोदाई के बगैर जमीन के नीचे का सच जाना जा सकता है। एएसआई की टीम पश्चिमी दीवार का गहन सर्वे किया है। दीवार पर बने निशान, रंगाई-पुताई में इस्तेमाल सामग्री, ईंट-पत्थर के टुकड़े व दीवार की चिनाई में इस्तेमाल सामग्री के नमूने बतौर साक्ष्य जुटाए गए है। मट्टी के नमूने भी लिए गए है। इसके जरिये भवन निर्माण की अवधि, उम्र आदि की जानकारी हासिल की जाएगी। हिंदू पक्ष का दावा है कि पश्चिमी दीवार की जांच से सच सामने आएगा। यह हिस्सा व्यास तहखाने से जुड़ा है। मां शृंगार गौरी मंदिर तक जाने और निकलने का रास्ता भी इसी तरफ से था।
क्या है जीपीआर
बता दें, इस सर्वे को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगातार एक ही बात कही जा रही है कि एएसआई परसिर में बिना किसी चीज को नुकसान पहुंचाए सर्वे का काम पूरा करें। यही वजह है कि सर्वे को पूरा करने के लिए एएसआई एक तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है जिसे ग्राउंड पेनेट्रेटगिं रडार (जीपीआर) कहते हैं. जीपीआर का इस्तेमाल पहली बार भारत में नहीं हो रहा है. भारतीय सेना इसका इस्तेमाल समय-समय पर करती रहती है. खनन क्षेत्र में भी इसका काफी इस्तेमाल होता है. कोयला खानों में इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. इसके साथ सोने-चांदी के अलावा लोहा जैसी धातुओं की खोज के लिए भी इसका उपयोग होता है. जीपीआर सर्वे के जरिए गुजरात के धौलावीरा में करीब 3 हजार साल पुरानी सभ्यता के सबूत मिले थे. जीआरपी के साथ इस सर्वे में गांधी नगर आईआईडी के विशेषज्ञों ने भी बड़ी भूमकि निभाई थी. जीआरपी के जरिए थ्रीडी नक्शा बनाकर विशेषज्ञों की खोज में मदद की थी. जीपीआर तीन स्टेप में काम करता है और उसके बाद यह तकनीक जमीन के नीचे का नक्शा बना देता है. यह तकनीक बहुत हद तक हमारी आंखों की तरह काम करती है. जैसे कोई रोशनी किसी चीज से टकराकर हमारे रेटीना तक आकर हमारे दिमाग में उसका एक चित्र बना देती है. जीपीआर तकनीक के पहले चरण में ट्रांसमीटर या ट्रांसमीट एंटीना के जरिए जमीन के अंदर तरंगें भेजी जाती हैं. यह रेडियो तरंगे जमीन के अंदर चीजों से टकराकर वापस लौटती हैं. जमीन के अंदर सभी तत्वों की भूकंपीय ऊर्जा अलग-अलग होती है. जमीन के अंदर तरंगें भेजने के बाद एक रिसीविग एंटीना या रिसीवर के जरिए इनको वापस कैद किया जाता है. जब एंटीना के तरंगों को प्राप्त किया जाता है तो कंप्यूटर की मदद से उसके डाटा को प्रोसेस किया जाता है. इससे एक आभासी चित्र बनाया जाता है. यह तरंगें सबसे पहले जीपीआर के जरिए रेडियो तरंगों को जब जमीन के अंदर भेजा जाता है तो सभी तरंगों की फ्रीक्वेंसी अलग-अलग होती है और इन तरंगों की ताकत भी अलग-अलग होती है. जो तरंगें बहुत शक्तशिली होती हैं वह पक्का फर्श हो, पाइप हो, तारों का जाल हो या चूने के पत्थर हों, यह तरंगें सबको पार कर जाती हैं. जब यह तरंगे वापस लौटती है तो सेंसर को जरूरी डाटा देती है. जीपीआर से निकलीं ये तरंगें चट्टान, पानी, कच्ची मिट्टी, ढांचों की पहचान कर लेती हैं. ये विशेषज्ञों को तत्व की रासायनिक बनावट और उसके आकार-प्रकार के बारे में डाटा देती हैं. तरंगें खाली जगह को तेजी से पार कर जाती हैं तो सख्त जगह को कम गति से इन तारों के गति और ऊर्जा को कितना नुकसान पहुंचा, इससे विशेषज्ञों को महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है.
गुंबद पर चढ़ने के प्रयास मामले की जांच : सीढ़ी के सहारे ज्ञानवापी के गुंबद पर चढ़ने का प्रयास करने वाले युवक की पहचान की जाएगी। इसकी जांच पुलिस कर रही है। चौक थाना प्रभारी शिवाकांत मिश्रा