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अपने अन्दर आत्मा का प्रकाश धारण करने की प्रेरणा देता है दीपावली का पर्व

हम दीवाली जरूर मनायेंगे पर हम पटाखे नहीं जलायेंगे : डा. जगदीश गांधी

त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र “मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम” जब पिता की वचन-पूर्ति के लिए चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके तथा अहंकारी रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता जी एवं अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने उनके स्वागत के लिए, अपनी खुशी प्रदर्शित करने के लिए तथा अमावस्या की रात्रि को भी उजाले से भरने के लिए दीपक जलाये थे। यही से दीपावली को आलोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह प्रकाश पर्व मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम की शिक्षाओं को जानने तथा उन शिक्षाओं पर चलकर आत्मा का जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दीपावली मात्र एक पर्व अथवा त्योहार नहीं है, अपितु यह हमें अपने अंदर आत्मा का प्रकाश धारण करने की प्रेरणा देता है।

परिवार की एकता ही विश्व एकता की आधारशिला है
वनवास के मध्य ही लंका का राजा रावण श्री राम की पत्नी सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था और तब हनुमान, अंगद, सुग्रीव, जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर सेतु-निर्माण कर तथा सोने की लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी का वध कर धर्म तथा मर्यादित समाज की स्थापना धरती पर की इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है जो “विजय दशमी” के नाम से भी विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद ही दीपावली आती है। राम ने अपने पूरे जीवन भर अनेक कष्ट उठाकर मर्यादाओं का पालन करते हुए राम राज्य की स्थापना की। राम राज्य के मायने अयोध्या के राजा राम का राज्य नहीं वरन् सारे संसार में आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है। एक ऐसा राम राज्य जहाँ किसी को भी शारीरिक, दैविक तथा भौतिक किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होगा।

श्रीराम की शिक्षायें हमें मर्यादित जीवन जीने का समग्र ज्ञान कराती हैं
हम दीपावली का परम-पावन त्योहार खूब उत्साह से मनाकर अपनी संस्कृति को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे सुंदर अवसरों पर यह चर्चा करना अक्सर भूल जाया करते हैं कि कैसे भगवान् श्री राम ने प्रभु की आज्ञा तथा इच्छा को जानने के बाद समाज में मर्यादा का आदर्श प्रस्तुत करने के लिए अपने जीवन के राजसी सुखों को दाँव पर लगा दिया। श्रीराम की शिक्षायें हमें थोड़ी देर के लिए भक्ति में भावविभोर कर देने के लिए नहीं है वरन् वह जीवन शैली व जीवन जीने का समग्र ज्ञान कराती है। साथ ही यह मनुष्य के जीवन में वैचारिक बदलाव लाकर रामराज्य की स्थापना का एक सुनिश्चित एवं ठोस आधार है।

श्रीराम ने मर्यादा पालन की शिक्षा देकर मानव जीवन को मर्यादित बनाया
श्रीराम द्वारा अपने जीवन द्वारा दी गई मर्यादा की शिक्षाएं युगों-युगों तक मानव जाति को मर्यादित जीवन जीने का मार्गदर्शन करती रहेगी। श्रीराम ने अपने जीवन से मर्यादाओं के पालन की शिक्षा देकर मानव जीवन को मर्यादित बनाया। श्रीराम ने कोई ग्रन्थ नहीं दिया। महापुरूषों ने श्रीराम के जीवन चरित्र को अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर व्यक्त किया है। रामायण के प्रणेता थे आदिकवि ‘वाल्मीकी’ उनकी काव्य-कृति ‘रामायण’ उनके अंतरंग से प्रस्फुटित हुई। महान संत तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित्रमानस’ जन सामान्य में लोकप्रिय धार्मिक ग्रन्थ है।

पटाखें आर्थिक, मानसिक तथा सामाजिक दृष्टि से बहुत हानिकारक
क्या यह उचित न होगा कि हम श्रीराम की अयोध्या वापसी का यह पर्व शिष्टता-शालीनता के साथ दीये, रोशनी जलाकर तथा पौष्टिक भोजन, फल-फ्रूट व मिठाई खाकर मनाये। जुए-शराब व पटाखे जलाकर इसे समाज के लिए हानिकारक क्यों बनाये? धन बचाकर उसे परिवार के कल्याण तथा परोपकार में लगाये। इस तरह से सही मायने में मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप दीपावली का पर्व मनाएँ। अपनी प्यारी धरती को सुन्दर एवं सुरक्षित बनाने के लिए आज हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि ”प्रदूषण द्वारा मानव जगत का विनाश हो रहा है, उससे मानव जगत को मुक्त करेंगे“, ”हम दीवाली जरूर मनायेंगे- पर हम पटाखे नहीं जलायेंगे।“ शुभ दीपावली के बारे में जन समुदाय को साफ-सुथरा पर्यावरण निर्मित करने के प्रति जागरूक करते हुए यह बताया जाना चाहिए कि वे पटाखे न छुड़ाये। यह पर्यावरण, आर्थिक, स्वास्थ्य, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत हानिकारक है।

पटाखों की आवाज एवं प्रदूषण से मासूम पशु-पक्षी भी होते हैं बेहाल
दीपावली के पटाखों के कारण वायुमण्डल में सल्फर डाई आक्साइड और कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा कई गुणा बढ़ जाती है जो सबके स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त ही खतरनाक है। पटाखों के कारण बच्चे, बूढ़े और बीमार सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही पटाखों के हुड़दंग से हमारे साथ पृथ्वी पर रहने वाले मासूम पशु-पक्षी बेहाल व मरणासन्न हो जाते हैं, जबकि बहुत अधिक तेज आवाज वाले पटाखे जलााने पर कानूनी प्रतिबन्ध है। इसके साथ ही शान्ति क्षेत्र अर्थात अस्पतालों आदि के 100 मीटर के दायरे में पटाखे छोड़ना पूर्णतः प्रतिबन्धित है। हमारे देश में दीपावली पर कई हजार करोड़ रूपये से अधिक के पटाखे एक दिन में धुआ-बारूद बनकर हमारे वायुमण्डल व वातावरण को विषाक्त करते हैं।

अपने जीवन को आध्यात्मिक प्रकाश से प्रकाशित करें
दीपावली का पर्व सुख-समृद्धि, सुयश-सफलता, उन्नति, अंतस् की शुद्धता, पवित्रता और घर-आँगन की स्वच्छता की प्रेरणाओं से ओतप्रेात पर्व है ताकि अज्ञानता के अन्धकार की सारी बेड़ियाँ कट जाएँ और संसार का प्रत्येक व्यक्ति ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बने। इस अवसर पर हमें परमपिता परमात्मा से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें कार्य-व्यवसाय में सदैव उन्नति-प्रगति की ओर अग्रसर रहने और बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों को ग्रहण करके आत्मा का जीवन जीने की शक्ति दे, वास्तव में तभी हम सभी के लिए दीपावली की सार्थकता भी सिद्ध होगी।