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कालिंदी में कूदे यशोदानंद, तोडा कालियानाग का दर्प

लाखों आस्थावानों ने की विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला का साक्षात दर्शन
अद्भुत पलों के दर्शन के लिए घाटों-छतों से गंगा में उमड़ा जनसैलाब

सुरेश गांधी

वाराणसी : घाटों की नगरी काशी में पतित पावनि सुरसरि गंगा किनारे आस्था और विश्वास के अटूट संगम का नजारा देखने को मिला। तुलसीघाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गयी और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गए। 453 साल से लगातार हो रही इस अद्भुत ‘नाग नथैया लीला‘ में जब खेलते-खेलते भगवान श्रीकृष्ण ने अचानक गंगा में छलांग लगाई तो घाट पर उमड़ें लाखों आस्थावानों की निगाहें तब तक एकटक निहारती रही जब तक कि कालिया नाग का मर्दन कर वो बाहर नहीं निकले। कालिय नाग के अहम् को दमन कर, फन पर वेणुवादन करते हुए जब कान्हा का अवतरण हुआ तो पूरा माहौल जय श्रीकृष्ण, बांके बिहारी लाल की जय, हर हर महादेव के जयघोष से वृंदावनमय हो गया। प्रभु श्रीकृष्ण की कालिया नाग के दर्प चूर करने की लीला वस्तुतः नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने का संदेश है जो आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो जाता है।

कृष्ण लीला का शुभारंभ गोधूली बेला से पूर्व शुरु हुआ। इसके पूर्व तक घाटों पर लाखों की भीड़ जमा हो गयी थी। लीला के आरंभ में मित्र सुदामा की गेंद खेलते-खलते अचानक गंगा में जा गिरी। सुदामा की गेंद लाने के बहाने नदी में जैसे ही श्रीकृष्ण कूदने की कोशिश करते है उन्हें यह कहकर रोकेने का प्रयास किया जाता है कि कालिया नाग के प्रयोग से यमुना का पानी जहरीला है। बावजूद इसके ब्रज विलास के दोहे ‘यह कहि नटवर मदन गोपाला, कूद परे जल में नंदलाला..’ गायन के बीच नंदलाल कदंब की डाल से कालीदह में कूद पड़े। ऐसा मनेोरम दृश्य देख भक्तों के हृदय की धड़कनें एकाएक थम गयी। कुछ देर बाद श्रीकृष्ण कालिय नाग के घमंड को नथ कर उसके फन पर सवार हो मुरली बजाते हुए बाहर आएं। इस अद्भूत क्षण को आंखों में सहेजने को आतुर दर्शनार्थी भाव विह्वल हो गए। एक तरफ गंगा में नाव, बजड़ों पर सवार श्रद्धालुओं समेत घाट पर बैठे लोग घंट-घड़ियाल, शंख ध्वनि के बीच प्रभु छवि की आरती उतारते रहे तो दुसरी तरफ भक्त जयकारे लगाते रहे।

इस लीला को देखने के लिए देश कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी पहुंचे थे। इस पल को देख कुछ ऐसा लगता है कि मानो धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। इस लीला की शोभा को शोभायमान करने के लिए परंपरागत रूप से चले आ रहे संस्कृति का निर्वहन करते हुए काशी नरेश के वंशज कुंवर अन्नत नारायण सिंह भी पहुंचे थे। इस दौरान होने वाले भारी जनसैलाब को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से पुख्ता इंताजामात भी किए गए थे, जिसमें भारी संख्या में पुलिस बल व पीएससी की तैनाती की गई थी। गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा के अध्यक्ष और संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि दुनिया में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण की जल लीला देखने को नहीं मिलती है, लेकिन सिर्फ बनारस में इसका मंचन होता है। कालिय नाग ने द्वापर में यमुना को प्रदूषित किया था जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने प्रदूषण मुक्त किया। इसी तरह गंगा में 34 नालों के रूप में बहते कालियनाग का दमन जरूरी है।

आम धारणा है कि गोस्वामी तुलसीदास आजीवन रामभक्ति में लीन रहे लेकिन उनकी बेमिसाल श्रीकृष्ण भक्ति की भी पुष्टि करती है नागनथैया लीला। इसकी शुरुआत तुलसीदास जी ने कराई थी। शुरुआती दौर में श्रीमद्भागवत ही इसका आधार था। बाद में ‘ब्रज विलास’ ग्रंथ के अनुसार इसका मंचन किया जाने लगा। ब्रज विलास की रचना 18वीं शताब्दी में ब्रज के प्रसिद्ध संत ब्रजवासी दास ने की। उन्होंने काशी प्रवास के दौरान तुलसीघाट की श्रीकृष्ण लीला देखी। स्वयं तत्कालीन महंत पंडित धनीरामजी से मिलकर ‘श्री रामलीला’ की ही तरह ‘ब्रज विलास’ को भी झांझ-मृदंग पर गाकर श्रीकृष्ण लीला की नई पद्धति चलाई। इस पद्धति से कार्तिक कृष्ण द्वादशी से मार्ग शीर्ष प्रतिपदा तक यह लीला होती है।