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जन्मदिन 25 दिसंबर सुशासन दिवस के रूप में मनाया गया
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके महान विचार हमारे दिमाग में गूंजते हैं, जो हर मुश्किल परिस्थिति में डटकर लड़ने को प्रेरित करते हैं. उन्हें हमेशा ही बहुत ही सम्मान की नजर से देखा जाता था. उनके बोलने के अंदाज का हर कोई कायल था। अटल जी को उनके दौर में हर पार्टी के नेता सम्मान देते थे। उन्हें तार्किक वादविवाद में हरा पाना बहुत ही कठिन था। कोई भी विरोधी उनकी व्यक्तिगत तौर पर आलोचना नहीं कर पाता था। अटल बिहारी वाजपेयी को आज देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से गिना जाता है। उन्होंने अपने प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में कई दूरगामी नतीजे देने वाले काम किए। लेकिन उन्हें हमेशा ही उनके शानदार भाषणों और अपनी बातचीत से दूसरों को प्रभावित करने के लिए जाना जाता रहा है। उनकी समावेशी राजनीति के चलते उन्होंने विरोधियों को भी कई बार अपने साथ लेकर चलने में सफलता हासिल की थी। उनकी वाकपटुता और तर्क के आगे कोई टिक नहीं पाता था. 25 दिसंबर को देश उनका जन्मदिन सुशासन दिवस के रूप में मना रहा है। सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए। आज भी उनके वाक्य गूंजते है
–सुरेश गांधी
एक समय था जब भारत की राजनीति में कोई भी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी से दूरी रखा करती थी। उसके हर नेता की तीखी आलोचना हुआ करती थी. पर अटल जी इसका अपवाद थे। विरोधी भी उनकी आलोचना करने से घबराते थे। वाजपेयी खुल कर हिंदुत्व और अपनी पार्टी के ज्वलंत मुद्दों की पैरवी करते थे और अपने आलोचकों को मुंह भी बखूबी बंद किर दिया करते थे। अटल जी ने कभी भी अपनी पार्टी को साम्रदायिक पार्टी नहीं माना। वे बड़े ही तार्किक ढंग से इसे विरोधियों का दुष्प्रचार करार देते थे। उनका कहना था कि हिंदुत्व की बाद करना साम्प्रदायिकता नहीं है। वे हमेशा खुद को पार्टी के बाद रखा करते थे. 1996 के आम चुनावों में उनकी पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। तब वाजपेयी ने देश का प्रधानमंत्री पद संभाला, लेकिन वे लोकसभा में बहुमत नहीं जुटा सके। इस 13 दिन की सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर संसद में दिया गया उनका भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। तब उन्होंने विरोधियों को भी अपना कायल बना कर छोड़ा था. इस भाषण का ऐसा असर हुआ कि इसके बाद अटल जी पहले 13 महीने की और फिर 5 साल तक देश के प्रधानमंत्री बने थे।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. उन्होंने हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और राजनीतिशास्त्र में शिक्षा हासिल की थी. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और एक समय जनता पार्टी का हिस्सा रहे अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे. वे संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने वाले दुनिया के सबसे पहले इंसान थे. अटल जी शुरू से ही अपने भाषण से दूसरों को प्रभावित करते थे. यहां तक कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवहार लाल नेहरू भी उनके भाषणों से प्रभावित थे. उन्होंने तो कह दिया था कि वे अटल जी एक दिन प्रधानमंत्री बनेंगे. उनके हर भाषण में उनका कवि की झलक जरूर दिखती थी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में पहली बार लोकसभा के सासंद बने थे. तब भारतीय जनता पार्टी का नाम था भारतीय जन संघ. उस समय पार्टी में केवल चार सांसद ही थे. अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर 1924 को गवालियर के मिडिल-क्लास स्कूल टीचर के घर पैदा हुए थे. राजनीति में आने से पहले उन्होंने पत्रकारिता से शुरू किया था अपना करियर. वह अपनी कुशल भाषण कला की वजह से राजनीति में आए थे.
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अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 1947 में प्रचारक के रूप में राष्ट्रीय सेवक संघ को ज्वाइन किया था। भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से वाजपेयी को 23 दिन के लिए जेल में रहना पड़ा था. देश में इमरजेंसी के दौरान अटल बिहारी को भी विपक्षियों ने जेल भेज दिया था। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने थे अटल बिहारी तब संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिंदी में भाषण दिया था। वह इस पल को अपनी जिंदगी का सबसे सुखद पल मानते थे। अटल की खुद की कोई संतान न होने की वजह से उन्होंने राजकुमारी कॉल की बेटी नमिता कॉल भट्टाचार्य को अपनी दत्तक पुत्री बनाया था। नमिता ने ही उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि ’नेहरु जी के सिर के बल खड़ा हो कर योग करने से दृष्टि उल्टी हो गई है’। 1998 में राजस्थान के पोखराण में पहला न्यूक्लियर टेस्ट- ऑपरेशन शक्ति, अटल बिहारी के नेतृत्व में ही की गई थी। पूरी जिंदगी अविवाहित रहे अटल बिहारी की जिंदगी में उनकी कॉलेज की दोस्त राजकुमारी कॉल के अलावा और कोई महिला नहीं थी। अपने राजनीतिक जीवन में अटल बिहारी वाजपेयी 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे। 16 मई 1996 में पहली बार वह प्रधानमंत्री बने, लेकिन 13 दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई। बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
सफरनामा
अटल बिहारी वाजपेयी का पूरा जीवन ही लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है. उनके करीबी और चाहने वाले वाजपेयी को’बापजी’ कहकर पुकारते थे. उनके पिता कृष्ण वाजपेयी स्कूल मास्टर और कवि थे. पूर्व पीएम वाजपेयी भी अपने पिता की ही तरह बेहद अच्छे कवि बने. वाजपेयी ने अपनी स्कूली शिक्षा ग्वालियर के गोरखी स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से की। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज, जिसे अब लक्ष्मीबाई कॉलेज कहा जाता है से वाजपेयी ने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. वायपेयी ने इन विषयों में डिस्टिंक्शन हासिल कर फर्स्ट डिवीजन में डिग्री ली थी। इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज, कानपुर से पॉलिटिकल साइंस में मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की थी, जिसके बाद उन्हें विदेशी मामलों में रुचि विकसित हुई. इसके बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई के लिए एलएलबी करने का फैसला लिया, लेकिन डिग्री पूरी होने से पहले पूरी तरह संघ के कार्यों में जुटना पड़ा। एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफर आसान नहीं था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया।
वाजपेयी 1951 में भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वह हार गए थे। 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वह चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। अगले 5 दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी। वह 1968 से 1973 तक भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। जनता पार्टी सरकार में 1977 में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताते हैं। 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। यह बात 1957 की है, जब दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ 4 सांसद थे। इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया। तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वो किसी भारतीय जन संघ नाम की पार्टी को नहीं जानते। अटल बिहारी वाजपेयी उन 4 सांसदों में से एक थे। बाद में इस घटना को याद करते हुए अटल जी ने कहा कि आज भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज्यादा सांसद हैं और शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने बीजेपी का नाम न सुना हो। भारतीय जन संघ से भारतीय जनता पार्टी और सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफर में अटल बिहारी वाजपेयी ने कई पड़ाव तय किए हैं।
नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल होगा जिन्होंने अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई। अटल बिहारी वाजपेयी 9 बार लोकसभा के लिए चुने गए। दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक। बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही। खासतौर से 1984 में जब वह ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए। 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली।
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राजनीतिक करियर
वाजपेयी 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लखनऊ से लोकसभा के लिए चुने गए. इसके अलावा वाजपेयी पहले और एकमात्र गैर-कांग्रेसी नेता हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया. पूर्व प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र सभा में 4 अक्टूबर 1977 को हिंदी में भाषण देने वाले पहले विदेश मंत्री भी थे. जब अटल बिहारी ने हिंदी में भाषण दिया, तो यूएन तालियों से गूंज उठा. आज भी उनका यह भाषण ऐतिहासिक माना जाता है, जिसे हर भारतीय बड़े गर्व से याद करता है. भारत के दिवंगत भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद के सत्र में कहा था कि – “सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए।“ चूंकि देश सर्वोपरि है और एक राजनेता को अव्व्ल अपने देश के लिए पूरी निष्ठा से काम करना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी एक नेता तो थे ही साथ ही कविताएं भी लिखा करते थे। उन्होंने देश के लिए भी कविताएं लिखीं।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है
हिमालय मस्तक है
कश्मीर किरीट है
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं
कन्याकुमारी इसके चरण हैं
सागर इसके पग पखारता है
यह चन्दन की भूमि है
अभिनन्दन की भूमि है
यह तर्पण की भूमि है
यह अर्पण की भूमि है